It simply sucks. I don't personally read blog posts word by word, so how can I except you to read them too? I known ther are people who are kind enough to read a 10,000 word long blog article from start to finish, but I think that's a minority.why waste your time ? Let me..
फर्नीचर महज़ उपयोग की चीज नहीं होती बल्कि ये कमरे के रूप को संवारते हैं और उसे एक पहचान देते हैं। इस पहचान से आपकी रुचि और रहन-सहन उजागर हो जाता है। इसलिए
फर्नीचर प्रबंधन बेहद अहम पहलू है, इसका ध्यान रखें।
फर्नीचर का चुना जाना अपने आप में केवल सौंदर्य या सुविधा बोध का विषय नहीं है। इसमें नाप-तौल के अलावा सापेक्षता के सिद्धांत का भी दख़ल है।
किस कमरे में कितनी ऊंचाई वाला, किस अन्य फर्नीचर का साथ देने में सक्षम, किस वस्तु का बना हुआ और किस तरह की सजावट वाला फर्नीचर इस्तेमाल करना है, ये बुनियादी बातें हैं। फिलहाल उपलब्ध सामान को ही दोबारा जमाकर देखिए।
कमरे का मुआयना
सबसे पहली और ज़रूरी बात, अपने कमरे को ग़ौर से देखें। उसका आकार, दीवारों की लंबाई, चौड़ाई, उसमें कौन-सा सामान रखना ज़रूरी है, किसे हटाया जा सकता है। ये सब पहले जांच लें। खिड़कियों की संख्या, उनकी ऊंचाई, दरवाज़े की स्थिति आदि भी देखें। उसके बाद ही दोबारा से व्यवस्थित करने के बारे में सोचें।
फोकल पॉइंट चुनें
इसके इर्द-गिर्द ही सबकुछ तय होगा। यह फोकल पॉइंट ज़रूरी नहीं कि कोई फर्नीचर पीस ही हो। यह कोई खिड़की हो सकती है। इसको ध्यान में रखते हुए कमरे में सामान की जमावट की योजना बनाएं। जो कुछ भी जमाएं, उसे फोकल पॉइंट का ध्यान रखते हुए जमाएं। जैसे खिड़की के नीचे टेबल रखते हुए उसके आसपास कुर्सियां जमाना। पर्दों को भी ऐसा ही चुनें कि खिड़की फोकस में रहे।
कमरे का मेकअप
आपने कमरे का चेहरा बना दिया, तो अब थोड़ा मेकअप कर दीजिए। यानी यहां कुछ ऐसे फर्नीचर पीसेस रखिए, जो उसकी जमावट में बाधा न बनें और ख़ूबसूरत भी लगें।
गतिविधियों का ध्यान
कमरे में आवाजाही कितनी होगी, दिन में कितनी बार होगी, किसकी होगी आदि का ध्यान रखिए। ऐसा न हो कि बहुत सुंदर सामानों वाला रैक ऐसी जगह पर रख दिया जाए, जहां से उसे देखा ही न जा सकता हो या कोई कॉफ़ी टेबल बीच रास्ते में आती हो।
इसके अलावा, यह भी ध्यान रखें कि किसी भी कमरे में बिलकुल सीधा रास्ता न छूटता हो, ख़ासतौर पर अगर घर में छोटे बच्चे या पालतू हों तो। इन्हें सीधी जगह मिलते ही ये दौड़ लगा देते हैं, जिससे इन्हें फर्नीचर आदि से चोट लग सकती है।
बेंच भी है विकल्प
कमरे को नया अंदाज़ देना चाहते हैं तो बेंच रख सकते हैं। बिना पुश्त (पीठ) वाले फर्नीचर जैसे तख्त या बेंच रास्ते में नहीं आते और इनसे कमरा खुला-खुला दिखता है।
छोटे मोढ़े भी चुनें
बांस के फर्नीचर के ख़ूबसूरत मोढ़े दिखने में बेहद अलग से लगते हैं। कमाल की बात ये है कि ये काफ़ी कम क़ीमत में आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं। इनकी जमावट को बार-बार सुविधानुसार बदला जा सकता है।
चौकियां जमाएं
पूजन आदि में प्रयुक्त पुरानी चौकियों को रंगकर नया कर लें और इनका कमरों में इस्तेमाल करें। इनकी ऊंचाई कम होने के कारण ये कमरे के विजन में रुकावट नहीं डालतीं। इन पर सजावटी सामान के अलावा पौधे भी रख सकते हैं। ये थोड़ा-सा पारंपरिक लुक देने में भी सहायक हैं।
31 साल की ऊर्जा अपने पति निकुंज के साथ मुंबई में रहती हैं। उनके परिवार में कभी किसी को कैंसर नहीं हुआ। इस बारे में कभी सोचा भी नहीं था कि इतनी बड़ी बीमारी उन्हें भी हो सकती है।
लॉकडाउन का वक्त उन पर कुछ इस तरह से भारी हुआ, जिसका अंदाजा खुद उन्हें भी नहीं था। ऊर्जा ने 30 मार्च से अपना कैंसर ट्रीटमेंट शुरू किया था। उन्हें 14 अगस्त के दिन डॉक्टर ने कैंसर फ्री बताया। ऊर्जा ने कैंसर से किस तरह जंग जीती और किन तकलीफों का सामना किया, वे अपनी आपबीती को शब्दों के माध्यम से कुछ इस तरह बयां कर रही हैं:
मैं वह वक्त नहीं भूल सकती, जब कैंसर की शुरुआत हुई थी। मुझे खाना निगलने और चबाने में तकलीफ हो रही थी। इसलिए मैंने मुंबई में गेस्ट्रोएंट्रोलॉजिस्ट वेदांत कारवीर को दिखाया। उन्होंने मुझे एंडोस्कोपी कराने की सलाह दी। एंडोस्कोपी करने के दौरान उसकी नली मेरे गले में नहीं जा रही थी। तभी मुझे ये बताया गया कि मेरे गले में गांठ है।
तब डॉक्टर ने मुझे सीटी स्कैन और खून की जांच कराने की सलाह दी। उन्हीं रिपोर्ट के आधार पर मुझे तत्काल परेल स्थित ग्लोबल हॉस्पिटल जाने के लिए कहा। यहां जांच से पता चला कि गले में 90% ब्लॉकेज है। उस वक्त मेरी हालत इतनी खराब थी कि मैं मुंह से खाना और पानी दोनों नहीं ले पा रही थी। इसलिए मेरी नाक में नली लगाई गई ताकि मुझे जरूरी पोषण इस नली के जरिये दिया जा सके।
फिर पांच दिन बाद मेरी बायोप्सी की रिपोर्ट आई जिससे ये पता चला कि मुझे इसोफेगस का कैंसर है। मैं कैंसर की तीसरी स्टेज पर पहुंच चुकी थी। जब मुझे इस बीमारी के बारे में पता चला तो मुझे ये लगा कि मेरी जिंदगी खत्म हो गई है। मुझे इस बात का भी आश्चर्य था कि मुझसे पहले मेरे परिवार में कभी किसी को कैंसर नहीं हुआ।
डॉ. रोहित मालदे ने मेरे ठीक होने के 50% चांस बताए। उन्होंने मुझे 35 रेडिएशन और 6 कीमोथैरेपी कराने के लिए कहा। कीमोथैरेपी की वजह से मेरे बाल झड़ गए और रेडिएशन के कारण मेरे गले की स्किन अंदर तक डैमेज हो गई। उसकी वजह से 29 रेडिएशन के बाद ही मेरा ट्रीटमेंट रुकवा दिया गया। ऐसे हालात में मेरा वजन कम होना भी मेरे लिए मुसीबत बना।
मैंने कभी इस बीमारी के बारे में नहीं सुना और न ही मुझे ये पता था कि मेरा इलाज भी हो सकता है। मुझे मेरी जिंदगी में चारों ओर अंधेरा नजर आ रहा था। तब मैंने अपने पति निकुंज के साथ मेरे अंकल जो डॉक्टर भी हैं, अशोक लोहाणा से बात की। उन्होंने हमें नानावटी हॉस्पिटल, मुंबई में डॉ. रोहित मालदे से मिलने की सलाह दी।
जब मैंने अपना ट्रीटमेंट शुरू किया था, तब मेरा वजन 36 किलो था। डॉक्टर्स ने मुझे साफ तौर पर यह बता दिया था कि अगर अब एक किलो भी वजन कम हुआ तो मेरा इलाज नहीं हो पाएगा। तब मैंने नानावटी हॉस्पिटल की चीफ डाइटीशियन डॉ. उषा किरण सिसोदिया की मदद ली। उनके बताए डाइट चार्ट को फॉलो कर पांच महीने में मेरा वजन 46 किलो हो गया।
लॉकडाउन की वजह से मेरे लिए हफ्ते में 5 दिन अस्पताल जाकर ट्रीटमेंट लेना भी मुश्किल रहा। इंफेक्शन के डर से मेरे फूड पाइप को लेकर हमें अतिरिक्त सावधानी बरतनी पड़ी क्योंकि ये डर हमेशा लगा रहता था कि कोरोना महामारी का असर कहीं इस बीमारी की वजह से मुझे या हर वक्त साथ रहने वाले मेरे पति निकुंज को न हो जाए।
जब मेरा इलाज शुरू हुआ था तो मुझे ये लग रहा था कि मैं कैंसर से जंग हार जाऊंगी लेकिन जब मुझे अपनी बॉडी से पॉजिटिव सिग्नल मिलने लगे तो इस बात का अहसास होने लगा कि इस बीमारी को मैं हराकर ही रहूंगी।
नानावटी हॉस्पिटल के डॉक्टर रोहित मालदे और भारत चौहाण ने मेरी भरपूर सहायता की। इस ट्रीटमेंट के दौरान मैंने अपनी आवाज खो दी थी। ऐसे में मेरे माता-पिता, मेरे दोस्त और अस्पताल के स्टाफ ने मेरी मदद की। ऐसे मुश्किल वक्त में मुझे उन लोगों से हौसला मिला जो वीडियो कॉल करके मेरी हिम्मत बढ़ाते थे और मैं अपनी तकलीफ उन्हें सिर्फ साइन लैंग्वेज में समझा पाती थी।
जो लोग इस वक्त कैंसर पेशेंट हैं और अपना इलाज करा रहे हैं, मैं उनसे कहना चाहती हूं कि अपने डॉक्टर पर पूरा भरोसा रखें। इस बीमारी को जानने के लिए पूरी तरह गूगल पर भरोसा न करें क्योंकि कैंसर के हर पेशेंट का हर स्टेज में इलाज अलग होता है। इंटरनेट पर शत प्रतिशत विश्वास करना ठीक नहीं है। इस बीमारी से जुड़ी हर छोटी बात को भी डॉक्टर से पूछें, क्योंकि वही हैं जो आपको सही सलाह और ट्रीटमेंट दोनों दे सकते हैं।
आखिर मैं यही कहूंगी कि हालात चाहे कितने ही मुश्किल क्यों न हों, कभी खुद को कम मत समझो। सबसे पहले अपनी सेहत का ध्यान रखिए।
आपका शरीर जो भी सिग्नल आपको दे रहा है, उसे नजरअंदाज मत करिए क्योंकि समय रहते अगर आपको अपनी बीमारी के बारे में पता चलेगा तो ही आप सही समय पर उसका इलाज करवा सकेंगे।
कोरोनावायरस महामारी ने लोगों की आजीविका को बुरी तरह से प्रभावित किया है जिसके चलते दुनिया भर में लाखों युवा बेरोजगार हैं। संकट के इस समय में ऐसे कई युवा हैं जो काम के नए-नए तरीके खोज रहे हैं।
ऐसा ही एक तरीका 27 साल की बिजयलक्ष्मी टोंगब्रम ने भी खोजा है। वे कमल के फूलों के डंठल से धागे बनाकर रोजगार के अवसर तलाश रही हैं।
बिजयशांति टोंगब्रम अपनी छोटी सी टीम के साथ यह काम कर रही हैं। उन्हें इस काम का आइडिया एक बुजुर्ग महिला से मिला। फिर उन्होंने खुद इस बारे में पता लगाया कि कमल के डंठल से आखिर कैसे धागा बनाया जा सकता है।
कमल के फूलों के डंठल से धागा बनाने से पहले वे कमल के फूलों की चाय भी बना चुकी हैं। उनका चाय वाला प्रयोग सफल होने के बाद एक बार फिर वे इन फूलों का उपयोग धागा बनाने के लिए कर रही हैं।
वे चाहती हैं सरकार इस स्टार्ट अप आइडिया को आगे बढ़ाने में उनकी मदद करे ताकि वे अधिक से अधिक महिलाओं को इस काम के जरिये रोजगार मुहैया करा सकें।
एप्पल पाई केक की तरह ही बनने वाली डिश है। इसका स्वाद बढ़ाने के लिए सेब के टुकड़ों की स्टफिंग की जाती है। बच्चों को इसका स्वाद बहुत पसंद आता है।
एप्पल के साथ अन्य फलों की स्टफिंग करके भी आप इस डिश को हेल्दी और टेस्टी बना सकती हैं। एक बार ये रेसिपी जरूर ट्राय करें। आप अपने साथ बच्चाें को भी इसे बनाने में शामिल कर सकती हैं।
पहले डो बनाएं...
- चलनी में 1 कप आटा, 1/2 कप मैदा, 1/2 छोटा चम्मच नमक डालकर बड़े बाउल में छानें।
- इसमें 1/4 कप जैतून या मूंगफली का तेल डालकर अच्छी तरह से मिलाएं।
- थोड़ा-थोड़ा पानी मिलाते हुए इसे आटे की तरह गूंध लें। इसे मलते हुए नहीं गूंधना है बल्कि मिलाते हुए गूंधना है।
- अब इसे कपड़े से ढंककर एक तरफ़ रखें।
भरावन बनाएं...
- एप्पल पाई का भरावन बनाने के लिए 2-3 सेब छील लें। सेब को बीच से काटकर दो हिस्सों में बांटें।
- फिर इनकी पतली-पतली स्लाइस काटें। अब बड़े बाउल में कटे हुए सेब, 1/4 छोटा चम्मच दालचीनी पाउडर, 1/4 छोटा चम्मच जायफल पाउडर, 1-2 बड़े चम्मच ब्राउन शुगर या सफ़ेद शक्कर, 2 बड़े चम्मच गेहूं का आटा डालकर चम्मच से अच्छी तरह से मिलाएं।
एप्पल पाई ऐसे तैयार करें :
- चकले पर सूखा आटा छिड़कें। गूंधे हुए आटे (डो) को दो बराबर हिस्सों में बांटें।
- इनकी गोल और मोटी रोटी बेल लें। याद रहे कि जिस बर्तन में एप्पल पाई बना रहे हैं उससे रोटी आकार में थोड़ी बड़ी होना चाहिए।
- अब बर्तन पर मक्खन लगाकर चिकना कर लें। एक रोटी को बेलन में लपेटकर सीधे बर्तन पर फैलाएं। इसे हाथों से हल्का-हल्का दबाते हुए सांचे के आकार में ढालें।
- अब इसमें सेब डालकर फैलाएं। ऊपर से कुछ बूंदें जैतून के तेल की फैलाएं। दूसरी रोटी सेब के ऊपर रखें।
- रोटी की किनारों को पहली यानी तली की रोटी के किनारों के साथ चारों तरफ़ से चिपका दें और अंदर की तरफ़ मोड़ दें।
- ऊपर वाली रोटी पर चाकू से डिज़ाइन जैसा चीरा लगा दें। ब्रश की मदद से ऊपर दूध लगाएं।
- अब ओवन को 375°F (200°C) पर प्रीहीट करें। इसमें एप्पल पाई को 50-60 मिनट तक सुनहरा होने तक बेक करें। लीजिए एप्पल पाई तैयार है।
बदरून्निसा की उम्र 20 साल है। वे श्रीनगर में रहती हैं और अपनी बनाई सूफी पेंटिंग के माध्यम से लोगों को इंस्पायर करती हैं। बदरून्निसा ने सबसे पहले अपनी मां से पेंटिंग बनाना सीखा।
उसके बाद एक ऑस्ट्रेलियन लड़की के साथ वर्कशॉप की। उसने बदरून्निसा को आर्ट थैरेपी सिखाई जिससे दिमाग शांत रहता है। यह रिलैक्स रखने में भी मदद करती है।
जब बदरून्निसा से ये पूछा जाता है कि वे सूफी पेंटिंग ही क्यों बनाती हैं तो वे कहती हैं - ''सूफी संत हमें एकता और शांति का संदेश देते हैं। मेरी बनाई हर पेटिंग मेरा ही आईना है''। बदरून्निसा ने बहुत कम उम्र से पेंटिंग बनाने की शुरुआत की थी।
वे अपनी पेंटिंग के माध्यम से सूफी महिलाओं को लोगों के सामने लाना चाहती हैं क्योंकि इन महिलाओं के बारे में कला के माध्यम से बहुत कम जानकारी हासिल है।
बदरून्निसा ने 8 वी कक्षा से सूफी परंपराओं के बारे में जानने की शुरुआत की थी। इन्हीं सूफी ट्रेडिशन को वे अपनी कला के माध्यम से लोगों के सामने लाती हैं। वे एब्सट्रैक्ट पेंटिंग बनाना पसंद करती हैं। वे चाहती हैं उनकी पेंटिंग के माध्यम से लोग सूफी संतों के बारे में जानें।
तुर्की में बदरुन्निसा की जिन पेंटिंग्स की प्रदर्शनी लगी थी वो मिडिल-ईस्ट क्राइसिस पर आधारित थीं। उनकी पेंटिंग्स आज तक अंकारा यूनिवर्सिटी में हैं। कई बार बदरुन्निसा को अपने महिला होने का नुकसान तब उठाना पड़ता है जब उन्हें अकेले सफर करना हो।
ऐसे में यह सुनने को मिलता है कि लड़की हो, अकेले कहां जाओगी? लेकिन ये सारी बातें बदरून्निसा की राह में रूकावट नहीं बनती। वे इन बातों से दूर कामयाबी की राह खुद बना ही लेती हैं।
Demand for liquefied natural gas is set to increase steadily for several decades helped by economic growth in Asia, industry executives said, with Covid-19 pandemic seen as only a short-term setback
India's palm oil imports in August dropped 13.9% from a year earlier to 734,351 tonnes, a leading trade body said, due to a sluggish recovery in demand as local coronavirus cases continued to rise
The company reported strong performance across all businesses in Q1FY21 despite significant disruptions and ambiguity in the business environment due to Covid 19.
तमिलनाडु के एक बिजनेसमेन ने अपनी दिवंगत पत्नी की याद में मूर्ति बनवाई। उन्होंने इस मूर्ति को सोशल मीडिया पर शेयर किया जिसकी खूब तारीफ हो रही है।
इस बिजनेसमेन का नाम सेथुरमन है जो मदुरैई में रहते हैं। कुछ दिनों पहले ही उनकी पत्नी पिछईमनिम्मल इस दुनिया में नहीं रहीं। पत्नी को गुजरे हुए अभी एक महीना भी नहीं हुआ था और सेथुरमन ने उसकी याद में इस स्कल्पचर को बनवाया।
उस मूर्ति के जरिये उसने पत्नी के गुजर जाने के बाद जिंदगी में आए खालीपन को भरने की कोशिश की है। कुर्सी पर बैठी उनकी पत्नी की मूर्ति को उनके निधन के बाद होने वाली रस्मों के लिए समय पर घर लाया गया था।
सेथुरमन का कहना है कि ''उनकी शादी को 48 साल हो गए। इतने सालों में वे एक दिन भी पत्नी से बिना मिले नहीं रहे''। पिछईमनिम्मल के इस दुनिया से चले जाने के बाद उनके लिए अकेले रहना मुश्किल हो गया। तब उन्होंने पत्नी की याद में इस मूर्ति को बनवाने के बारे में सोचा। इसे उन्होंने अपने घर में पूरे सम्मान के साथ स्थापित किया।
सेथुरमन को मूर्ति बनवाने की प्रेरणा कर्नाटक के एक व्यक्ति द्वारा कुछ दिनों पहले इसी तरह का काम करने से मिली। उन्होंने बताया कि जब मैं उस मूर्तिकार के पास गया तो उसने इसे बनाने से मना कर दिया।
उसके बाद विल्लुपुरम के रहने वाले एक मूर्तिकार प्रसन्ना इसे बनाने को राजी हुए। लगभग 6 फीट ऊंची इस मूर्ति को प्रसन्ना ने एक महीने से भी कम समय में बना दिया। इसे बनाने में फाइबर ग्लास और रबर का इस्तेमाल किया गया है। मदुरैई के एक पेंटर ने इसे फिनिशंग टच दिया।
सेथुरमन ने हेल्थ इंस्पेक्टर के तौर पर अपने करिअर की शुरुआत की थी। लेकिन अपनी पत्नी के कहने पर उसने सरकारी नौकरी छोड़ दी और मदुरैई में खुद का ब्लड बैंक खोला। सेथुरमन के अनुसार, जिंदगी में जब भी मुश्किल आईं, मेरी पत्नी ने हर तरह से मेरा हमेशा साथ दिया।
Morgan Stanley believes the banks could provide aggressively for bad loans (unlike the banking system) and accelerate the pace of loan market share gains as the economy stabilizes
महिलाएं अपनी सुरक्षा के लिए अब हैंड ग्रेनेड रखेंगी और खुद को किसी खतरे में देख इसका इस्तेमाल भी कर सकेंगी। यह हैंड ग्रेनेड जैसा दिखने वाला पीस वायरलेस टेक्नोलॉजी और सिम कार्ड ऑप्शन पर काम करता है।
इसे ताइक्वांडो में सात बार ब्लैक बेल्ट जीत चुकी वाराणसी की रचना चौरसिया ने वैज्ञानिक श्याम चौरसिया के साथ मिलकर तैयार किया है।
प्रधानमंत्री के आत्मनिर्भर भारत अभियान से प्रेरित होकर काशी की रहने वाली रचना ने इसे बनाया है। रचना ने पीएमओ को लेटर लिखकर इस डिवाइस के बारे में बताया है। अगर पीएमओ की ओर से सहमति मिली तो जल्दी ही इसका डिमोंन्स्ट्रेशन लेकर वे इस डिवाइस को मार्केट में लाएंगी।
उनका कहना है कि ग्रेनेड में सिम कार्ड लगा है जिसमें पुलिस, परिजन सहित सात लोगों के नंबर सेव रहते हैं। बटन दबाकर फेंकते ही सभी को कॉल चली जाएगी जिससे उन्हें लोकेशन पता चलेगा।
एक अन्य बटन दबाते ही फायरिंग की तेज आवाजें निकलेंगी जिससे लोगों का ध्यान आकर्षित होगा और वे महिला की मदद को दौड़ सकेंगे। फायरिंग करने पर इससे सिर्फ तेज आवाज आती है। इसे बनाने में 650 रुपए खर्च आया है। इसका वजन करीब 50 ग्राम है। चार्ज करने पर यह करीब एक हफ्ते तक काम करता है। इस डिवाइस के सभी पार्ट इंडियन हैं।
"Stock markets and economies globally do get impacted by events all the time and hence there is no such thing as the right time to invest," Gopalakrishnan says.
The momentum indicators and oscillators on the weekly scale are very well on buy mode. The volatility index --India VIX -- has also started cooling down which is giving comforts to the bulls
TCS is a distant second with market cap of $119 bn; Meanwhile, Mukesh Ambani cements his place as richest man in Asia, seventh-richest globally. His wealth surged by $24.4 bn this year to $83 billion
अम्मा आज फूट-फूटकर रो पड़ीं। बाबूजी की मौत पर भी इस प्रकार बिलख-बिलखकर नहीं रोई थीं। बड़े भाई सोमेश ने तल्ख आवाज़ में कह दिया, ‘अम्मा, तुम भी छोटी-छोटी बातों को लेकर हम तीनों भाइयों में दरार डाल रही हो।’
‘मैं दरार डाल रही हूं? मैं... मैं तुम्हारी अम्मा हूं। हे भगवान!’ इतना कहकर अम्मा फूट-फूटकर रोने लगीं। सोमेश को भी नहीं मालूम था कि अम्मा उसकी बात को इतनी गहराई से पकड़कर बिखर जाएंगी।
उसने मां के सामने अपनी ग़लती को स्वीकार किया, ‘अम्मा, मैंने तो सादे मन से कह दिया था, आपको बुरा लगा तो मुझे माफ़ करना।’
परंतु अम्मा का बिलखना हिचकियों में बदल गया। अपने आप को असमर्थ पाकर सोमेश अपनी बीवी के साथ बाहर निकल गया।
गणेश और चंद्रेश भी आंगन में खड़े थे। उनके चेहरे पर प्रश्नचिह्न देख सोमेश सफ़ाई देने लगा, ‘अम्मा कह रही थीं कि तुम सारे भाई अपना बिजली का मीटर अलग लगवा लो। सब बिजली बर्बाद करते हैं।
मुझे यह बिल्कुल अच्छा नहीं लगा, तो मैंने कह दिया कि आप हम भाइयों में दरार डालना चाहती हो। बस इतनी-सी बात थी और तब से अम्मा रोए जा रही हैं। चुप ही नहीं हो रहीं।’
‘चंद्रेश, तू जाकर अम्मा को शांत कर ले, तेरी बात मान लेंगी।’ गणेश ने चंद्रेश की पीठ पर हाथ रख दिया। सबसे छोटा होने के कारण वह अम्मा का सबसे प्यारा बेटा था।
चंद्रेश मां के कमरे में आ गया, ‘क्या हो गया अम्मा?’ वह उनके पास बैठ गया। चंद्रेश को देखकर अम्मा का रुदन फिर फूट पड़ा।
‘ऐसा न करो अम्मा, बताओ तो सही बात क्या है?’ चंद्रेश की बीवी ने अम्मा को बिठाकर पानी पिलाया। कुछ संभली, तो अम्मा उठ बैठीं।
‘अम्मा, आज आपको क्या हो गया?’ गहरी आत्मीयता से चंद्रेश ने पूछा।
‘बेटे, मैं ख़ुद नहीं जान पा रही हूं, आज मेरा मन इतना भारी क्यों हो गया। बात भी कुछ विशेष नहीं थी परंतु मुझसे यह बिजली की बर्बादी देखी नहीं जाती।’
अम्मा तनिक उत्तेजित हो गईं, ‘ये बात विशेष नहीं कि बिजली का बिल मेरी पेंशन से जाता है परंतु सब साझे की होली समझकर बिजली बर्बाद करने में लगे हैं। इसका मुझे दुख है।’
मां सांस लेकर फिर बोलने लगीं, ‘तुम ही बताओ चंद्रेश, किसी घर का बिल 20 हज़ार रुपए आता है? ₹20 हज़ार में तो एक साधारण परिवार का महीने भर का ख़र्च चल सकता है। बिजली के प्रति तुम सब लापरवाही करो, और तुम्हारे बच्चे तो चालू करके कभी बंद करने का नाम ही नहीं लेते।
सारे घर में बिजली बंद करने का काम मेरा ही रह गया क्या? माना तुम्हारी आर्थिक स्थिति अच्छी है, इस बिल से तुम्हें कुछ विशेष फ़र्क नहीं पड़ता परंतु सुना नहीं है तुमने कि देश में पहले ही ऊर्जा का संकट बना रहता है। फिर ऐसी वस्तु को बर्बाद करना तो राष्ट्रद्रोह है।’
‘परंतु अम्मा हम जितनी बिजली ख़र्च करते हैं, ईमानदारी से उसका बिल अदा करते हैं,’ चंद्रेश ने अम्मा को समझाना चाहा। ‘बेटे, बात बिल देने या न देने की नहीं है। देश के सारे संसाधन हम सबके साझे हैं, जिन पर सबका साझा अधिकार है।
किसी के घर में तो सारी रात एसी बेकार में चलता रहे और दूसरे घर में बिजली न होने के कारण बालक पढ़ ही न पाए। बेटे, हमने उस बालक के हिस्से की बिजली हथिया ली है और हम उसको व्यर्थ लुटाकर पाप कर रहे हैं, पाप।
सीधी-सी बात तुम लोग समझ सकते हो। चूंकि हम बिल चुका सकते हैं, इसी से तो हमें बिजली को व्यर्थ करने का हक़ नहीं मिल जाता।’ लगा अम्मा फिर अपने अध्यापिका वाले दौर में लौट गई हैं।
‘सुनो, अम्मा को यहीं नाश्ता करवा दो, मैं भी अपना नाश्ता लेकर आता हूं,’ अपनी पत्नी को बताकर चंद्रेश उठ गया।
अम्मा अब बेहतर महसूस कर रही थीं। आज उन्हें चंद्रेश के पापा याद आ गए। उनके जाने के इतने साल बाद आज अचानक सोमेश के कठोर वचन सुनकर अम्मा का मन भर आया था। वे सारी उम्र तीनों भाइयों को जोड़ने की कोशिश करती रहीं।
अपने अध्यापन काल में भी कक्षा में सदैव एकता का पाठ पढ़ाती रहीं। अपने घर में बिजली की बचत करती रहीं और अपने छात्रों को सदैव बिजली बचाने का संदेश देती रहीं। तब से आज तक बिजली बचाने की आदत बन गई।
घर में हो या घर से बाहर, कहीं भी बिजली बर्बाद होती दिखाई देती है तो अम्मा उसके ख़िलाफ़ आवाज़ ज़रूर उठाती हैं।
चंद्रेश और उसकी पत्नी मां का नाश्ता लिए कमरे में आ गए। ‘मां, परिवार के सभी सदस्यों ने मिलकर फ़ैसला किया है कि जो भी घर की बिजली बर्बाद करेगा, उस पर हर बार ₹50 रुपए का जुर्माना लगेगा।
जुर्माने तथा बिजली के बिल से जो बचत होगी उससे हम सारे घर में एलईडी बल्ब लगवा लेंगे। अब तो आप ख़ुश हो न! लो नाश्ता कर लो।’ हाथ में प्लेट पकड़ते हुए अम्मा के चेहरे पर संतोष की मुस्कान बिखर गई।
लघुकथा : कैलेंडर याद आता है
लेखिका : रीटा मक्कड़
आज भी वो दिन आंखों के सामने एक चलचित्र की भांति घूमते रहते हैं जब लोगों का प्यार छतों पर परवान चढ़ा करता था। तब आज की तरह एक-दूसरे से बात करने को फोन तो होते नहीं थे कि जो अच्छा लगे, जल्दी से उसको संदेश भेज दो या फिर फोन करके अपने दिल की बात बता दो।
तब तो बस आंखों की भाषा ही पढ़ लेते थे और आंखों-आंखों में बात होने दो की तर्ज़ पर ही प्रेम में पगे प्रेमी प्यार की पहली सीढ़ी चढ़ लेते थे। और फिर दिल की बात बताने के लिए या तो ख़त भेजे जाते वह भी पकड़े जाने के डर के साथ या फिर कोई और ज़रिया ढूंढना पड़ता था।
छत पर ही तो देखा था उसने उसको पहली बार। उस लड़की के घर के पिछवाड़े उसका घर था और दोनों घरों की छतों के बीच में बस एक छोटी-सी दीवार ही तो थी।
वो छत से सूखे हुए कपड़े उतारने आया था। उसकी नज़रों से नज़रें मिलीं। घर का इकलौता बेटा होने के कारण उसे अपनी मां की मदद तो करनी ही पड़ती थी, सो बस फिर ये छत से सूखे कपड़े उतारकर लाने का सिलसिला रोज़ का हो गया और फिर रोज़-रोज़ नज़रें टकराने लगीं।
आंखों-आंखों में, बिना कुछ कहे ही दिल की बात दिल तक पहुंचने लगी। एक दिन देखा तो उसके हाथ में एक कैलेंडर था जो उसने फोल्ड करके पकड़ा हुआ था। उस दिन जब नज़रें मिलीं तो उसने वह कैलेंडर अपनी छत से उसकी छत पर फेंक दिया।
और जब लड़की ने कैलेंडर खोलकर देखा तो वह सोहणी महिवाल की तस्वीर वाला कैलेंडर था। उसके पीछे की तरफ़ उसने लिख रखा था… अंग्रेज़ी में कहते हैं कि... आई लव यू... बंगाली में कहते हैं कि आमी तमाके भालो बाछी, और पंजाबी में... इसके बाद उसने ख़ाली स्थान छोड़ दिया था क्योंकि शायद वो पंजाबी में प्यार का इज़हार उसके मुंह से सुनना चाहता था।
लेकिन उस लड़की ने उस कैलेंडर को अपनी अलमारी में छुपा दिया और उस लड़के को कोई जवाब नहीं दिया। आज तक वो ख़ुद ही समझ नहीं पाई कि वो घरवालों से डर गई थी या फिर उसकी नाक कुछ ज्यादा ही ऊंची थी कि उस कच्ची उम्र के प्यार को स्वीकार ही नहीं कर पाई।
फिर उसकी शादी हो गई। बेटी से बहू बनी फिर मां, मां से सास और फिर दादी-नानी भी बन गई। लेकिन आज भी वो छत वाला प्यार दिल से निकाल नहीं पाई। जब भी वो सोहणी महिवाल का कैलेंडर याद आता है, दिल में कुछ चुभता हुआ महसूस होता है और बरबस ही उसकी आंखें भीग जाती हैं।
Continuing its rally, shares of Reliance Industries Ltd on Thursday zoomed 8.5 per cent and the company's market valuation rose to $199.64 billion in late afternoon trade
अमेरिकी एयरोस्पेस कंपनी नॉर्थरोप ग्रुमेन ने अपने अगले स्पेस स्टेशन रिसप्लाय शिप एनजी -14 सिग्नस अंतरिक्ष यान का नाम 'एस एस कल्पना चावला' रखने की घोषणा की है।
यह अंतरिक्ष यान 29 सितंबर को इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन के लिए लॉन्च किया जाएगा। गौरतलब है कि 16 जनवरी, 2003 को कल्पना चावला अमेरिकी अंतिरक्ष यान कोलंबिया के चालक दल के रूप में अंतरिक्ष में जाने वाली भारत की पहली महिला बनी थीं।
चावला ने नासा में भारतीय मूल की पहली महिला अंतरिक्ष यात्री के रूप में इतिहास रचा है। सिग्नस स्पेसक्राफ्ट के निर्माता नॉर्थरोप ग्रुमेन ने अपने ट्वीट के माध्यम से इस बारे में जानकारी दी।
ग्रुमेन ने अपने स्टेटमेंट में कहा - ''कल्पना चावला के नाम पर अपने अगले एनजी-14 सिग्नस स्पेसक्राफ्ट का नाम रखते हुए हमें गर्व हो रहा है।
यह इस कंपनी की परंपरा है हर सिग्नस स्पेसक्राफ्ट का नाम एक ऐसे शख्स के नाम पर रखा जाता है जिसने ह्यूमन स्पेस फ्लाइट में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई हो। कल्पना चावला को इस सम्मान के लिए इसलिए चुना गया क्योंकि उन्होंने भारतीय मूल की पहली अंतरिक्ष यात्री के रूप में इतिहास रचा था''।
एस एस कल्पना चावला एक री-सप्लाई शिप है। सिग्नस अपने साथ आईएसएस के लिए करीब 3629 किग्रा वजनी सामान लेकर जाएगा। इसे वर्जीनिया स्पेस के मिड-अटलांटिक रीजनल स्पेसपोर्ट (MARS) वॉलॉप्स द्वीप से कक्षा में लॉन्च किया जाएगा
The stock rallied 13% to Rs 229 in intra-day trade on Thursday and has zoomed 151% in the past three months, as compared to 13% rise in the S&P BSE Sensex
इंडियन राइटर अनुराधा रॉय को उनकी किताब 'आल द लाइव्स वी नेवर लिव्ड' के लिए साहित्य के क्षेत्र में दुनिया के सबसे महंगे इंटरनेशनल डबलिन लिटरेसी अवार्ड 2020 के लिए चुना गया है।
इस अवार्ड के लिए आठ महिला लेखिकाओं का नाम सामने आया है जिनमें से अनुराधा भी एक है। इंटरनेशनल डबलिन लिटरेसी अवार्ड को डबलिन सिटी काउंसिल प्रायोजित करती है।
अनुराधा द्वारा लिखी गई किताब आल द लाइव्स वी नेवर लीव्ड को 156 किताबों में से चुना गया है। इस नॉवेल को लाइब्रेरी सिस्टम द्वारा 40 देशों के 119 शहरों में सबमिट किया गया।
उनकी इस किताब को इससे पहले 2018 में टाटा लिटरेचर लाइव बुक ऑफ द ईयर अवार्ड, डीएससी प्राइज फॉर साउथ एशियन लिटरेचर और जेसीबी प्राइज भी मिल चुका है। इसे हिंदू लिटरेरी प्राइज और वाल्टर स्कॉट प्राइज से भी नवाजा जा चुका है।
अनुराधा का जन्म 1967 में कोलकाता में हुआ। यूनिवर्सिटी ऑफ कलकत्ता और यूनिवर्सिटी ऑफ कैंब्रिज से अनुराधा ने अपनी पढ़ाई पूरी की। फिलहाल वे रानीखेत में रहती हैं और पब्लिशिंग हाउस 'परमानेंट ब्लैक' की सह संस्थापक हैं।
अनुराधा की लिखी हुई किताबों में 'स्लीपिंग ऑन द ज्यूपिटर' 'एन एटलस ऑफ इम्पॉसिबल' और 'द फोल्डेड सन' शामिल हैं। उन्हें 2015 में मेन बुकर प्राइज के लिए भी शॉर्टलिस्ट किया जा चुका है।
केरल में कोल्लम की भागीरथी और अलपुझा में कार्थयायनी अम्मा 10 वीं की परीक्षा देने वाली हैं। 10 वी पास करना इनका सपना है और इसे पूरा करने के लिए ये दोनों लैपटॉप और मोबाइल पर ऑनलाइन पढ़ाई कर रही हैं।
इसी साल दोनों को नारी शक्ति पुरस्कार भी मिला है। भागीरथी ने सबसे ज्यादा उम्र में चौथी कक्षा पास करने का खिताब जीता था। चौथी में वे स्टेट टॉपर रहीं थीं। फिलहाल ये दोनों बुजुर्ग महिलाएं ऑनलाइन पढ़ाई को लेकर चर्चा में हैं।
वे ब्लैकबोर्ड या स्लेट पर लिखने के बजाय कम्प्यूटर स्क्रीन पर टाइप करना सीख रही हैं। हालांकि उन्हें मोबाइल चलाना सीखने में भी वक्त लगा। लेकिन लॉकडाउन के वक्त का उपयोग उन्होंने डिजिटल ज्ञान बढ़ाने में बिताया।
भागीरथी अम्मा हमेशा ही पढ़ना चाहती थीं लेकिन बचपन में ही उनकी मां के न रहने की वजह से उन्हें अपना ये सपना छोड़ना पड़ा। मां के गुजर जाने के बाद भाई-बहनों की देखरेख की जिम्मेदारी उन पर आ गई थी। तब से अपनी जिम्मेदारियां पूरी करते हुए उन्हें पढ़ाई करने का कभी मौका नहीं मिला।
जब उन्हें पढ़ने का मौका मिला तो वे एक दिन भी बेकार गंवाना नहीं चाहतीं। वे फिलहाल अपनी ऑनलाइन क्लासेस पर ध्यान दे रहीं हैं। स्कूल बंद होने की वजह से उनके पोता-पोती भी घर में हैं जो पढ़ाई के साथ-साथ दिनभर मस्ती करते रहते हैं। इसलिए वे अपनी इंस्ट्रक्टर शर्ली के साथ सुबह और शाम कमरे का दरवाजा बंद कर पढ़ाई करती हैं ताकि पढ़ते समय बच्चे उन्हें तंग न करें।
कार्थयायनी अम्मा आजकल अपना अधिकांश समय लैपटॉप के सामने बिता रही हैं। लैपटॉप पर वे अपनी पढ़ाई के साथ-साथ साक्षरता मिशन से जुड़े यू ट्यूब चैनल 'अक्षरम' को भी देखती हैं। इस चैनल पर पहले से रिकॉर्ड किए गए क्लासरूम के वीडियोज प्रसारित होते हैं। इसकी मदद से वे अपने लिए नोट्स तैयार करती हैं।
As of June 30, 2020, the total promoter holding in Alembic stood at 69.57 per cent, up 195 basis points (bps) from 67.62 per cent at the end of March quarter.
The stock has gained 5 per cent in the past two trading days after Silver Lake on Wednesday agreed to invest Rs 7,500 crore ($1 billion) into Reliance Retail Ventures (RRVL).
Indiabulls Housing Finance is set to trade actively in today's trade after the company said it is aiming to raise up to Rs 1,000 crore through a QIP and partial divestment of its stake
मेघालय में महिला कारखानों की श्रमिकों को मुफ्त सैनिटरी नैपकिन दिए जाएंगे। यहां 40 साल पुराने फैक्ट्री नियमों में संशोधन के बाद यह कदम राज्य मंत्रिमंडल द्वारा उठाया गया है। एक सरकारी प्रवक्ता के अनुसार, इस संशोधन के अनुसार, कारखानों के लिए सभी श्रमिकों को व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (पीपीई) दिए जाना जरूरी है।
राज्य के कैबिनेट मंत्री जेम्स पीके संगमा के अनुसार, चर्चा के बाद मेघालय की फैक्ट्रियों के नियम 1980 के नियम 25 और 78 (सी) में संशोधन के प्रस्ताव को मुख्यमंत्री कॉनराड संगमा की अध्यक्षता में कैबिनेट की बैठक में मंजूरी मिली।
उन्होंने बताया कि केन्द्रीय श्रम एवं रोजगार मंत्रालय ने राज्य सरकार को फैक्ट्री एक्ट 1948 के तहत महिला कामगारों को सैनिटरी नैपकिन और सभी को पीपीई देने के लिए पत्र लिखा था। इसके बाद यह संशोधन किया गया।
सरकारी प्रवक्ता के अनुसार इस संशोधन में यह भी तय किया गया कि फैक्ट्री में महिला टॉयलेट में पर्याप्त मात्रा में और इंडियन स्टैंडर्ड के अनुरूप सैनिटरी नैपकिन उपलब्ध कराए जाएंगे। इन्हें रोज रखने का भी उचित प्रबंध किया जाएगा।
यहां ये भी तय किया गया कि पैड को दैनिक आधार पर फिर से भरना होगा। उपयोग किए गए पैड्स को इकट्ठा करने के लिए डिस्पोजेबल बिन भी दिए जाएंगे। इन्हें रोज डिस्पोज करने की पूरी व्यवस्था की जाएगी।
मेघालय में महिलाओं की सुविधा का ख्याल रखते हुए की जा रही इस पहल से पहले इसी साल अगस्त में हरियाणा सरकार ने घोषणा की थी कि गरीबी रेखा से नीचे की 10-45 साल की उम्र वाली महिलाओं और लड़कियों को लगभग 22.50 लाख मुफ्त सैनिटरी पैड हर महीने उपलब्ध कराए जाएंगे।
In Q1FY21, the company's Ebitda margin grew by 785 basis points YoY to 18.0 per cent on account of higher ENA realisations and softening raw material and fuel prices
If the retail portion is fully subscribed, the government's stake will fall below 75 per cent, making BDL compliant with the 25 per cent public shareholding norms.
दिल्ली विकास प्राधिकरण ने यमुना खादर इलाके में जर्जर प्राथमिक स्कूल ढहा दिया था। इस स्कूल के बच्चे कई सालों तक पेड़ के नीचे पढ़ते रहे। दिल्ली में रहने वाली आर्किटेक्ट स्वाति जानू को जब इस बारे में पता चला तो सबसे पहले उन्होंने इस स्कूल का निरीक्षण किया।
स्वाति ने इस स्कूल को बनाने के बारे में अपनी सहेली निधि सुहानी से बात की। निधि भी एक कम्युनिटी आर्किटेक्ट हैं। स्वाति ने दिल्ली के स्कूल ऑफ प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर में ग्रेजुएट किया है। उसके बाद वे अर्बन डेवलपमेंट में एमएससी करने के लिए ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी गईं थीं। वे एक एनजीओ एमएचएस सिटी लैब के लिए भी काम करती हैं।
निधि ने भी दिल्ली के स्कूल ऑफ प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर में ग्रेजुएट किया है। वे एमएचएस सिटी लैब में प्रोजेक्ट कॉर्डिनेटर हैं। वे भी स्वाति के साथ इस स्कूल को फिर से नया रूप देने के लिए तैयार हो गईं।
इन दोनों लड़कियों ने फंड जुटाने की काफी कोशिश की लेकिन जब कोई मदद के लिए आगे नहीं आया तो इन्होंने सोशल मीडिया के जरिये ढाई लाख रुपए जमा किए। इन दोनों ने मिलकर तीन हफ्तों में यह स्कूल खड़ा कर दिया। इसे बांस, तिरपाल, टिन और घास से बनाया गया है। इसमें कई कमरे हैं जहां 250 बच्चे पढ़ सकते हैं। उन्होंने इसे मॉडस्कूल नाम दिया।
उनके इस काम को पूरा करने में इंजीनियर विनोद जैन ने उनकी मदद की। उन्होंने सुझाव दिया कि इस स्कूल को लोहे के फ्रेम पर खड़ा किया जाना चाहिए। उन्होंने इसे बनाने का खर्च भी खुद ही उठाया। इसके अलावा कुछ वालंटियर्स, स्टूडेंट और डिजाइनर की मदद से तीन हफ्ते के अंदर स्कूल खड़ा हो गया।
स्कूल के लिए बांस को काटने और चटाई बुनने का काम स्कूल के बच्चों और वालंटियर की मदद से किया गया। स्वाति और निधि को इस बात की खुशी है कि पहले जहां सिर्फ तीन लोगों के साथ मिलकर उन्होंने इस स्कूल को बनाने की शुरुआत की थीं, वहीं आज इससे तकरीबन 50 वालंटियर्स जुड़े हैं।