लाइफस्टाइल डेस्क. गुरु नानक जी की तीन बड़ी शिक्षा खुशहाली से जीने का मंत्र देती हैं। ये शिक्षा है- नाम जपो, किरत करो और वंड छको। यह सीखें कर्म से जुड़ी हुई हैं। कर्म में श्रेष्ठता लाने की ओर ले जाती हैं। यानी मन को मजबूत, कर्म को ईमानदार और कर्मफल के सही इस्तेमाल की सीख देती हैं। ये एकाग्रता-परोपकार की ओर भी ले जाती हैं।
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नाम जपो- गुरु नानक जी ने कहा है- ‘सोचै सोचि न होवई, जो सोची लखवार। चुपै चुपि न होवई, जे लाई रहालिवतार।’ यानी ईश्वर का रहस्य सिर्फ सोचने से नहीं जाना जा सकता है, इसलिए नाम जपे। नाम जपना यानी ईश्वर का नाम बार-बार सुनना और दोहराना। नानक जी ने इसके दो तरीके बताए हैं- संगत में रहकर जप किया जाए। संगत यानी पवित्र संतों की मंडली। या एकांत में जप किया जाए। जप से चित्त एकाग्र हो जाता है और आध्यात्मिक-मानसिक शक्ति मिलती है। मनुष्य का तेज बढ़ जाता है।
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किरत करो- यानी ईमानदारी से मेहनत कर आजीविका कमाना। श्रम की भावना सिख अवधारणा का भी केंद्र है। इसे स्थापित करने के लिए नानक जी ने एक अमीर जमींदार के शानदार भोजन की तुलना में गरीब के कठिन श्रम के माध्यम से अर्जित मोटे भोजन को प्राथमिकता दी थी।
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वंड छको- एक बार गुरु नानक जी दो बेटों और लेहना (गुरु अंगद देव) के साथ थे। सामने एक शव ढंका हुआ था। नानक जी ने पूछा- इसे कौन खाएगा। बेटे मौन थे। लेहना ने कहा- मैं खाऊंगा। उन्हें गुरु पर विश्वास था। कपड़ा हटाने पर पवित्र भोजन मिला। लेहना ने इसे गुरु को समर्पित कर ग्रहण किया। नानक जी ने कहा- लेहना को पवित्र भोजन मिला, क्योंकि उसमें समर्पण का भाव और विश्वास की ताकत है। सिख इसी आधार पर आय का दसवां हिस्सा साझा करते हैं, जिसे दसवंध कहते हैं। इसी से लंगर चलता है।
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1499 ईस्वी में जब गुरु नानक देव जी 30 साल के हो गए थे, तब उनमें अध्यात्म परिपक्व हो चुका था। आज जिसे हम पवित्र गुरुग्रंथ साहिब के नाम से जानते हैं, उसके शुरुआती 940 दोहे इन्हीं की देन हैं। आदिग्रंथ की शुरुआत मूल मंत्र से होती है, जिसमें हमारा ‘एक ओंकार’ से साक्षात्कार होता है। मान्यता है कि गुरु नानक देव जी अपने समय के सारे धर्मग्रंथों से भली-भांति परिचित थे। उनकी सबसे बड़ी सीख थी- हर व्यक्ति में, हर दिशा में, हर जगह ईश्वर मौजूद है। जीवन के प्रति उनके नजरिए और सीख इन चार किस्सों के माध्यम से आसानी से समझी जा सकती है।
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मक्का पहुंचने से पहले नानक देव जी थककर आरामगाह में रुक गए। उन्होंने मक्का की ओर चरण किए थे। यह देखकर हाजियों की सेवा में लगा जियोन नाम का शख्स नाराज हो गया और बोला-आप मक्का मदीना की तरफ चरण करके क्यों लेटे हैं? नानक जी बोले- ‘अगर तुम्हें अच्छा नहीं लग रहा, तो खुद ही चरण उधर कर दो, जिधर खुदा न हो।’ नानक जी ने जियोन को समझाया- हर दिशा में खुदा है। सच्चा साधक वही है जो अच्छे काम करता हुआ खुदा को हमेशा याद रखता है।
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गुरुनानक देवजी को आजीविका के लिए दूसरों के यहां काम भी करना पड़ा। बहनोई जैराम जी के जरिए वे सुल्तानपुर लोधी के नवाब के शाही भंडार की देखरेख करने लगे। उनका एक प्रसंग प्रचलित है। एक बार वे तराजू से अनाज तौलकर ग्राहक को दे रहे थे तो गिनते-गिनते जब 11, 12, 13 पर पहुंचे तो उन्हें कुछ अनुभूति हुई। वह तौलते जाते थे और 13 के बाद ‘तेरा फिर तेरा और सब तेरा ही तेरा’ कहते गए। इस घटना के बाद वह मानने लगे थे कि ‘जो कुछ है वह परमबह्म्र का है, मेरा क्या है?’
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नानक जी अपने शिष्य मरदाना के साथ कंगनवाल पहुंचे तो उन्होंने देखा कि कुछ लोग जनता को परेशान कर रहे हैं। नानक जी ने उन्हें आशीर्वाद दिया- बसते रहो। दूसरे गांव पहुंचे, तो अच्छे लोग दिखे। गांव वालों को नानक जी ने आशीर्वाद दिया- उजड़ जाओ। इस पर मरदाना को आश्चर्य हुआ। उसने पूछा-जिन्होंने अपशब्द कहे, उन्हें बसने का और जिन्होंने सत्कार किया, उन्हें आपने उजड़ने का वर दिया, ऐसा क्यों? नानक जी बोले- बुरे लोग एक जगह रहें, ताकि बुराई न फैले और अच्छे लोग फैलें ताकि अच्छाई का प्रसार हो।
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नानक जी हरिद्वार गए, वहां लोगों को गंगा किनारे पूर्व में अर्घ्य देते देखा। नानक इसके उलट पश्चिम में जल देने लगे। लोगों ने पूछा-आप क्या कर रहे हैं? नानक जी ने पूछा, आप क्या कर रहे हैं? जवाब मिला, हम पूर्वजों को जल दे रहे हैं। नानक जी बोले-‘मैं पंजाब में खेतों को पानी दे रहा हूं।’ लोग बोले- इतनी दूर पानी खेतों तक कैसे जाएगा? इस पर नानक जी बोले- जब पानी पूर्वजों तक जा सकता है, तो यह खेतों तक क्यों नहीं जाएगा? मानों तो ईश्वर यहां मौजूद हर कण और हर व्यक्ति में है।’
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