It simply sucks. I don't personally read blog posts word by word, so how can I except you to read them too? I known ther are people who are kind enough to read a 10,000 word long blog article from start to finish, but I think that's a minority.why waste your time ? Let me..
Saturday, 7 March 2020
Six of top 10 firms lose Rs 95,432 crore in m-cap; RIL takes biggest hit
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FPIs pull out Rs 13,157 cr in March, breaking their 6-month buying streak
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Defaults by NBFCs on secured debentures prompt Sebi to introduce reforms
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रंग, वजन, पाबंदी, कमजोरी और अक्षमता की बेड़ियां तोड़ती बराबरी की पांच कहानियां
भास्कर विशेष. बात शरीर की हो या मन की, उन्हें हर बार टूटने के लिए मजबूर किया जाता है। सदियों से यही सोच है कि लड़कियां वो सब नहीं कर सकती जो लड़के कर सकते हैं। और, इस पर अगर उसका रंग काला हो, शरीर भारी हो या फिर कोई और शारीरिक समस्या हो तो फिर मुश्किलें ज्यादा बढ़ जाती हैं। लेकिन, कहते हैं ना कि हिम्मत से हिमालय भी झुकता है, तो इसी सोच के साथ अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर भास्कर सुना रहा है 5 महिलाओं कीकहानियां जिन्होंने अपनी बेड़ियों को तोड़ा और जिद करके अपनी पहचान बनाई है। 2020 के महिला दिवस की थीम बराबरी की सोच वाली ‘आई एम जनरेशन इक्वेलिटी:रिअलाइजिंग वुमन्स राइट’ है।
दुनिया की सबसे डार्क (काली) मॉडल न्याकिम गेटवेक, दृष्टिबाधित होने के बावजूद ओडिशा सिविल सर्विसेज में रैंक हासिल करने वाली तपस्विनी दास, भारत कीअल्ट्रा रनर सूफिया खान,अकेले 193 देश घूमने वाली मेलिसा रॉयऔर 138 किलो की प्लस साइज मॉडल-एक्टिविस्ट टेस हॉलिडे ने हमारे साथसाझा की अपनी कहानी …
पहली कहानी:‘क्वीन ऑफ डार्क’ हैं न्याकिम गेटवेक, कहती हैं - खूबसूरती के लिए गोरा रंग जरूरी नहीं
सूडानी मूल की अमेरिकी फैशन मॉडल न्याकिमगेटवेक को गोरा दिखना पसंद नहीं। गहरे काले रंग के कारण लोग उन्हें 'क्वीन ऑफ डार्कनेस' कहते हैं। उसे अपनी डार्क स्किन टोन पर गर्व है। खुद को काला कहने में शर्म नहीं आती।। ब्लीच करना जरूरी नहीं समझती। नस्लीय तानें भी खूब झेलें लेकिन न तो अपनी सोच बदली और न इरादे। मॉडलिंग की दुनिया में यही काला रंग उनकी खूबसूरती को बयां कर रहा है। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर 'बंदिशों की बेड़ियां, बराबरी की कहानियां' थीम की अहम किरदार हैंन्याकिम। जो कहती हैं- हमें खूबसूरत लगने के लिए गोरा दिखने की जरूरत नहीं। Click >न्याकिमकी कहानी उन्हीं की जुबानी...
दूसरी कहानी/ हादसे में आंखें गंवाईं, लेकिन बिना आरक्षण ओडिशा सिविल सर्विसेज में रैंक बनाई तपस्विनी ने
एक ऑपरेशन हुई लापरवाही के कारणमें तपस्विनी की आंखों कीरोशनी हमेशा के लिए चली गई।छह माह बाद आंखों की रोशनी वापस आने की उम्मीद जगाई गई, लेकिन ऐसा होता नहीं है। उसकी जिंदगी पूरी तरह से बदल गई। उसने खुद को बदला और इतनी हिम्मत जुटाई कि हर क्लास में सामान्य बच्चों से ऊपर तपस्विनी का नाम आने लगा।लोगों ने उससे कहायूपीएससी की तैयार करो उसमें दृष्टिबाधित बच्चों को आरक्षण मिलता है लेकिन उसने बिना आरक्षण के सफलता पाई। ओडिशालोक सेवा आयोग की परीक्षा में रैंक हासिल करके उसने कामयाबी की मिसाल कायम की। Click >तपस्विनीकी कहानी उन्हीं की जुबानी...
तीसरी कहानी:शांति-भाईचारे का संदेश देने 87 दिनों में 4 हजार किमी दौड़ीं सूफिया, कहा- हम कमजोर नहीं
देश में अमन का पैगाम देने का जुनून और फिटनेस के लिए दौड़ने के जज्बे ने सूफिया खान कोउस जगह लाकर खड़ा कर दिया है जहां बराबरी की मिसाल दी जाती हैं। जहां पुरुष-महिला का भेद नहीं है और समाज की बेड़ियों को तोड़कर कुछ हासिल करने की खूबसूरत तस्वीर नजर आती है। राजस्थान के अजमेर की सूफिया ने 87 दिनों में 4 हजार किलोमीटर की दौड़ पूरी करके गिनीज रिकॉर्ड बनाया है। लेकिन वह न तो थकीं हैं और न रुकी हैं। फिर रिकॉर्ड बनाने के लिए उन्होंने एक नया लक्ष्य तय किया है। Click >सूफिया की कहानी उन्हीं की जुबानी...
चौथीकहानी:सिर्फ 34 साल उम्र में सारे 193 देश घूम लिए मेलिसा ने, परिवार ने कभी नहीं चाहा था
अनजाने देश पहुंचना, अंजान लोगों के घरों में रहना, सफर के लिए खर्च भी खुद ही जुटाना और महज 34 साल की उम्र वो कर जाना जो ज्यादातर औरतों को नामुमकिन लगता है लेकिन है नहीं। ऐसी हैं मेलिसा रॉय। मेलिसा की सोच और विजन एकदम साफ रहा है। कॉलेज के समय में एक लक्ष्य तय किया और उसे पूरा करके दुनिया को चौंकाया। 193 देशों की यात्रा का अंतिम पड़ाव था बांग्लादेश, जिसे मेलिसा ने 31 दिसम्बर 2019 को पूरा किया।
मेलिसाकहती हैं अपने अंदर का डर निकालना है तो बाहर निकलिए। Click >मेलिसा की कहानी उन्हीं की जुबानी...
पांचवी कहानी:138 किलोकीप्लस साइज मॉडल टेस कोपिता से गालियां मिलीं और लोगों से मौत की धमकी
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर 'बंदिशों की बेड़ियां, बराबरी की कहानियां' थीम की अहम किरदार हैं 138 किलो वजन वाली मॉडल-एक्टिविस्टटेस हॉलिडे। टेस का जन्म मिसिसिपीहुआ। बचपन में ही माता-पिता अलग हो गए। एक दिन गुस्से में आकर पिता ने मां को गोली मारी और वह हमेशा के लिए पैरालाइज्ड हो गईं। टेस कहती हैं, जो मॉडल प्लस साइज हैं, उन्हें शर्माने या घबराने की जरूरत नहीं है, बल्कि उन्हें गर्व होना चाहिए। मैं मोटी हूं, लोग मुझे प्लस साइज कहते हैं। मुझे इस पर गर्व है। Click >टेस की कहानी, उन्हीं की जुबानी
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Oil futures skid to 12-year low as Russia-OPEC fail to reach deal in Vienna
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केन्या के उमोजा गांव में नहीं है मर्दों की एंट्री, महिलाओं ने कहा- पुरुषों के साथ रहने की कल्पना भी नहीं कर सकते
वीमेन डेस्क. वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की एक रिपोर्ट के मुताबिक बीते 50 सालों में 85 स्टेट्स ऐसे हैं जहां कि प्रमुख कोई महिला नहीं रही। ऐसे में उत्तरी केन्या का एक गांव उमोजा आज भी लोगों की चर्चा का विषय बना हुआ है। यहां के फैसले से लेकर प्रबंधन तक महिलाओं की जिम्मेदारी है। खास बात है कि यहां पुरुष नहीं आ सकते। 2015 में गांव में महिलाओं की संख्या 47 थी।
कैसे बसा महिला प्रधान गांव
इस गांव की शुरुआत 15 दुष्कर्म पीड़ित महिलाओं ने साल 1990 में की थी, लेकिन बाद में यहां पर बाल विवाह, खतना प्रथा, घरेलु हिंसा की शिकार औरतें भी रहने लगीं। यहां औरतें खाने, कपड़े और घर के लिए नियमित आय की व्यवस्था कर लेती हैं। इसके अलावा पर्यटक मामूली फीस देकर उमोजा की सैर करते हैं।
गांव बसाने वालीरेबेका लोलोसोली के साथ कुछ पुरुषों ने मारपीट की थी। रेबेका को यह सजा अपनी साथी महिलाओं को उनके हक याद दिलाने के कारण मिली थी। अस्पताल में इलाज के दौरान उन्हें एक ऐसे गांव का ख्याल आया, जिसमें केवल महिलाएं रहेंगी। द गार्जियन के अनुसार 2015 में गांव की कुल आबादी 47 महिलाएं और 200 बच्चे थी। द गार्जियन के मुताबिक गांव बसाने के बाद रेबेका को कई बार स्थानीय लोगों से धमकियां भी मिलीं।
पुरुषों के साथ नहीं जीना चाहती उमोजा की महिलाएं
द गार्जियन से बातचीत में गांव में रहने वाली दो महिलाओं ने बात की। एक ने बताया कि, दुष्कर्म का शिकार होने के बाद पति ने भी उसके साथ हिंसा की थी। इसके बाद वो भाग कर उमोजा आ गई थी। वो बताती हैं कि अब दोबारा शादी करने का कोई भी प्लान नहीं है। वे गांव में रहकर बच्चों की देखभाल करना चाहती हैं।
वहीं, एक अन्य 34 वर्षीय महिला ने बताया कि उसे 16 साल की उम्र में गायों के बदले एक 80 साल के आदमी को बेच दिया गया था। उन्होंने बताया कि वे अब कभी भी इस समुदाय को छोड़कर नहीं जाना चाहती। इसके साथ ही कई महिलाएं कहती हैं कि वे अब कभी भी पुरुषों के साथ रहने की कल्पना भी नहीं कर सकती।
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प्लस साइज मॉडल टेस हॉलिडे का वजन है 138 किलो, पिता से गालियां मिलीं और लोगों से मौत की धमकी
वीमेन डेस्क.मैं मोटी हूं, लोग मुझे प्लस साइज कहते हैं। मुझे इस पर गर्व है। मेरा डाइटिंग करने का कोई इरादा नहीं है। अमेरिकन मॉडल टेस हॉलिडे ज्यादातर इंटरव्यू में खुद का इंट्रोक्शन इसी लाइन से करती हैं। वह कहती हैं, जिस वजन के कारण मुझे पहचान मिली मेरे लिए तो वही अचीवमेंट है। प्लस साइज के कारण ही मुझे मॉडलिंग के ऑफर मिल रहे हैं। फोटोशूट के लिए लंदन, न्यूयॉर्क और दूसरे शहरों में घूम रही हूं। लाइफ को एंजॉय कर रही हूं।
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर 'बंदिशों की बेड़ियां, बराबरी की कहानियां' थीम की एक और अहम किरदार हैं 13किलो वजन वाली टेस हॉलिडे। वह कहती हैं, जो मॉडल प्लस साइज हैं, उन्हें शर्माने या घबराने की जरूरत नहीं है, बल्कि उन्हें गर्व होना चाहिए। पढ़िए टेस हॉलिडे की कहानी, उन्हीं की जुबानी
मां को गोली मारने वाले पिता ने दी गालियां, 17 की उम्र में मौत की धमकी
टेस का जन्म मिसिसिप्पी हुआ। बचपन में ही माता-पिता का अलगाव हुआ। एक दिन गुस्से में आकर पिता ने मां को गोली मारी और वह हमेशा के लिए पैरालाइज्ड हो गईं। 5 साल की उम्र में टेस और इनके भाई की परवरिश दादा-दादी के यहां हुई। 5वीं कक्षा से ही अधिक वजन और पीली स्किन के कारण बच्चों ने मजाक उड़ाना शुरू किया। उम्र के साथ पैसों की तंगी बढ़ी लेकिन समस्या तब बढ़ी जब 17 साल की उम्र में मौत की धमकी मिली। नतीतजन 11वीं कक्षा से ही स्कूल छोड़ना पड़ा।
टेसी के मुताबिक, वजन को लेकर कई बार उनके पिता ने बहुत खराब बातें की लेकिन मां ने हमेशा साथ दिया। मां हमेशा चाहती थीं मैं मॉडल बनूं। लेकिन ग्लैमर में जगत में शुरुआत तो प्लस साइज मॉडल के तौर पर हुई लेकिन बतौर मेकअप आर्टिस्ट भी काम किया। 2015 में निक हॉलिडे से शादी हुई और बच्चे की डिलीवरी के लिए मिसिसिपी पहुंची। कुछ साल यहां बिताने के बाद वापस लॉस एंजेलिस पहुंचीं। यह समय टेसी की जिंदगी के लिए टर्निंग पॉइंट रहा। टीवी सीरिज 'हैवी' में काम मिला और देखते ही देखते टीवी जगत की नामी शख्सियत बनीं। डेंटिस्ट क्लीनिक में अपनी पार्ट टाइम नौकरी छोड़कर फुलटाइम मॉडलिंग को करियर बनाया।
रिजेक्शन, रिजेक्शन और रिजेक्शन
टेस का कहना है बचपन से लेकर मॉडलिंग की शुरुआत तक लोगों के ताने मिलते रहे। सैकड़ों बार रिजेक्ट हुई। लेकिन हार नहीं मानी। मैं खुद को बॉडी पॉजिटिव एक्टिविस्ट कहती हूं। टेस ने 2013 में बॉडी शेमिंग से जूझ रही महिलाओं में जोश भरने के लिए इंस्टाग्राम पर #effyourbeautystandards नाम से मुहिम की शुरुआत की। जिसका लक्ष्य दुनियाभर में यह संदेश देना कि महिलाएं जो चाहें पहन सकती हैं, इसमें वजन बाधा नहीं बन सकता है। टेस यह मैसेज दुनियाभर में पहुंचाने के लिए 6 लोगों की टीम बनाई।
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5 रिसर्च रिपोर्ट के हवाले से लीडरशिप, उम्र, सेहत और गुस्सा कंट्रोल करने में आगे हैं महिलाएं
वीमेन डेस्क. अगर आपके सामने रवीना (काल्पनिक नाम) और रोहन (काल्पनिक नाम) का नाम आए, तो किसे बेहतर मानेंगे? ज्यादातर लोग यही मानेंगे कि रोहन बेहतर होगा क्योंकि वह पुरुष है। ...और रवीना तो एक महिला है, इसलिए वह रोहन से बेहतर हो ही नहीं सकती। लेकिन विज्ञान जो कहानी कहता है वो इसके उलट है। रवीना रोहन से लंबी उम्र जी सकती है, कोरोनावायरस से लड़ने में भी वह रोहन से ज्यादा मजबूत है, उसे गुस्सा भी कम आता है। वह ऑफिस में भी ज्यादा बेहतर परिणाम देती है और लीडरशिप में रोहन से ऊपर है। इतना सबकुछ रिसर्च में भी साबित हो चुका है, जो महिलाओं को कमजोर करने वाली तस्वीर तोड़ने के लिए काफी है। अभी भी कोई शक है तो ये रिसर्च पढ़िए और समझिए...
1) कोरोनावायरस से लड़ने में रोहन से ज्यादा पावरफुल रवीना
डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, 4 मार्च तक दुनियाभर से कोरोनावायरस के 93,090 मामले सामने आ चुके हैं। चीन के सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोन एंड प्रिवेन्शन की रिपोर्ट बताती है कि कोरोनावायरस से मरने वालों में महिलाओं की तुलना में पुरुषों की संख्या ज्यादा है। पुरुषों का डेथ रेट 2.8% है और महिलाओं का 1.7% है। यानी, मरने वाले 5 लोगों में 3 पुरुष और 2 महिलाएं हैं। 2003 में जब हॉन्गकॉन्ग में सार्स वायरस फैला था, तब भी मरने वालों में महिलाओं के मुकाबले 50% ज्यादा पुरुष थे। ऐसा इसलिए क्योंकि इन्फेक्शन के मामले में महिलाओं की तुलना में पुरुषों का इम्युन सिस्टम ज्यादा कमजोर होता है।
इसका मतलब : कोरोनावायरस से लड़ने में रवीना का इम्यून सिस्टम रोहन से ज्यादा बेहतर है।
2) ऑफिस में रवीना 10 फीसदी ज्यादा प्रोडक्टिव
2019 में आई कैटेलिस्ट की रिपोर्ट कहती है, दुनियाभर की 39% महिलाएं ही काम पर जाती हैं। अकेले भारत में ही 22% से कम महिलाएं कामकाजी हैं। यानी 100 लोगों के ऑफिस में 22 से भी कम महिलाएं। इन आंकड़ों के बाद ज्यादातर लोग सोच रहे होंगे कि महिलाएं काम नहीं कर सकतीं, क्योंकि उन्हें काम नहीं आता होगा। लेकिन जब ऑफिस में ज्यादा प्रोडक्टिविटी की बात आती है, तो महिलाएं पुरुषों से ज्यादा बेहतर साबित होती हैं। 2018 में प्रोडक्टिविटी प्लेटफॉर्म हाईव ने एक रिसर्च की थी। इसके मुताबिक, महिलाएं पुरुषों की तुलना में 10% ज्यादा प्रोडक्टिव होती हैं। हाईव की रिसर्च बताती है कि ऑफिस में महिलाओं को पुरुषों के मुकाबले 10% ज्यादा काम भी दिया जाता है।
इसका मतलब : रवीना को रोहन से 10% ज्यादा काम भी मिल रहा। और रवीना, रोहन से 10% ज्यादा प्रोडक्टिव भी है।
3) लम्बा जीवन जीने में भी रवीना आगे, रिसर्च भी यही कहती है
इसका जवाब साफतौर पर तो किसी को नहीं पता। लेकिन कई रिसर्च कहती हैं तो रवीना ज्यादा लम्बा जीवन जिएगी। अमेरिका के नॉर्थ कैरोलिना की ड्यूक यूनिवर्सिटी ने 250 साल के मेडिकल रिकॉर्ड का एनालिसिस किया और पाया कि पुरुषों की तुलना में महिलाएं ज्यादा लंबा जीवन जीतीं हैं। इतना ही नहीं, नवजात पुरुष बच्चों के मुकाबले नवजात बच्चियां ज्यादा सर्वाइव भी कर जातीं हैं। एक दिलचस्प फैक्ट ये भी है कि, पुरुषों की ग्लोबल एवरेज लाइफ एक्स्पेक्टेंसी 68 साल 4 महीने है, जबकि महिलाओं की 72 साल 8 महीने। यानी महिलाएं पुरुषों की तुलना में 4 साल 4 महीने ज्यादा जीतीं हैं।
इसका मतलब : रवीना रोहन से 4 साल 4 महीने ज्यादा जी सकती है।
4) लीडरशिप क्वालिटी से जुड़े 17 मामलों में रवीना आगे
लीडरशिप क्वालिटी के मामले में महिलाओं को कमतर ही समझा जाता है। अक्सर लोग यही कहते दिखते हैं कि महिला है, क्या लीडर बनेगी? आपको जानकर हैरानी होगी कि जिस संसद में देश का भविष्य तय होता है, वहां 25% से भी कम महिलाएं हैं। लोकसभा में महिला सांसदों की संख्या 15% से भी कम है। राज्यसभा में तो इनकी संख्या 10% से थोड़ी ही ज्यादा है। मगर, हार्वर्ड बिजनेस रिव्यू (एचबीआर) की रिसर्च बताती है कि लीडरशिप क्वालिटी के मामले में महिलाएं पुरुषों से कहीं ज्यादा बेहतर होती हैं। एचबीआर ने अपने रिसर्च में लीडरशिप क्वालिटी के 19 पॉइंट बताए हैं। इनमें से 17 पॉइंट में महिलाएं पुरुषों से आगे रहीं। सिर्फ दो मामलों में ही पुरुष महिलाओं से बेहतर रहे, लेकिन इसका अंतर भी बहुत कम ही था। एचबीआर की रिपोर्ट के मुताबिक, 60 साल से ज्यादा की उम्र होने के बाद पुरुषों में जहां कॉन्फिडेंस कम होने लगता है, वहीं इसके उलट महिलाओं में कॉन्फिडेंस लेवल बढ़ता है।
इसका मतलब : रवीना रोहन से ज्यादा अच्छी लीडर बन सकती है।
5) घर हो या ऑफिस गुस्सा कंट्रोल करने में भी रवीना अव्वल
ऑफिस में ज्यादा काम आ गया, तो गुस्सा आ गया। ट्रैफिक में फंस गए, तो गुस्सा आ गया। हम जरा-जरा सी बात पर गुस्सा हो जाते हैं। इस हम में भी पुरुष ज्यादा और महिलाएं कम होती हैं। टाटा सॉल्ट लाइट के सर्वे में 68% पुरुष और 54% महिलाओं ने माना कि अगर छुट्टी के दिन ऑफिस का कोई काम आ जाता है, तो उन्हें गुस्सा आ जाता है। ट्रैफिक जाम में फंसने पर गुस्सा आने के सवाल में भी 57% पुरुष और 55% महिलाओं ने हामी भरी। इतना ही नहीं, 64% पुरुष और 61% महिलाओं ने ये भी माना कि अगर कोई बिना उनसे पूछे उनका फोन चार्जिंग से निकाल दे, तो उन्हें गुस्सा आ जाता है। 69% पुरुष और 65% महिलाएं वाई-फाई या इंटरनेट कनेक्शन बंद होने पर हाईपर हो जाते हैं। कुल मिलाकर पुरुषों को महिलाओं की तुलना में ज्यादा गुस्सा आता है।
इसका मतलब : वाई-फाई बंद होने या छुट्टी के दिन भी ऑफिस का काम आने पर रवीना को रोहन के मुकाबले कम गुस्सा आएगा।
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सिर्फ 34 साल उम्र में सारे 193 देश घूम लिए मेलिसा ने, परिवार ने कभी नहीं चाहा था कि लड़की ऐसा करे
नाम : मेलिसा रॉय
उम्र : 34 साल
उपलब्धि : दुनिया के सभी 193 देश घूमने वाली पहली दक्षिणी-एशियाई महिला।
अनजाने देश पहुंचना, अंजान लोगों के घरों में रहना, सफर के लिए खर्च भी खुद ही जुटाना और महज 34 साल की उम्र वो कर जाना जो ज्यादातर औरतों को नामुमकिन लगता है लेकिन है नहीं। ऐसी हैं मेलिसा रॉय। मेलिसा की सोच और विजन एकदम साफ रहा है। कॉलेज के समय में एक लक्ष्य तय किया और उसे पूरा करके दुनिया को चौंकाया। 193 देशों की यात्रा का अंतिम पड़ाव था बांग्लादेश, जिसे मेलिसा ने 31 दिसम्बर 2019 को पूरा किया। लेकिन ये सफर इतना भी आसान नहीं था।
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर 'बंदिशों की बेड़ियां, बराबरी की कहानियां' थीम की एक और अहम किरदार हैं मेलिसा। जो कहती हैं अपने अंदर का डर निकालना है तो बाहर निकलिए, पढ़िए उनकी कहानी उन्हीं की जुबानी...
पहला लक्ष्य 100 दिनों में 12 देश की यात्रा
अर्जेंटीना के ब्यूनस आयर्स में कॉलेज की पढ़ाई करते समय ही मैंने यह तय कर लिया था कि एक दिन अपने दम पर दुनिया देखूंगी। इसकी शुरुआत गर्मियों की छुटि्टयों से हुई और पहली यात्रा के लिए दक्षिण अमेरिका का रुख किया। 1,000 स्टूडेंट्स के साथ एक विशाल क्रूज पर रही,जहां से दुनिया भर के खूबसूरत नजारों को दिलो-दिमाग में कैद किया। धीरे-धीरे 100 दिनों में 12 देशों का लक्ष्य रखा और उसे पूरा किया। ट्रैवेलिंग का ऐसा जुनून था कि कॉलेज के फाइनल ईयर सेमेस्टर की पढ़ाई समुद्र यात्रा के दौरान ही की।
अंतिम कदम पिता की कर्मभूमि बांग्लादेश में रखा
मेरा जन्म 28 नवंबर 1985 को अमेरिका के मिशिगन के मोनरो में हुआ लेकिन बांग्लादेश मेरी यात्रा का अंतिम पड़ाव था, इसकी कई वजह हैं। मैं दुनिया का पूरा गोल चक्कर लगाना चाहती थी और यह मेरे लिए मेरी पुश्तैनी मातृभूमि पर घर वापसी जैसा है। मेरा परिवार बांग्लादेश से था इसलिए यह देश इस बात का प्रतीक है कि मैं कौन हूं, यहीं मेरी जड़ें है, मेरे पिता, मेरे दादा और नाना दोनों का जन्मस्थान यही है।
ऐसे लगाया दुनिया का चक्कर, 5 पड़ाव
यात्रा का लक्ष्य तय करना जितना आसान था उतना मुश्किल था पैसे जुटाना। अब तक दुनिया का चक्कर लगाने वाले ज्यादातर लोग स्पॉन्सरशिप के जरिए सफर पूरा कर चुके हैं लेकिन इस दौरान न तो मैंने किसी से स्पॉन्सरशिप ली और न ही कोई यात्रा मुफ्त में की।
यात्रा के लिए पैसे जुटाने के लिए लॉस एंजिल्स जाती थी कमर्शियल विज्ञापन करती थी। एक तय अमाउंट इकट्ठा होने के वापस सफर पर निकल पड़ती थी।
अपने लक्ष्य तक पहुंचने के लिए मैंने वेबसाइट का सहारा लिया। लोगों से रास्ता पूछ कर घूमने की बजाय होम स्टे काउचसर्फिंग के जरिए दुनियाभर के स्थानीय लोगों के घरों में मुफ्त में रहने की जगह हासिल की।
काउचसर्फिंग अच्छा है, क्योंकि इससे आपको एक देश में वीआईपी ट्रीटमेंट मिलता है। वेनेजुएला के राजनीतिक और आर्थिक संकटों के बीच बढ़ते तनाव के दौरान कोलंबिया से वेनेजुएला तक पैदल चलकर सीमा पार की।
मैं मध्य पूर्व में बहरीन, कुवैत, कतर और अन्य देशों में घूमने के बाद वह 2019 में मध्य में लौटी और अफग़ानिस्तान में अपना 34 वां जन्मदिन मनाया।
अंटार्कटिका में 30 वां जन्मदिन मनाया
एक साल में 34 देशों की यात्रा करने के बाद, अंटार्कटिका में अपना 30 वां जन्मदिन मनाया। यहां समय बिताना जीवन के सबसे यादगार पलाें में से एक थे। सबकुछ बिल्कुल वैसा ही था जैसा आप सपने में देखते हैं। इस तरह 30 साल की उम्र तक दुनियाभर के 100 देशों की यात्रा पूरी की। अंटार्कटिका का दौरा करने के बाद, उन देशों की भी यात्रा की, जो लिस्ट में नहीं थे। ओशिनिया द्वीप के लिए निकली और अफ्रीका महाद्वीप के सभी देशों की यात्रा करने के लिए 12 महीनों में तीन बार ट्रिप प्लान की।
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देश में शांति-भाईचारे का संदेश देने 87 दिनों में 4 हजार किमी दौड़ीं सूफिया, कहा- हम कमजोर नहीं
वीमेन डेस्क. देश में अमन का पैगाम देने का जुनून और फिटनेस के लिए दौड़ने के जज्बे ने सूफिया खान को आम से खास बना दिया है। उन्हें उस लाइन में लाकर खड़ा कर दिया है जहां बराबरी की मिसाल दी जाती हैं। जहां पुरुष-महिला का भेद नहीं है और समाज की बेड़ियों को तोड़कर कुछ हासिल करने की खूबसूरत तस्वीर नजर आती है। राजस्थान के अजमेर की सूफिया ने 87 दिनों में 4 हजार किलोमीटर की दौड़ पूरी करके गिनीज रिकॉर्ड बनाया है। लेकिन वह न तो थकीं हैं और न रुकी हैं। फिर रिकॉर्ड बनाने के लिए उन्होंने एक नया लक्ष्य तय किया है।
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर 'बंदिशों की बेड़ियां, बराबरी की कहानियां' थीम की एक और अहम किरदार हैं 33 साल की सूफिया। जो कहती हैं अपनी बात लोगों तक पहुंचाने के लिए सबसे बेहतर जरिया है रनिंग। दैनिक भास्कर से हुई बातचीत में उन्होंने बताई अपनी कहानी। पढ़िए उनकी कहानी उन्हीं की जुबानी...
जॉब छोड़कर देश को दिया संदेश
16 साल की उम्र में पिता को खोने के बाद मां ने परवरिश की। पढ़ाई पूरी करते ही दिल्ली में एविएशन इंडस्ट्री में बतौर जॉब शुरू की थी। खुद को फिट रखने के लिए दौड़ लगानी शुरू और यही मेरा जुनून बन गया। इस जुनून को कायम रखते हुए 10 साल पुरानी नौकरी छोड़ दी।
दिन की शुरुआत सुबह 4 बजे होती थी
दिन की शुरुआत सुबह 4 बजे होती थी। अलग-अलग मिजाज वाले शहरों से निकलते समय कई बार बीमार हुई। श्रीनगर बेहद ठंडा था तो वहीं पंजाब और दक्षिण के शहरों में गर्मी ज्यादा थी इसलिए डिहाइड्रेशन से जूझना पड़ा। कुछ शहरों में इतनी ज्यादा धूल-मिट्टी थी कि फेफड़ों में इंफेक्शन हो गया। 4 दिन तक जालंधर में भर्ती रही। इस दौरान कुछ स्थानीय बुजुर्ग लोगों ने मदद की। अगर बीमारी नहीं पड़ती तो शायद ये सफर 87 दिनों से भी पहले पूरा हो गया होता। सफर की खास बात रही कि जिसे भी मेरे बारे में पता चलता वो भी मेरे कुछ दूर तक दौड़ता था। पुलवामा से गुजरते समय सेना ने जवान भी मेरी जर्नी के साथी बने।
रनिंग में रिकॉर्ड बनाने में तीन पड़ाव
- पहला : 16 दिनों में 720 किमी दौड़कर ‘गोल्डन ट्राईएंगल’ पूरा किया
बात तीन साल पुरानी है, जब मैंने रनिंग इवेंट में हिस्सा लेना शुरू किया। धीरे-धीरे मैराथन का हिस्सा बनीं। फिटनेस के लिए दौड़ना मेरा पैशन बन गया और 2018 ग्रेट इंडियन गोल्डन ट्राईएंगल (नई दिल्ली, आगरा, जयपुर) के 720 किमी सफर महज 16 दिनों में पूरा करके रिकॉर्ड बनाया। यह पहली कामयाबी थी जब नाम इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड में दर्ज हुआ।
- दूसरा : 87 दिनों तक रोजाना 50 किलो मीटर दौड़ती रहीं
पहले पड़ाव के बाद मैंने ‘रन फॉर होप’ मिशन की शुरुआत की। होप यानी H - Humanity (मानवता), O - Oneness (एकता), P - Peace (शांति), E - Equity (समानता)। रनिंग के साथ देश के कोने-कोने में एकता, शांति और समानता का संदेश देने का लक्ष्य बनाया। सफर की शुरुआत कश्मीर के श्रीनगर से 25 अप्रैल 2019 से हुई जो 21 जुलाई को कन्याकुमारी में खत्म हुआ। मैं इस दौरान 22 शहरों से गुजरी और रोजाना 50 किलोमीटर दौड़ी। 4035 किमी का सफर 100 दिनों में पूरा करने का लक्ष्य बनाया जिसे 87 दिनों में पूरा किया। इसे गिनीज रिकॉर्ड में शामिल किया गया।
- तीसरा : अब 6 हजार किमी के स्वर्णिम चतुर्भुज को 150 दिनों में पूरा करने की तैयारी
अब दौड़ के तीसरे पड़ाव की तैयारी कर रही हूं। स्वर्णिम चतुर्भुज (दिल्ली, कलकत्ता, चेन्नई और मुंबई की दूरी) को महज 150 दिनों में पूरा करने का लक्ष्य बनाया है। इसकी शुरुआत 8 फरवरी से हुई है। 2016 तक ये रिकॉर्ड पुणे की मिशेल ककाड़े के नाम है। उन्होंने 193 दिन, 1 घंटे, 9 मिनट में 5963.4 किलो मीटर का सफर तय किया था। मैंने इसे पूरा करने के लिए 150 दिनों का टार्गेट रखा है।
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‘क्वीन ऑफ डार्क’ कहलाती हैं न्याकिम गेटवेक, कहती हैं - खूबसूरती के लिए गोरा रंग जरूरी नहीं
वीमेन डेस्क. सूडानी मूल की अमेरिकी फैशन मॉडल न्याकिम गेटवेक को गोरा दिखना पसंद नहीं। गहरे काले रंग के कारण लोग उन्हें 'क्वीन ऑफ डार्कनेस' कहते हैं। उसे अपनी डार्क स्किन टोन पर गर्व है। खुद को काला कहने में शर्म नहीं आती।। ब्लीच करना जरूरी नहीं समझती। नस्लीय तानें भी खूब झेलें लेकिन न तो अपनी सोच बदली और न इरादे। मॉडलिंग की दुनिया में यही काला रंग उनकी खूबसूरती को बयां कर रहा है।
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर 'बंदिशों की बेड़ियां, बराबरी की कहानियां' थीम की अहम किरदार हैं न्याकिम। जो कहती हैं- हमें खूबसूरत लगने के लिए गोरा दिखने की जरूरत नहीं। उनकी कहानी उन्हीं की जुबानी....
ऐसे बनीं 'क्वीन ऑफ डार्कनेस'
'क्वीन ऑफ डार्कनेस' का तमगा मुझे मेरे फैंस ने कब दिया ये तो मुझे भी नहीं पता। फैंस ट्विटर पर इस नाम की पोस्ट के साथ मेरे तस्वीर डालते थे। इंस्टाग्राम पर मुझे 'क्वीन किम' के नाम जाना गया। मैं उनकी शुक्रगुजार हूं जिन्होंने मुझे यह सम्मान दिया। जिसकी शुरुआत इंस्टाग्राम से हुई। जगह सूडान थी और अप्रैल का महीना था। मैं बेरोजगार थी। मैंने अपने कुछ दोस्तों के साथ इंस्टाग्राम पर मस्ती करती हुई तस्वीर पोस्ट करती थी। इस दौरान मुझे एक इंटरव्यू के लिए कहीं पहुंचना था तो मैंने उबर कैब बुक की और ड्राइवर को कॉल किया। मौके पर ड्राइवर पहुंचा। जब उसने मुझे देखा तो उसके हावभाव ऐसे थे मानो वह पहली बार ऐसा कोई इंसान देख रहा था। मैं कार में बैठी, तो उसने बातचीत शुरू कर दी।
ड्राइवर बोला, तुम कहां से हो?
मैंने जवाब दिया, मैं सूडान से हूं।
उसने कहा, अच्छा, तुम काफी काली हो, इसे सुनकर मैं खूब हंसी और उससे कहा, हां, मुझे मालूम है।
उसने मुझसे एक सवाल पूछने की परमिशन मांगी, मैंने दे दी।
उसने कहा, तुम्हारा रंग काला है, तुम ब्लीच करा लो, इसके लिए मैं 10 हजार डॉलर दूंगा।
मैंने कहा, तुम ऐसा क्यों करना चाहते हो?
उसने कहा, मैं तुम्हे रंग को देखकर डर गया था, तुम्हे कोई कैसे पसंद करेगा, जॉब इंटरव्यू में तुम्हे कोई अपॉइंट नहीं करेगा।
मैंने कहा, मैं ऐसा कुछ भी नहीं करूंगी। मुझे फर्क नहीं पड़ता, मुझे खुद से प्यार है, मैं जो हूं बेहतर हूं।
सूडान में बहुत कुछ खोया इसलिए यहां से लगाव भी और गर्व भी
मैं सूडान से जरूर हूं लेकिन हमेशा ऐसे माहौल में पली-बढ़ी जहां अलग-अलग स्किन टोन वाले लोग थे। दक्षिण सूडान में दूसरे ग्रह युद्ध (1983 - 2005) के दौरान घरवालों ने बहुत कुछ खोया।
युद्ध में हुईं 20 लाख मौत में मेरा भाई और बहन भी थी। भाई-बहन की मौत के बाद परिवार टूट गया। लिहाजा, घरवालों को जगह छोड़नी पड़ी। मेरा जन्म इथियोपिया में हुआ। यहां से परिवार
केन्या पहुंचा और शरणार्थियों के कैंप में शरण ली। 14 साल की उम्र में परिवार के साथ अमेरिका आ गई। अलग-अलग देशों में पढ़ाई हुई। मॉडलिंग के लिए मिनेपोलिस चुना और यहीं रहने लगी लेकिन आज भी मुझे सूडान से लगाव और गर्व दोनों है।
मॉडलिंग की शुरुआत में ब्लीचिंग की सलाह मिली
बचपन से लेकर अमेरिका तक मॉडलिंग तक के सफर में मेरे काले रंग पर लोगों ने कमेंट किया, बुलिंग किया और परेशान भी किया। मॉडलिंग करियर की शुरुआत में यह एक बड़ा मुद्दा था।
मेरी बहन जब अमेरिका पहुंची तो उसने स्किन टोन को हल्का करने के लिए ब्लीचिंग का सहारा लिया। मॉडलिंग की शुरुआत में भी मुझे यही सलाह दी गई लेकिन मेरा जवाब था 'न'। जब आप ब्लीच कराते हैं तो इंसान के तौर पर खुद को खत्म करने लगते हैं।
मैं सोशल मीडिया पर भी उतनी ही एक्टिव हूं जितनी रैंप पर मॉडलिंग करते समय। जिस रंग को लेकर लोग शर्मिंदा होते हैं वहीं मेरे लिए सबसे मजबूत पिलर साबित हुआ है। लेकिन मेरा मकसद ब्लैड मॉडल को चर्चा में लाना नहीं है। मैं इसे ट्रेंड नहीं बनाना चाहती। मैं बस इंडस्ट्री को यह बताना चाहती हूं कि हम यहां काम करने में समर्थ हैं। मैं फील्ड को छोड़कर नहीं जाऊंगी क्योंकि ब्लैक इज बोल्ड, ब्लैक इज़ ब्यूटीफुल। साथ ही इंडस्ट्री को यह भी बताना है कि अमेरिकन मानक अफ्रीकन मूल्यों को मिटा नहीं सकते।
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हादसे में आंखें गंवाईं, लेकिन हिम्मत ऐसी कि बिना आरक्षण ओडिशा सिविल सर्विसेज में रैंक बनाई तपस्वनी दास ने
वीमेन डेस्क.एक सात साल की लड़की सामान्य जीवन जी रही है। वो रोज स्कूल जाती है दोस्तों के साथ खेलती है। वह बहुत खुश भी है लेकिन तभी एक घटना होती है। आंखों का ऑपरेशन होता है लेकिन डॉक्टर्स की लापरवाही से रोशनी हमेशा के लिए चली जाती है। छह माह बाद आंखों की रोशनी वापस आने की उम्मीद जगाई जाती है लेकिन ऐसा होता नहीं है। जीवन पूरी तरह से बदल जाता है। वह लड़की हिम्मत जुटाती है और कुछ करने का ठानती है।
लोग कहते हैं यूपीएससी की तैयार करो उसमें दृष्टिबाधित बच्चों को आरक्षण मिलता है लेकिन वह बिना आरक्षण के सफलता का रास्ता तय करती है। ओडिसा लोक सेवा आयोग की परीक्षा में टॉप करते एक सफलता का वो पैमाना सेट करती है जिसे कोई आसानी से नहीं पार कर सकता है। यह कहानी तपस्वनी दास की जो कभी रुकी नहीं, कभी उम्मीद नहीं छोड़ी और आज वो कर दिखाया जो बहुत कम लोग हासिल कर पाते हैं।
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर 'बंदिशों की बेड़ियां, बराबरी की कहानियां' थीम की एक और अहम किरदार हैं ओडिसा की तपस्वनी दास। वह कहती हैं सफलता और संघर्ष एक-दूसरे जुड़े हैं बिना संघर्ष सफलता नहीं मिलती। दैनिक भास्कर से हुई बातचीत में उन्होंने बताई अपनी कहानी। पढ़िए उनकी कहानी उन्हीं की जुबानी...
ओडिसा में दृष्टिबाधित के लिए अंग्रेजी मीडियम स्कूल नहीं
तपस्वनी कहती हैं कि जब आंखों की रोशनी गई तो मन में सवाल थे कि ये वापस आएगी या नहीं। लेकिन एक बात तय थी कि इतनी जल्दी कुछ बदलने वाला है नहीं। तभी मैंने तय किया कि एक मजबूर नहीं मजबूत इंसान की तरह लाइफ को जिऊंगी। खुद में बदलाव लाना शुरू किया लेकिन ये आसान नहीं था। पहले पढाई एक अंग्रेजी मीडियम स्कूल में हुई थी लेकिन हादसा होने के बाद बहुत कुछ बदला। ओडिसा में दृष्टिबाधित लोगों के लिए अंग्रेजी स्कूल न होने के कारण मुझे उड़िया मीडियम में पढाई करनी पड़ी।
यूनिवर्सिटी टॉपर होना सबसे खूबसूरत पल
ये सब काफी मुश्किल था लेकिन मेरा मानना है कि सफलता के लिए संघर्ष जरूरी है। आप कैसे जीवन में आने वाली बाधाओं का सामना करते हैं और उससे उबरते हैं, यही आपको सफलता की ओर ले जाता है। 10वीं करने के बाद 11वीं से एक बार फिर पढ़ाई सामान्य बच्चों के साथ करनी शुरू की जो थोड़ा मुश्किल रहा। पॉलिटिकल साइंस से ग्रेजुएशन किया और अब उत्कल यूनिवर्सिटी से पोस्ट ग्रेजुएशन कर रही हूं।
जब मेरा ग्रेजुएशन का रिजल्ट आया उस दिन तारीख थी 11 जून 2018। मैं यूनिवर्सिटी में टॉपर थी, जो मेरे जीवन का एक खूबसूृरत पल था।
9वीं कक्षा में तय किया था लक्ष्य
जब मैं 9वीं कक्षा में थीं जब ओडिसा सिविल परीक्षा में बैठने का लक्ष्य तय किया। जो देख सकते हैं वो किताबे पढ़ सकते हैं लेकिन मेरे लिए यह मुश्किल था। मैंने किताबों की ऑडियो रिकॉर्डिंग से पढ़ाई की जो मेरे लैपटॉप में रहती थीं। किताबों के पन्नों को स्कैन करके इन्हें ऑडियो में तब्दील करने के बाद मैं इन्हें समझ पाती थी। मुश्किले आईं लेकिन कभी खुद को अपने सपने से दूर नहीं होने दिया।
हाल ही में ओडिसा की लोक सेवा आयोग की परीक्षा पास की। ओडिशा में ऐसा दूसरी बार हुआ है जब किसी दृष्टिबाधित उम्मीदवार ने सिविल सर्विसेस एग्जाम पास किया है। 2017 में ओडिशा सिविल सर्विसेस परीक्षा में आठ दृष्टिबाधित लोग पास हुए थे।
ऐसे हासिल करें सफलता
जब आप कोई लक्ष्य तय करते हैं और उसे पाने में बार-बार असफलता हाथ लगती है तो निराश मत हों। अपने असफल होने की वजह तलाशें। जो भी कमी या खामी नजर आए उसे ही अपना सबसे मजबूत पक्ष बनाकर आगे बढ़ें।
दुनियाभर की महिलाओं को मेरा संदेश
जीवन में कभी भी निराश महसूस न करें। अपने दिल की सुनें, दूसरों की नहीं। हर इंसान की लाइफ में अच्छी-बुरी दोनों घटनाएं होती हैं। कोई ऐसा नहीं है जिसने सिर्फ अच्छा समय जिया हो या सिर्फ बुरा समय देखा हो। सारा ध्यान बुरे समय को अच्छे में बदलने में लगाएं। बुरा समय वापस न आए इसकी कोशिश करते रहें। मेहनत करते रहें, आगे बढ़ते रहें।
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होली पर ऐसे बनी रहेगी घर की खूबसूरती, रंगों के त्योहार होली पर इसे खराब होने से ऐसे बचाएं
लाइफस्टाइल डेस्क. घर के इंटीरियर को मेंटेन करना काफी महंगा काम है। ऐसे में रंगों के त्यौहार में होली के समय इसकी खूबसूरती बरकरार रखना कई बार मुश्किल हो जाता हैं। आइए जानें होली में रंगों से घर की चमक को बनाएं रखने के लिए मानसी पुजारा से कुछ खास टिप्स।
नल और शॉवर
होली खेलने के बाद यदि सबसे पहले नहाने जाते हैं तो ऐसे में शरीर पर लगे रंग से नल और शावर खराब होने की पूरी संभावना रहती है कि नहाते वक्त इन चीजों को आप जरूर हाथ लगाएंगे। रंग वाले हाथ लगने से इनकी चमक फीकी पड़ सकती है। होली खेलने से थोड़ा पहले ही बाथरूम के सभी नल और शावर पर पेट्रोलियम जेली लगा सकते हैं। इस तरह इन पर रंग नहीं चढ़ेगा।
फ्लोर
घर में मार्बल या लाइट कलर की फ्लोर है तो होली घर के अंदर नहीं खेलना चाहिए। कुछ रंग ऐसे भी होते हैं जो जमीन पर स्थाई धब्बे छोड़ देते हैं। ऐसे में फ्लोर देखने में खराब लगती है और इसे साफ करना भी बहुत महंगा पड़ता है।
फर्नीचर
लकड़ी के फर्नीचर से रंग का दाग निकालना मुश्किल है लेकिन संभव है। पर यदि लेदर के फर्नीचर पर रंग के धब्बे लग जाएं तो इन्हें निकालना असंभव ही है। बेहतर होगा कि आप अपने घर के पूरे फर्नीचर को पुरानी बेडशीट्स और चादर से ढांक दें। इस तरह आप फर्नीचर को होली के रंग से खराब होने से बचा सकते हैं।
सिंक
होली खेलने के बाद सीधे सिंक पर हाथ-मुंह धोने नहीं जाना चाहिए वरना रंग से सिंक पूरी तरह से खराब हो जाएगा। अच्छा होगा कि पहले से ही बाहर बालकनी में या गार्डन में एक पोर्टेबल टब भरकर रख लें या होज़ पाइप से पहले रंग साफ कर लें।
हैंडल और नॉब्स
होली खेलने के बाद सबसे पहली चीज़ जो खराब हो सकती है वह हैं दरवाजे के हैंडल। इनपर रंग के दाग लग सकते हैं। ऐसा ना हो इसके लिए होली से एक दिन पहले ही सभी दरवाजों के हैंडल और नॉब्स पर टरपेंटाइन ऑइल या मस्टर्ड ऑइल लगा सकते हैं। ऑइल कोटिंग से इन पर रंग के दाग नहीं लगेंगे। बाद में इन्हें गीले कपड़े से पोंछ सकते हैं।
दीवारें
दीवारों पर हाथों के निशान ना लगें इसके लिए अपने आसपास के हार्डवेयर स्टोर से एंटी-स्टेन वॉर्निश ले आएं और इसका एक कोट दीवारों पर लगा दें। इस तरह आप दीवार को रंग और अन्य चीजों से बचा सकते हैं। दूसरा उपाय यह है कि घर का सारा फर्नीचर दीवार से सटाकर रख दें जिससे दीवार के पास कोई नहीं जा ही ना पाए।
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इन तरीकों से फिट करें छोटे कमरे में ज्यादा सामान और अपने रूम को दें बेहतरीन लुक
लाइफस्टाइल डेस्क. अक्सर कमरे में सही रखें ढंग ना रखे सामान आपके घर के लुक को बिगाड़ सकते है। ऐसे में कमरा हमेशा ही अस्त- व्यस्त दिखाई पड़ता है, जो कई बार आपकी इमेज भी खराब कर सकता है। वर्षा एम बता रहीं है इससे बचने के लिए के तरीके जिसे अपना कर आप अपने कमरे और घर को शानदार लुक दे सकते है।
1. केन बास्के
केन के खूबसूरत दिखने वाले बड़े बास्केट घर में जरूर रखें। इन्हें हर कमरे में रखा जा सकता है खासकर बेडरूम में इन्हें लॉन्ड्री, चादर या तकिए रखने के लिए बेडसाइट टेबल के नीचे रखा जा सकता है। देखने में ये बिल्कुल खराब नहीं लगते हैं बल्कि कमरे के डेकॉर का हिस्सा ही लगते हैं। डेकोरेटिव हैं, पर की तरह इसे कमरे के किसी भी कोने में रखा जा सकता है। लाइट और डार्क शेड केन में यह बास्केट मिलती हैं। आप अपने कमरे के डेकॉर अनुसार चुन सकते हैं।
2. ट्रॉली
मेटल की ट्रॉली है तो उसे बेड साइड नाइट स्टैंड की तरह इस्तेमाल किया जा सकता है। इसमें अपने नाइट टाइम एसेंशियल्स रख सकते हैं। जैसे- नाइट क्रीम, स्लीप मास्क, पिलो स्प्रे। नीचे केे शेल्फ में ब्लैंकेट्स रखें। सबसे ऊपर थोड़ा सजावट का सामान रख सकते हैं।
3. बेंच
कमरे में एक्सट्रा फ्लोर स्पेस है तो बेड के सामने लकड़ी की बेंच लगा सकते हैं। इस पर बुक्स और मैगजीन के अलावा डेकोरेटिव एक्सेंट्स या रोज काम आने वाली चीजें रखी जा सकती हैं। बेंच के नीचे केन के बास्केट रख कर इनके अंदर भी चादर, तकिए जैसा सामान रख सकते हैं।
4. हेडबोर्ड
बेड के हेडबोर्ड में भी काफी बड़ी स्टोरेज स्पेस निकाली जा सकती है। हेडबोर्ड के ऊपर और साइड में छोटे-बड़े शेल्फ बनवाए जा सकते हैं। इनमें किताबें, घड़ी और अन्य जरूरत का सामान आप एक हाथ की दूरी पर ही रख सकते हैं। डेकोरेटिव स्टोरेज बॉक्स भी यहां रखे जा सकते हैं। ये बॉक्स कलरफुल हों तो पूरे कमरे को आकर्षक लुक मिल सकता है।
5. फ्लोटिंग शेल्फ
अपने छोटे-से बेडरूम को खराब दिखने वाले सस्ते फर्नीचर से भरने की बजाय दीवार पर एक छोटा फ्लोटिंग शेल्फ लगवाया जा सकता है जिसे नाइट स्टैंड की तरह भी उपयोग किया जा सकता है। यदि फिर भी जगह कम पड़ रही है, तो इसी स्टैंड के नीचे वोवन या मेटल बास्केट भी रखी जा सकती है।
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मार्केट में कई तरह के फ्रीज में से कैसे चुनेंगे अपने लिए सबसे बेहतर फ्रिज? जानें एक्सपर्ट की राय
लाइफस्टाइल डेस्क.गर्मी के आते ही कई तरह की तैयारियां शुरू हो जाती हैं। इन्हीं में से एक है समर सिजन में घर के लिए फ्रीज का चुनाव। अगर आप भी इस गर्मी अपने घर के लिए फ्रीज खरीदने जा रहे हैं, तो अमी कैप्रिहन आपको बताएंगे फ्रीज के चयन का सही तरीका।
कैपेसिटी- फ्रिज चुनते हुए सबसे पहले उसकी क्षमता पर ध्यान दें। यह काफी हद तक परिवार के साइज़ और खाने की आदतों पर निर्भर करता है। जैसे-
- बैचलर हैं या एक-दो लोगों का परिवार है तो आपके लिए 200 लीटर से कम क्षमता वाला फ्रिज ही काफी होगा।
- तीन-चार लोगों के छोटे परिवार के लिए 200-350 लीटर तक का फ्रिज ठीक है।
- बड़े परिवार जिसमें पांच या पांच से अधिक लोग हैं 400 लीटर या इससे ज्यादा का फ्रिज लगेगा।
डाइमेंशन- घर में मॉड्यूलर किचन है तो फ्रिज का डाइमेंशन देखना जरूरी है। अगर ध्यान ना दिया तो आप गलत साइज का फ्रिज ले आएंगे जो किचन में कहीं भी फिट नहीं हो पाएगा।
कितने तरह के फ्रिज
1. सिंगल डोर
फायदे - क्षमता 250 लीटर से कम होती है और डाइरेक्ट कूल टेक्नोलॉजी पर चलते हैं। इन्हें थोड़े अंतराल में मैन्युली डीफ्रॉस्ट करना पड़ता है। दो से तीन लोगों के लिए ठीक है। ज्यादा महंगे नहीं होते हैं, कॉम्पैक्ट होते हैं और डबल डोर फ्रिज की तुलना में ये 30 से 40 प्रतिशत तक कम बिजली खाते हैं।
कमी- फ्रीजर में बहुत कम जगह मिलती है।
2. डबल डोर
नाम से ही समझा जा सकता है कि इनमें फ्रीजर और रेफ्रिजरेटर के अलग दरवाजे होते हैं। आम तौर पर इनकी क्षमता 200 से 700 लीटर तक होती है। 3 से 5 लोगों के परिवार के लिए आदर्श होते हैं। फ्रीज़र बड़ा होता है, एडजस्टेबल शेल्व्स और फ्रॉस्ट फ्री तकनीक के साथ आते हैं।
सलाह- साइड- बाइ- साइड रेफ्रिजरेटर लेने से पहले अपनी जरूरत को एक बार और जान लें क्योंकि इनका फ्रीजर काफी बड़ा होता है। ज्यादातर भारतीय परिवार को इतने बड़े फ्रीजर की जरूरत नहीं होती है। उनके लिए
बड़ा डबल डोर रेफ्रिजरेटर ही काफी होता है।
3. कंप्रेसर - ज्यादातर फ्रिज में साधारण कंप्रेसर होते हैं जो सेट की गई स्पीड पर ही काम करते हैं।
4. एनर्जी रेटिंग- जितनी ज्यादा रेटिंग होगी उतनी ही बिजली कम लगेगी। इससे यह भी पता चलता है कि बिजली के मामले में आपका फ्रिज आखिर कितना किफायती है।
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Friday, 6 March 2020
दुनिया में हर 10 में से 9 लोग महिलाओं के साथ भेदभाव करते हैं, पाकिस्तान में ऐसा करने वाले 99% और भारत में 98%
एजुकेशन डेस्क. लैंगिक समानता के क्षेत्र में सुधार के बावजूद आज भी करीब 90% लोग ऐसे हैं, जो महिलाओं के प्रति भेदभाव या पूर्वाग्रह रखते हैं। 28% लोगों ने तो पत्नी की पिटाई तक को जायज बताया है, जिनमें महिलाएं भी शामिल हैं।
यह खुलासा संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) की अपनी तरह के पहले जेंडर सोशल नॉर्म्स इंडेक्स में हुआ है। इसे दुनिया की 80% आबादी वाले 75 देशों में अध्ययन के आधार पर बनाया गया है। इंडेक्स के मुताबिक आधे से ज्यादा लोग मानते हैं कि पुरुष श्रेष्ठ राजनेता होते हैं, जबकि 40% के मुताबिक पुरुष बेहतर कारोबारी एग्जीक्यूटिव होते हैं, इसलिए जब अर्थव्यवस्था धीमी हो तो इस तरह के काम या नौकरियां पुरुषों को मिलनी चाहिए। हालांकि 30 देशों में महिलाओं के प्रति सोच सुधरी है।
दुनिया के सिर्फ 10 देशों में सत्ता की प्रमुख महिलाएं
यूएन के मानव विकास के प्रमुख पैड्रो कॉन्सिकाओ ने कहा- स्कूलों में लड़कियों की संख्या लड़कों के बराबर हो गई है। 1990 के बाद से मातृत्व से जुड़ी बीमारियों से मौतों की संख्या भी 45% घटी है। इसके बावजूद लैंगिक असमानता बनी हुई है, खास तौर पर ऐसे क्षेत्रों में जहां ताकत या पावर से जुड़े पदों पर चुनौती मिलती हो। एक जैसे काम के लिए उन्हें पुरुषों से कम वेतन मिलता है। वरिष्ठ पदों पर पहुंचने के अवसर भी कम मिलते हैं। यूएनडीपी ने कहा है कि पुरुष और महिलाएं एक ही तरह से मतदान करते हैं, मगर दुनिया में महज 24% संसदीय सीटों पर महिलाएं चुनी गई हैं। 193 में से सिर्फ 10 देशों में सत्ता की प्रमुख महिलाएं हैं। पुरुषों की तुलना में वे ज्यादा घंटों तक काम करती हैं, फिर भी बहुत से कामों का उन्हें कोई मेहनताना भी नहीं मिलता।
इन देशों में सबसे ज्यादा भेदभाव
पाकिस्तान | 99.81% |
कतर | 99.33% |
नाइजीरिया | 99.33% |
मलेशिया | 98.54% |
ईरान | 98.54% |
भारत | 98.28% |
घरेलू कामों की सैलरी मिलती, तो पिछले साल 774 लाख करोड़ कमा लेतीं
ऑक्सफैम के मुताबिक महिलाओं को बच्चों की देखभाल, खाना पकाने जैसे घरेलू कामों के लिए न्यूनतम वेतन मिलता, तो वे पिछले साल 774 लाख करोड़ रुपए कमा लेतीं। यह फॉर्च्यून-500 में शामिल दुनिया की सबसे बड़ी 50 कंपनियों की कमाई के बराबर है। इनमें एपल, वॉलमार्ट, गूगल जैसी कंपनियां भी शामिल हैं।
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Gold to silver ratio tests three-decade high, eyes 1991 level of 100
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Antony Waste extends IPO closing to March 16, cites exceptional volatility
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Sebi proposes to impose restrictions on corporate guarantees at listed cos
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Market plunges over sell-off in banking stocks, investors lose Rs 3.28 trn
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Gold zooms by Rs 2,000 in a week on coronavirus, silver up marginally
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Market Wrap, March 6: Sensex tanks 894 pts, Nifty at 10,989
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Gold set for biggest weekly gain since Oct 2011 over Coronavirus fears
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Tata Motors skids 10% as China sales slip 85% in Feb; stk down 37% in 1 mth
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Thursday, 5 March 2020
MFs urge investors to de-link YES Bank account and scout for alternatives
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JB Chemicals nears record high in weak market, rebounds 8% from day's low
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RBI's move to take control of YES Bank puts Mutual Funds on the edge
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SBI-YES Bank fallout: SBI Cards may see some negative impact on listing
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Nifty Auto, Metal, Media indices hit 52-wk lows on Coronavirus woes
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Will OPEC and allies be able to convince Russia for biggest oil cut?
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Black Friday, again: Here are three key reasons why market crashed today
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YES Bank tumbles 30% after RBI imposes moratorium; SBI plunges 11%
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Banks, financials tumble; RBL, AU Small Finance, IndusInd Bank dip over 14%
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As prices dip, OPEC backs biggest oil cut since 2008 financial crisis
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Chris Wood ups China stake amid coronavirus fear; trims India exposure
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Investing during Coronavirus woes: Markets not heading into bottomless pit
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Outlook & trading strategies for Silver, Nickel by Tradebulls Securities
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Market Ahead, March 6: Top factors that could guide markets today
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Derivatives strategy for Biocon by Nandish Shah of HDFC Securities
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MARKET LIVE: SGX Nifty tanks over 300 points amid global sell-off
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Today's picks: Asian Paints to Hindalco, hot stocks to watch on Friday
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Sebi proposes new mechanism to make e-voting convenient for shareholders
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SBI Cards IPO subscribed 26 times despite tough market conditions
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Women fund managers outperform men on delivering returns: Morningstar study
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Cotton, yarn prices fall as coronavirus brings exports to China to a halt
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MFs plan to increase headcount as they gear up for commodity play
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Market Wrap, March 5: Sensex gains 61 pts; Nifty at 11,269
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घरेलू हिंसा पीड़ितों के लिए ट्रेन यात्रा मुफ्त, दो तिहाई पीड़ित बोलीं- पैसा नहीं होने की वजह से यातनाएं झेलनी पड़ीं
लाइफस्टाइल डेस्क. ‘अगर मैं आर्थिक रूप से स्वतंत्र होती, तो जरूरतों के लिए किसी पर निर्भर नहीं रहना पड़ता। पैसे न होने से एक ऐसे रिश्ते को लंबे समय तक झेलना पड़ा, जहां रोज मारपीट होती थी बच्चे की वजह से मुझे मजबूरन ऐसे व्यक्ति के साथ रहना पड़ा, जिसने क्रूरता की सारी हदें तोड़ दी थीं। क्योंकि आर्थिक रूप से मजबूत होने से कानून भी उन्हीं का साथ देता। पैसे नहीं होते, तो आप बुरी तरह से जाल में फंस जाते हैं और छटपटाने के अलावा कुछ नहीं कर सकते।’
ये मुश्किलें ब्रिटेन की उन महिलाओं की हैं, जो घरेलू हिंसा का शिकार हुईं और न चाहकर भी उसे झेलती रहीं। जिंदगी को लगभग नर्क कर देने वाले रिश्ते में बंधे रहने की सबने एक बड़ी वजह बताई- आर्थिक स्वतंत्रता न होना। अमेरिका, यूरोप में ऐसी महिलाओं के लिए शेल्टर होम होते हैं, लेकिन जिंदगी गुजारना बेहद मुश्किल होता है। ऐसे में आर्थिक स्वतंत्रता सबसे बड़ी ताकत होती है। घरेलू हिंसा का शिकार ऐसी ही महिलाओं के लिए ब्रिटेन की ग्रेट वेस्टर्न रेलवे ने मुफ्त टिकट की घोषणा हुई है, ताकि आने-जाने और नौकरी ढूंढने में मुश्किलें न झेलनी पड़े। इसकी कार्यकारी सीईओ एडिना क्लेयर कहती हैं- यह उनके इस बड़े संकट में छोटी सी मदद है।
30% महिलाएं घरेलू हिंसा का शिकार
यूएन वूमन की रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में करीब 30% महिलाएं घरेलू हिंसा का शिकार हैं। अमेरिका और यूरोप में अप्रैल-दिसंबर के बीच घरेलू हिंसा की वजह से बेघर कर दी गईं महज 2% महिलाओं को शेल्टर या अन्य मदद मिल पाई। एक सर्वे में घरेलू हिंसा का शिकार दो तिहाई महिलाओं ने कहा कि पति ने पैसों के दम पर उन पर नियंत्रण लगा रखा था।
घरेलू हिंसा से ब्रिटेन को सालाना 6.13 लाख करोड़ का नुकसान
कॉमनवेल्थ की रिपोर्ट के मुताबिक घरेलू हिंसा की वजह से ब्रिटेन को सालाना 6.13 लाख करोड़ रुपए का नुकसान होता है। बच्चों की देखभाल, पुलिस, कोर्ट लोग काम पर नहीं जा पाते, जिससे नुकसान होता है।
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Wednesday, 4 March 2020
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Tuesday, 3 March 2020
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Monday, 2 March 2020
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Sunday, 1 March 2020
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