It simply sucks. I don't personally read blog posts word by word, so how can I except you to read them too? I known ther are people who are kind enough to read a 10,000 word long blog article from start to finish, but I think that's a minority.why waste your time ? Let me..
कोरोना काल में हाइजीन जीवन का जरूरी हिस्सा बन गया है। फिर चाहे वो ब्यूटी टूल्स ही क्यों न हों। इन्हें साफ़ रखना भी बहुत जरूरी है। ब्लश और कॉम्पैक्ट को एक ही ब्रश की मदद से लगाया जाता है। लिपस्टिक बुलेट्स, आई-लाइनर स्टिक्स और मस्कारा वैंड्स का उपयोग भी बार-बार किया जाता है।
ब्रश और स्पॉन्ज कई बार पैन व ट्यूब में आते-जाते हैं। नेल फाइलर और कंघी भी लगातार स्किन के सम्पर्क में आते हैं। आप अकेले इनका उपयोग करते हैं तो भी डेड स्किन, पसीना और ऑइल लगातार जमा होता ही रहता है। जानिए मेकअप प्रोडक्ट को घर में सैनिटाइज करने के कुछ टिप्स।
स्टरलाइज़र मशीन
जो लोग डिसइंफेक्टेंट को लेकर गंभीर हैं, उनके लिए यह एक आदर्श विकल्प है। पोर्टेबल हो या परमानेंट इसकी मदद से लगभग हर चीज सैनिटाइज की जा सकती है। इसमें मेकअप प्रोडक्ट्स, ब्यूटी टूल्स, चाबियां और वॉलेट को भी सैनिटाइज किया जा सकता है।
यूवी लाइट डिसइंफेक्टेंट
यह होम गैजेट यूवी लाइट्स स्टरलाइजर सैनिटाइजर वैंड, पोर्टेबल यूवी लाइट डिसइंफेक्शन लैम्प है जो घर, होटल, ट्रैवल कार में रखने के लिए चार्जेबल और फोल्डेबल भी है। इससे 99 प्रतिशत जर्म्स और बैक्टीरिया खत्म हो जाते हैं।
डिसइंफेक्टेंट स्प्रे
घर में डिसइंफेक्टेंट स्प्रे है तो मौजूदा चीज़ों को आसानी से सैनिटाइज किया जा सकता है। हाथ और फोन जैसे सरफेस पर मौजूद जर्म्स को खत्म करने का यह तरीका बेहद असरदार है। इस स्प्रे को हार्ड और सॉफ्ट हर तरह की सतह पर इस्तेमाल किया जा सकता है। स्किन पर इस्तेमाल होने वाले मेकअप ब्रश को साफ़ करने के लिए भी सुरक्षित है।
एंटी-बैक्टीरियल वाइप्स
दिनभर में न जाने कितनी ही सतह छूने के बाद उंगली से आइशैडो लगाते हैं या लिप बाम लगाते हैं तो हर तरह के जर्म्स इकट्ठा कर लेते हैं। हाथ, चेहरा और अन्य सतह साफ़ करने के लिए भी ये वाइप्स असरदार होते हैं।
आइसोप्रोपेल एल्कोहल क्लीनर
ये क्लीनर अक्सर हॉस्पिटल या सर्जिकल काम में इस्तेमाल होते हैं। अब घर में यूज हो रहा है। रबिंग एल्कोहल के नाम से मशहूर है, जिसकी मदद से मेकअप टूल्स सैनिटाइज किए जा सकते हैं। इससे डोर नॉब्स भी साफ़ कर सकते हैं।
साड़ियों की शौक़ीन कौन स्त्री नहीं होगी और पुरानी होती साड़ियों की फ़िक़्र भी किसे नहीं सताती होगी। तो ऐसे में जिन्हें सिलाई का थोड़ा-बहुत भी शौक़ है या कुछ तरकीबों को आज़माना आता है, तो पुरानी साड़ियों से घर को नवेला लुक देना चुटकी बजाते ही हो जाएगा।
1. शिफॉन के पर्दे
शिफॉन की साड़ियां पहनने में जितनी ख़ूबसूरत लगती हैं, इनके पर्दे भी उतने ही सुंदर दिखते हैं। अगर आपको थोड़ा बदलाव करना है तो शिफॉन की प्लेन साड़ी को खिड़की का पर्दा बना दें। सामान्य पर्दों के साथ मिलाकर भी बीच में डाल सकती हैं और रिबन या लैस से बांध सकती हैं। या फिर अलग-अलग रंग की प्लेन शिफॉन साड़ियों के पर्दे बनाकर लगाएं।
2. प्रिंटेड से दें नया रूप
यदि हमेशा प्लेन पर्दे डालती हैं तो इस बार कुछ नया आज़माएं। प्लेन पर्दों के बीच में प्रिंटेड साड़ी का पर्दा लगाएं। पर्दे के रंग से मिलते-जुलते रंग की साड़ी का चयन करें। ऐसा भी कर सकती हैं कि पूरे पर्दे प्रिंटेड ही रखें। ये तरीक़ा भी काफ़ी जंचेगा। इस तरह थोड़ा बदलाव भी हो जाएगा और साड़ियों का सही इस्तेमाल भी होगा।
3. कुशन कवर आज़माएं
अगर शादी की साड़ियां रखी हैं जो अब पहनने में नहीं आती हैं तो इन हैवी साड़ियों से कुशन कवर बना सकती हैं। इसके अलावा किसी साड़ी का वर्क अच्छा है तो उसे काटकर भी कुशन कवर पर लगा सकती हैं। इस तरह कवर को और ख़ूबसूरत बना सकेंगी।
4. मजबूत रनर्स बनाएं
अपनी हैवी साड़ी का ख़ूबसूरती से इस्तेमाल करना चाहती हैं तो ये तरक़ीब आपके लिए है। साड़ी से डाइनिंग टेबल रनर्स बना सकती हैं। ये बहुत बढ़िया लगते हैं। जब मेहमानों के आने की सूरत बनेगी या त्योहारों की फिर से धूम होगी, तो ये हैवी रनर्स आपके मन के उत्साह को सही ढंग से प्रतिबिम्बित करेंगे।
राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन के तहत शुरू की गई 'उम्मीद की रसोई' उन महिलाओं को रोजगार प्रदान करती है, जिनकी नौकरी कोविड-19 की वजह से छूट गई है।
दिल्ली की बुद्ध नगर निवासी आरती महामारी से पहले लोगों के घरों में खाना बनाने का काम करती थी। लॉकडाउन की वजह से उसकी नौकरी छूट गई। ऐसे में उसके लिए अपने परिवार का खर्च चलाना मुश्किल हुआ। लेकिन नई दिल्ली की उम्मीद की रसोई का हिस्सा बनने के बाद वह खुश है।
आरती कहती है - ''हम पांच लोगों की टीम है। हमने मिलकर तीन किलो चावल और दो किलो राजमा बनाएं। पहले ही दिन 2:30 बजे तक सारा खाना बिक गया। अपने काम की शुरुआत हमने राजमा-चावल से की है। धीरे-धीरे अपने मेन्यू में और चीजें भी शामिल करेंगे''।
नई दिल्ली में अब तक की गई पहल जैसे 'उम्मीद की राखी' और 'उम्मीद के गणपति' की सफलता के बाद उम्मीद की रसाई की सफलता की आशा की जा रही है।
यह प्रोजेक्ट स्व सहायता समुहों के लिए बनाया गया है। डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट तन्वी गर्ग के अनुसार ये रसोई उन महिलाओं के जीवन में उम्मीद जगाएगी जो लॉकडाउन की वजह से अपनी नौकरी खो चुकी हैं।
तन्वी कहती हैं - ''हमारे नई दिल्ली जिला प्रशासन ने अपने तीन उपखंडों में 12 ऐसे समूहों का गठन किया है। इनमें वसंत विहार, दिल्ली कैंट और चाणक्यपुरी शामिल है। लगभग हर समूह में 20 महिलाएं हैं। हम उन्हें वित्तीय मामलों की ट्रेनिंग दे रहे हैं। साथ ही हाथ में बनी चीजों से आजीविका चलाने के उपाय भी बता रहे हैं''।
उम्मीद की रसाई के अंतर्गत स्व सहायता समुहों की महिलाएं अपने घर से खाना बनाकर स्टॉल पर लाती हैं और इसे बेच देती हैं। इनका एक स्टॉल वसंत विहार में एसडीएम ऑफिस के पास लगाया गया है। वहीं दूसरा सरोजिनी नगर मार्केट और तीसरा जामनगर में डीएम ऑफिस के पास स्थित है।
तन्वी के अनुसार, ''इन स्टॉल की शुरुआत से पहले महिलाओं को प्रोफेशनल शेफ द्वारा हाइजीनिक कुकिंग की ट्रेनिंग दी जाती है। उन्हें ये भी बताया जाता है कि खाना किस तरह से सर्व करना है, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कैसे करना है और मास्क पहनने का सही तरीका क्या है''।
उम्मीद की रसोई में 18 से 60 साल की महिलाएं काम कर सकती हैं। ये प्रोजेक्ट महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में सराहनीय प्रयास है।
शीशे के सामने खड़े होकर अपना चेहरा क़रीब से देखिए। ग़ौर कीजिए कि आपकी त्वचा आपकी सेहत के बारे में क्या संकेत दे रही है! चेहरे पर मुंहासे, होंठ फटना या त्वचा पर खुजली होना आम समस्याएं लगती हैं। कई दफ़ा हम सोचते हैं कि प्रदूषण, मौसम या हॉर्मोन में बदलाव इसके कारण हैं।
परंतु हर बार ऐसा नहीं होता है। ये अंदरूनी समस्याएं भी हो सकती हैं, जो त्वचा पर नज़र आने लगती हैं। कुछ ऐसी ही त्वचा संबंधी समस्याएं आपको बता रहे हैं, जो आम लगती हैं, लेकिन असल में ये आपकी सेहत का हाल बताती हैं।
1. आंखों के नीचे काले घेरे
आंखों के नीचे काले घेरे शरीर में कई तरह की कमज़ोरी का परिणाम होते हैं। अधिक नींद लेना, ज्यादा थकान, ज्यादा देर तक जागते रहना, टीवी या लैपटॉप/कंप्यूटर स्क्रीन पर अधिक वक़्त बिताना या अनियमित जीवनशैली के कारण बहुत से लोग काले घेरों की समस्या से पीड़ित हैं।
आमतौर पर आंखों के नीचे काले घेरे बढ़ती उम्र के कारण भी होते हैं। इसके अलावा कई बार यह समस्या आनुवंशिक भी होती है। आंखों में खिंचाव की वजह से काले घेरे बन सकते हैं। आंखों में सूखापन भी वजह बन सकती है। इसके अलावा डिहाइड्रेशन या धूप के कारण हो सकते हैं।
क्या करें :
काले घेरों का उपचार इनके कारणों पर निर्भर करता है, लेकिन कुछ उपाय आप कर सकते हैं, जैसे- कोल्ड टी की थैली लगाना और पर्याप्त नींद लेना। कोल्ड कंप्रेस लगाने से सूजन कम हो जाती है और रक्त वाहिकाओं को सिकुड़ने में मदद मिलती है।
हरी सब्ज़ियां और विटामिन-ई युक्त आहार लें। कई बार हीमोग्लोबिन की कमी के कारण भी ये घेरे हो सकते हैं, इसलिए आयरन युक्त खाद्य पदार्थ, जैसे पालक, सेब, किशमिश, चुकंदर आदि आहार में शामिल करें।
2. होंठों का फटना
मौसम के कारण होंठ फटना आम बात है, जो लिप बाम या क्रीम से ठीक हो जाते हैं। अगर होंठ हमेशा फटते रहते हैं और इनमें दर्द भी होता है, तो ये डिहाइड्रेशन यानी कि शरीर में पानी की कमी होने का संकेत है। ऐसे में अधिक से अधिक पानी पिएं। होंठ फटने का कारण लिप एक्जिमा भी हो सकता है।
क्या करें :
होंठ पर जीभ और लार न लगाएं और न इन्हें दांतों से न चबाएं। अगर फटे होंठ ठीक नहीं हो रहे हैं, तो त्वचा विशेषज्ञ से परामर्श लें।
3. गाल पर लाल चकत्ते
अगर गाल पर या नाक के ऊपरी हिस्से पर लाल चकत्ते हो जाते हैं तो यह ल्यूपस की समस्या है। गंभीर सूजन वाली इस बीमारी में चेहरे पर तितली आकार के लाल चकत्ते पड़ जाते हैं। आमतौर पर धूप के संपर्क में आने से इन चकत्तों की समस्या और भी बढ़ जाती है। इन लाल चकत्तों के साथ-साथ बुखार, खुजली और ठंड में उंगलियों की त्वचा हल्की नीली होने जैसी समस्या हो सकती है।
क्या करें :
इस स्थिति में त्वचा रोग विशेषज्ञ से परामर्श लेना ही अच्छा होगा।
4. त्वचा में खुजली
अगर शरीर के किसी भी हिस्से की त्वचा में लगातार खुजली होती है, खुजलाने के बाद भी नहीं रुकती, त्वचा लाल हो जाती है और खुजली के कारण नींद भी प्रभावित होती है, तो इसका कारण एटॉपिक डर्मेटाइटिस हो सकता है। ये समस्या किसी भी उम्र में हो सकती है। आमतौर पर ये एलर्जी या हे-फीवर की वजह से होती है।
क्या करें :
कुछ ज़रूरी बातों का ध्यान रखें, जैसे देर तक नहीं नहाएं, पसीना, धूल, डिटर्जेंट, परागकणों से दूर रहें। किन खाद्य पदार्थों से एलर्जी है, यह डॉक्टर की मदद से पता करें। सौम्य साबुन से नहाएं।
नहाने के बाद शरीर को अच्छी तरह से सुखाएं। दिन में दो बार त्वचा को मॉइस्चराइज़ करें। वज़न कम करने और व्यायाम करने से त्वचा की खुजली कम हो सकती है। इस सबके बावजूद खुजली कम नहीं हो रही है, तो लिवर और किडनी की बीमारी भी कारण हो सकती है। ऐसे में जांच कराना बेहतर विकल्प है।
5. चेहरे पर मुंहासे
माथे पर मुंहासे बालों में अधिक डैंड्रफ के कारण हो सकते हैं। इसके अलावा तनाव या ठीक तरह से नींद न ले पाना भी वजह हो सकती है। जिनको यह समस्या होती है उनका पाचनतंत्र सही नहीं होता। अगर ठुड्डी पर लगातार मुंहासे निकल रहे हैं तो ये हॉर्मोन की समस्या हो सकती है।
ऐसा सही तरह से पीरियड्स न होने पर भी होता है। अगर चेहरे और कान के किनारों पर मुंहासे निकल रहे हैं तो हॉर्मोन का असंतुलित होना कारण हो सकता है।
क्या करें :
हो सकता है कि कॉस्मेटिक प्रॉडक्ट्स और शैंपू त्वचा को नुक़सान पहुंचा रहे हों। ऐसे में इन्हें बदलकर देखिए। गालों पर मुंहासे निकलने की वजह आहार में शक्कर की अधिक मात्रा का सेवन करना है। ऐसे में कम प्रोसेस्ड शुगर लें। इसके बावजूद मुंहासों की समस्या बनी हुई है, तो त्वचा रोग विशेषज्ञ से सलाह लें।
महानगर के उस अंतिम बसस्टॉप पर जैसे ही कंडक्टर ने बस रोक दरवाज़ा खोला, नीचे खड़े एक देहाती बुज़ुुर्ग ने चढ़ने के लिए हाथ बढ़ाया। एक ही हाथ से सहारा ले डगमगाते क़दमों से वे बस में चढ़े, क्योंकि दूसरे हाथ में थी भगवान गणेश की एक अत्यंत मनोहर बालमूर्ति थी।
गांव जाने वाली उस आख़िरी बस में पांच-छह सवारों के चढ़ने के बाद पैर रखने की जगह भी जगह नहीं थी। बस चलने पर हाथ की मूर्ति को संभाल, उन्हें संतुलन बनाने की असफल कोशिश करते देख जब कंडक्टर ने अपनी सीट ख़ाली करते हुए कहा कि दद्दा आप यहां बैठ जाइए, तो वे उस मूर्ति को पेट से सटा आराम से उस सीट पर बैठ गए।
कुछ ही मिनटों में बाल गणेश की वह प्यारी-सी मूर्ति सब के कौतूहल और आकर्षण का केन्द्र बन गई। अनायास कुछ जोड़ी हाथ श्रद्धा से उस ओर जुड़ गए।
कंडक्टर पीछे के सवारों से पैसे लेता दद्दा के सामने आ खड़ा हुआ और पूछा, ‘कहां जाओगे दद्दा’ तो जवाब देते हुए मूर्ति को थोड़ा इधर-उधर कर उन्होंने धोती की अंटी से पैसे निकालने की असफल कोशिश की।
उन्हें परेशान होता देखकर कंडक्टर ने कहा, ‘अभी रहने दीजिए। उतरते वक़्त दे दीजिएगा।’ और एक बार फिर दद्दा गणपति की मूर्ति को पेट से सटाकर आश्वस्त होकर बैठ गए।
बस अब रफ़्तार पकड़ चुकी थी। सबका टिकट काटकर कंडक्टर एक सीट का सहारा लेकर खड़ा हो गया और अनायास उनसे पूछ बैठा, ‘दद्दा, आपके गांव में भी तो गणेश की मूर्ति मिलती होगी न, फिर इस उम्र में दो घंटे का सफ़र और इतनी दौड़-धूप करके शहर से यह गणेश की मूर्ति क्यूं ले जा रहे हैं?’
प्रश्न सुनकर दद्दा मुस्कराते हुए बोले, ‘हां, आजकल तो त्योहार आते ही सब तरफ़ दुकानें सज जाती हैं, गांव में भी मिलती हैं मूर्तियां, पर ऐसी नहीं। देखो यह कितनी प्यारी और जीवंत है।’ फिर संजीदगी से कहने लगे, ‘यहां से मूर्ति ले जाने की भी एक कहानी है बेटा। दरअसल हम पति-पत्नी को भगवान ने संतान सुख से वंचित रखा। सारे उपचार, तन्त्र-मन्त्र सब किए, फिर नसीब मानकर स्वीकार भी कर लिया और काम-धंधे में मन लगा लिया।...
‘पन्द्रह साल पहले काम के सिलसिले में हम दोनों इसी शहर में आए थे। गणेश पूजा का त्योहार नज़दीक था तो मूर्ति और पूजा का सामान ख़रीदने यहां बाज़ार गए। अचानक पत्नी की नज़र एकदम ऐसी ही एक मूर्ति पर पड़ी और उसका मातृत्व जाग उठा। ‘मेरा बच्चा’ कहते हुए उसने उस मूर्ति को सीने से लगा लिया।
सालों का दर्द आंखों से बह निकला, मूर्तिकार भी यह देखकर भावविह्वल हो गया और मैंने उससे हर साल इसी सांचे की हूबहू ऐसी ही मूर्ति देने का वादा ले लिया। बस! तभी से यह सिलसिला शुरू है। दो साल पहले तक वह भी साथ आती रही अपने बाल गणेश को लेने, पर अब घुटनों के दर्द से लाचार है। मेरी भी उम्र में हो रही है, फिर भी सिर्फ़ दस दिन के लिए ही क्यूं न हो, उसका यह सुख नहीं छीनना चाहता, इसलिए अपने बाल गणेश को बड़े जतन से घर ले जाता हूं।’
अब तक आसपास के लोगों में अच्छा-ख़ासा कौतूहल जाग चुका था। कुछ लोग अपनी सीट से झांककर तो कुछ उचककर मूर्ति को देख मुस्करा के हाथ जोड़ने लगे।
तभी पिछली सीट पर बैठी महिला ने चेहरा आगे की ओर कर पूछा, ‘दद्दा, फिर विसर्जित नहीं करते क्या मूर्ति?’
एक दर्द भरी मुस्कान के साथ दद्दा ने कहा, ‘अब भगवान स्वरूप स्थापित कर विधि-विधान से पूजा करते हैं तो विसर्जन तो करते ही हैं, पर इस वियोग के कारण ही इन दस दिनों में उसके हृदय से मानो वात्सल्य का सोता फूट पड़ता है, जिससे हमारा जीवन बदल जाता है।
अभी भी रंगोली डाल, आम के तोरण से द्वार सजाकर, वहीं पर राह देखते बैठी होगी। पहुंचने पर राई और मिर्च से कड़क नज़र उतारती है। पूछो मत, छोटा-सा लोटा, गिलास, थाली, चम्मच सब हैं हमारे बाल गणेश के पास। यही नहीं रंगबिरंगे छोटे कपड़ों का एक बैग भी बना रखा है उसने, इसलिए जब तक संभव होगा, उसे यह सुख देता रहूंगा,’ कहते-कहते दद्दा का गला रुंध गया।
यह सुनकर किसी की आंखें नम हुईं तो किसी का हृदय करुणा से भर गया। बस निर्बाध गति से आगे बढ़ रही थी और दद्दा का गांव आने ही वाला था, इसलिए उन्हें मूर्ति संभालकर खड़े होते देख पास खड़े व्यक्ति ने कहा, ‘लाइए, मूर्ति मुझे दीजिए’ तो उसके हाथों में मूर्ति को धीरे से थमाकर, धोती की अंटी से पैसे निकालकर कंडक्टर को देते हुए दद्दा ने कहा, ‘लो बेटा, डेढ़ टिकट काटना।’
यह सुनकर कंडक्टर ने आश्चर्य से कहा, ‘अरे आप तो अकेले आए हैं न, फिर ये डेढ़ टिकट?’
दद्दा ने मुस्कराते हुए कहा, ‘दोनों नहीं आए क्या? एक मैं और एक यह हमारा बाल गणेश।’
यह सुनते ही सब उनकी ओर आश्चर्य से देखने लगे। लोगों के असमंजस को दूर करते हुए उन्होंने फिर कहा, ‘अरे उलझन में क्यूं पड़े हो सब! जिसे देखकर सभी का भाव जागा वह क्या केवल मूर्ति है? जिसे भगवान मनाते हैं, प्राण-प्रतिष्ठा करते हैं वह क्या केवल मिट्टी है? अरे हमसे ज्यादा जीवंत है वह। हम भले ही उसे भगवान मान उससे हर चीज़ मांग लेते हैं, पर उसे तो हमारा प्यार और आलिंगन ही चाहिए।’ यह कहते हुए दद्दा का कंठ भावातिरेक से अवरुद्ध हो गया ।
उनकी बातों को मंत्रमुग्ध होकर सुनते कंडक्टर सहित सहयात्री करुणा और वात्सल्य के इस अनोखे सागर में गोते लगा रहे थे कि उनका गांव आ गया और एक झटके से बस रुक गई। कंडक्टर ने डेढ़ टिकट के पैसे काटकर बचे पैसे और टिकट उन्हें थमाकर आदर से दरवाज़ा खोला।
नीचे उतरकर दद्दा ने जब अपने बाल गणेश को थामने उस यात्री की ओर हाथ बढ़ाए तो कंडक्टर सहित सबके मुंह से अनायास निकला, ‘देखिए दद्दा संभाल के’ और दद्दा किसी नन्हे शिशु की तरह उस मूर्ति को दोनों बांहों में थाम तेज़ क़दमों से पगडंडी पर उतर गए।
कोलकाता की भिवाश एकेडमी ऑफ डांस के दो डांसर्स सुमंत मारजू और सोनाली मजूमदार ने अमेरिका गॉट टैलेंट में अपने बेहतर परफॉर्मेंस से जजों को हैरान कर दिया। इस जोड़ी ने शो में फिल्म ''फटा पोस्टर निकला हीरो के गाने धतिंग नाच'' पर शानदार डांस किया।
इस शो में शामिल होने वाले लोगों ने सोनाली की दिल खोलकर तारीफ की। उनकी नजरों में सोनाली के प्रति सम्मान उस वक्त और बढ़ा जब वहां मौजूद लोगों को उनके परिवार के बारे में पता चला।
सोनाली ने बताया कि उनके पिता एक किसान हैं जो रोज 80 रुपए कमाते हैं। आर्थिक तंगी के चलते सोनाली ने अपने जीवन में हर दिन चुनौतियों का सामना किया है।
यहां तक कि कई बार उनके घर में दो वक्त की रोटी भी नहीं होती थी। जिसके चलते उन्हें भूखा सोना पड़ता था।
आज सोनाली ने अपनी प्रतिभा के बल पर परिवार को जो शोहरत दिलाई है, वो यकीनन तारीफ के काबिल है। सोनाली मजूमदार 2012 में इंडियाज गॉट टैलेंट सीजन 4 के विजेता भी रही हैं।
सोनाली ने अपने कमाए हुए पैसों से जमीन खरीदी और घर बनवाया। इससे पहले सोनाली ने ब्रिटेन गॉट टैलंट में भाग लिया था।
वहां उन्होंने अपने गांव के बारे में बात करते हुए कहा था - मैं बांग्लादेश के पास एक छोटे से गांव की रहने वाली हूं जहां बिजली की सुविधा भी नहीं है। इस गांव के बारे में लोगों को तब पता चला जब मैं इंडियाज गॉट टैलेंट सीजन 4 की वीनर रही।
अमेरिकाज गॉट टैलेंट के लिए सोनाली और मारजू ने रोज 8-10 घंटे प्रैक्टिस की है। उनका सपना था कि वे इस शो का हिस्सा बनें जो बिवाश सर की वजह से सच हुआ।
सोनाली कहती हैं जब मैंने डांस शो के लिए प्रैक्टिस की तो मेरे दिमाग में बस यही बात थी कि मुझे एक ऐसी परफॉर्मेँस देना है जिसे दर्शक देखते रह जाएं।
ऐसा ही हुआ भी। इस जोड़ी ने अपनी प्रतिभा से अमेरिका में देश का नाम रोशन किया। 2013 में सोनाली झलक दिख ला जा का भी हिस्सा बनीं थी और सेकंड रनर अप रहीं थीं।
असम राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण द्वारा 21 अगस्त को प्रकाशित दैनिक बाढ़ रिपोर्ट के अनुसार, असम में चल रही बाढ़ से 30 जिलों के 56.9 लाख से अधिक लोग प्रभावित हुए हैं। इस बाढ़ से घिरी महिलाओं की तमाम परेशानियों के साथ एक परेशानी सैनिटरी पैड न मिल पाना भी है।
राहत किट में सैनिटरी पैड को शामिल करने के लिए कार्यकर्ता मयूरी भट्टाचार्जी ने Change.org याचिका शुरू की है। असम में 600 से अधिक राहत शिविर और राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल तैनात किया गया है।
इन मुश्किल हालातों में उन महिलाओं के लिए सैनिटरी पैड की कोई सुविधा नहीं है जिन्हें हर महीने इसकी जरूरत होती है। बाढ़ राहत किट में सैनिटरी पैड का न होना महिलाओं के लिए दुर्भाग्यपूर्ण ही है।
मयूरी कहती हैं - ''मैं असम की बाढ़ प्रभावित उन लाखों लड़कियों और महिलाओं की ओर से बोल रही हूं जो हर साल बाढ़ में फंस जाती हैं। यहां जब बाढ़ का पानी आता है तो घर का एक कपड़ा भी साफ और सूखा नहीं रहता।
जब इन महिलाओं को राहत कैंप में जगह दी जाती है तो वहां भी इनके लिए सैनिटरी पैड की सुविधा नहीं होती। न ही टॉयलेट का उचित प्रबंध होता है''।
असम में तेजपुर की रहने वाले भट्टाचार्जी ने राज्य के मंत्री हेमंत बिस्वा सरमा से आपदा के दौरान जरूर सामानों की सूची में सेनेटरी पैड को शामिल करने का आग्रह किया है। वह लगातार राज्यमंत्री को ईमेल भी करती रही हैं। लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं मिलने पर मयूरी ने इस याचिका की शुरुआत की।
Markets regulator Sebi has imposed a total fine of Rs 70 lakh on 14 individuals for indulging in fraudulent trading activities in the shares of Vani Commercials Ltd more than three years ago
महिलाएं सोशल मीडिया पर अपने फोटो पोस्ट करने से पहले खुद की तस्वीरों पर एक फिल्टर का उपयोग करती हैं क्योंकि साधारण फोटो में दिखने वाले चेहरे के रिंकल्स और स्ट्रेच मार्क्स उन्हें शर्मिंदगी का अहसास कराते हैं।
2000 महिलाएं पर किए गए इस सर्वे में पाया गया कि यह फीलिंग 24 साल या इससे कम उम्र की युवतियों में सबसे ज्यादा होती है। इनमें से 51% युवतियां ऐसी भी है जिन्होंने माना कि वे बिना फिल्टर के सोशल मीडिया पर कभी अपनी फोटो अपलोड नहीं करती हैं।
डिजिटल एप का इस्तेमाल करती हैं
वे महिलाएं जिनके शरीर पर सेल्युलाईट या स्ट्रेच मार्क्स के निशान थे, उनमें से सिर्फ 16% ने इन कमियों के साथ सोशल मीडिया पर अपनी फोटो पोस्ट की।
अपनी फोटो को अपलोड करने से पहले वे ऐसे डिजिटल एप का इस्तेमाल करती हैं जिससे उनकी खूबसूरती कम करने वाले इन निशानों को मिटाया जा सके।
तारीफ के कमेंट्स और लाइक्स मिलते हैं
ब्यूटी कॉन्शस इन महिलाओं में से 50% ने माना कि उनकी बिना एडिट की गई फोटो के बजाय फिल्टर का उपयोग करके अपलोड की गई फोटोज को लोग ज्यादा पसंद करते हैं। इन फोटो को देखकर उन्हें तारीफ भरे कमेंट्स और लाइक्स मिलते हैं।
इस रिसर्च को डव ने संचालित किया। डव का नाम महिलाओं के लिए बॉडी कॉन्फिडेंस बढ़ाने वाले उत्पादों के लिए मशहूर है। वे महिलाओं को ऐसी कहानी बयां करने के लिए प्रोत्साहित करती हैं जो उनकी त्वचा से जुड़ी हुई हो।
इस सर्वे से ये भी पता चलता है कि 33% महिलाएं अपनी स्किन को उनकी खूबसूरती कम होने की वजह मानती हैं। वहीं 28% का कहना है कि उन्हें अपनी स्किन बिल्कुल पसंद नहीं। इनमें से 13% महिलाओं ने अपनी त्वचा को खराब भी बताया।
ब्यूटी को लेकर ज्यादा सचेत रहने लगी हैं
एक तिहाई महिलाओं का कहना है कि अगर उनकी त्चचा पर दाग-धब्बे या सेल्युलाइट के निशान नहीं होते तो ज्यादा खूबसूरत नजर आतीं। इस वन पोल सर्वे में 84% महिलाओं का कहना है कि उनकी स्किन को सोशल मीडिया पर जिस तरह दर्शाया जाता है, असल में वैसा हमेशा दिखना संभव नहीं है। इससे लेडीज अपनी ब्यूटी को लेकर ज्यादा सचेत रहने लगी हैं।
इस सर्वे के अनुसार 39% महिलाएं अपनी त्वचा की बेहतर देखभाल के लिए पर्सनल केयर प्रोडक्ट का इस्तेमाल करती हैं। वहीं 73% महिलाएं ये भी मानती हैं कि इस तरह के प्रोडक्ट्स बहुत महंगे होते हैं। इन्हें बार-बार खरीदना उनके लिए संभव नहीं है।
Sebi had allowed custodians to furnish scanned documents instead of originals for FPI registrations in the backdrop of the pandemic. The relaxation was given till June 30 and later extended to Aug 31
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने रेडियो प्रोग्राम मन की बात में जिस स्कूल टीचर की तारीफ की, उसका नाम ममता मिश्रा है। ममता यूपी के प्रयागराज के विकासखंड चाका में टीचर हैं। मोदी ने उन्हें प्रोत्साहित करने के लिए एक लेटर भी लिखा।
आज ममता मिश्रा के प्रयासों से इस स्कूल की गिनती प्रायवेट स्कूल में होने लगी है। अगर हर स्कूल में ममता के बताए हुए रास्ते को अपनाया जाए तो वह दिन दूर नहीं जब प्रायवेट स्कूल के बच्चे भी सरकारी स्कूल में पढ़ने लगेंगे और हर स्टूडेंट पढ़ाई में टॉपर होगा।
ममता के स्कूल के अधिकांश बच्चे फर्स्ट क्लास है। इसका सारा श्रेय ममता को जाता है। उन्हीं के प्रयासों से इस सरकारी स्कूल की गिनती प्रायवेट स्कूल में की जाती है।
ममता ने कानपुर में केंद्रीय विद्यालय से स्कूली शिक्षा प्राप्त की। उसके बाद उन्होंने छत्रपति साहू जी महराज यूनिवर्सिटी, कानपुर से बीएड किया। उसके बाद मास्टर्स डिग्री ली। वे कहती हैं - मेरी मां एक टीचर हैं। मैंने बचपन से अपनी मां को पूरी ईमानदारी के साथ स्टूडेंट को पढ़ाते हुए देखा। मेरी मां मेरे लिए रोल मॉडल बनीं। उन्हें देखकर तभी मैंने ये तय कर लिया था कि एक दिन बड़े होकर मैं भी टीचर बनूंगी।
इस स्कूल की काया पलटने में ममता को कड़ी मेहनत करना पड़ी। वे कहती है सबसे पहले मैंने उन लोगों की सोच बदलने का प्रयास किया जो सरकारी स्कूल को गंभीरता से नहीं लेते।
इन स्कूलों में पढ़ने वाले अधिकांश बच्चे गरीब घर से थे। इन बच्चों को पहले घर का काम करना पड़ता है। उसके बाद ये स्कूल आ पाते हैं। ममता ने इन बच्चों के माता-पिता को शिक्षा का महत्व समझाया ताकि वे जागरुक हो सकें।
इन विद्यार्थियों में शिक्षा का स्तर ऊंचा करने के साथ ही ममता ने इनकी फिजिकल एक्टिविटीज बढ़ाने का भी प्रयास किया। उन्होंने स्कूल में स्पोर्ट्स व एक्स्ट्रा कैरिकुलर एक्टिविटीज की शुरुआत की।
इसके लिए उन्होंने स्मार्ट क्लासेस का सहारा लिया। अपने स्कूल के बच्चों के लिए मोबाइल, टेबलेट जैसे सारी चीजें उन्होंने अपनी सैलरी से खरीदीं और उन्हें पढ़ाने की शुरुआत की।
इस खबर के सोशल मीडिया पर वायरल होते ही लोग उनकी तारीफ करते नहीं थक रहे हैं। लॉकडाउन के बाद से वे बच्चों को दीक्षा एप के माध्यम से पढ़ा रही हैं।
उन्होंने बच्चों की पढ़ाई में ऑडियो-वीडियो तकनीक का इस्तेमाल किया है। उनका यू ट्यूब चैनल भी है जिसका नाम ''ममता अंकित'' है। इस चैनल के माध्यम से वे बच्चों को पढ़ाई के रोचक तरीके बताती हैं। साथ ही टीचर्स को पढ़ाई के आसान तरीके भी सीखाती हैं।
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यू ट्यूब चैनल 'माय विलेज शो' के जरिये शोहरत हासिल करने वाली मिरकुरी गंगवा की उम्र 58 साल है। वे तेलंगाना के एक गांव में रहती हैं। लोकल तेलंगाना स्टाइल को यू ट्यूब पर बयां करते हुए गंगवा को देखा जा सकता है।
गंगवा टॉलीवुड फिल्मों में भी काम कर चुकी हैं। हालांकि इस महिला के जीवन में संघर्ष भी कम नहीं रहा। उन्होंने एक समय वो भी देखा है जब परिवार का पेट पालने के लिए वे कुली का काम करती थीं। उसके बाद उन्होंने खेतों में काम किया और बीड़ी बनाकर घर का खर्च चलाया। गंगवा के 8 पोता-पोती हैं।
गंगवा का पति शराब पीता और कोई काम नहीं करता था। ऐसे में अपने तीन बच्चों का सहारा गंगवा ही थीं। जिसने हर हाल में बच्चों की अच्छी परवरिश की। गंगवा के दामाद का नाम श्रीकांत श्रीराम है। वह एक फिल्म मेकर है।
श्रीकांत ने गंगवा की योग्यता को पहचाना और उसे अपने चैनल में एक्टिंग करने का मौका दिया। गंगवा यूट्यूब पर तो फेमस हैं ही, साथ ही इंस्टाग्राम पर भी उनके 45 हजार से ज्यादा फॉलोअर्स हैं।
गंगवा कहती हैं ''जब मैं खेतों में काम करती और दूसरे लोगों को वीडियो देखते हुए देखती तब मैंने यह कभी नहीं सोचा था कि एक दिन लोग मेरा भी वीडियो देखेंगे। गंगवा को इस बात की बहुत खुशी है कि यू ट्यूब पर दर्शकों ने उनके काम को पसंद किया है''।
गंगवा को अब तक दो तेलुगू फिल्मों में काम करने का मौका भी मिला है। वह कई फिल्मों के प्रीमियर के दौरान भी देखी जाती हैं।
गंगवा से जब उनकी उपलब्धि के बारे में बात की जाती है तो वे कहती हैं - ''कुछ कर दिखाने का जोश हो तो उम्र कोई मायने नहीं रखती। अगर हमें अपनी ताकत का एहसास हो जाए तो हम सब कुछ कर सकते हैं''।
आज गंगवा के गांव को उनके नाम से पहचाना जाता है। पति के निधन के बाद गंगवा दिन-रात अपनी एक्टिंग में निखार लाने के लिए मेहनत कर रही हैं। सोशल मीडिया पर उन्हें कई फिल्म मेकर्स और पर्सनालिटीज द्वारा फॉलो किया जाता है।
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जब से लॉकडाउन शुरू हुआ है, तब से जिन चीजों को लोग सबसे ज्यादा मिस कर रहे हैं, उनमें स्ट्रीट फूड भी शामिल है। ऐसे ही लोगों में वो शेफ भी हैं जो खुद तो सारी दुनिया को एक से बढ़कर एक लजीज खाना पकाकर खिलाते हैं।
लेकिन जब उनके खुद के खाने की बारी आती है तो वक्त मिलते ही वे देश और दुनिया के बड़े रेस्टोरेंट में जाने के बजाय स्ट्रीट फूड खाना पसंद करते हैं। फिर चाहे दिल्ली के सरोजिनी नगर की चाट हो या मुंबई का वड़ा पाव।
देश के ऐसे कई शेफ हैं जिन्होंने सोशल मीडिया के जरिये अपने स्ट्रीट फूड के प्रति प्यार को दर्शाया है। उन्होंने ये भी बताया कि ऐसी कौन सी खाने की चीजें हैं जिन्हें लॉकडाउन के दौरान सबसे ज्यादा मिस किया गया। एक नजर टॉप 5 शेफ के स्ट्रीट फूड लव पर।
डोमा को याद आए प्यारे कबाब
डोमा वेंग कोलकाता में ब्लू पॉपी रेस्टोरेंट की शेफ हैं। वैसे तो वे डम्पलिंग और मोमोज बनाने के लिए जानी जाती हैं। लेकिन जब उनसे खुद उनके फेवरेट फूड के बारे में पूछा जाता है तो वे प्यारे कबाब खाना पसंद करती हैं। लॉकडाउन के बाद से अब तक वे सेंट्रल कोलकाता की गलियों में मिलने वाले प्यारे कबाब को मिस कर रही हैं।
वे कहती हैं लॉकडाउन से पहले प्यारे कबाब बनाने वाले ठेले पर लोगों की भीड़ देखते ही बनती थी। इन कबाब को हरे धनिये की चटनी के साथ खाना उन्हें बहुत पसंद है। प्यारे कबाब सीख कबाब की तरह ही होते हैं। इसे लोहे की सलाखों पर ग्रिल किया जाता है।
संचित साहू के फेवरेट दही बड़ा आलू दम
नई दिल्ली के शेफ संचित साहू कटक (ओडिशा) के रहने वाले हैं। दिल्ली में रहने के बाद भी वे कटक के दही बड़ा आलू दम को खूब मिस करते हैं। इस डिश में एक वड़ा होता है। इसके ऊपर मसालेदार आलू दम को डाला जाता है। उसके ऊपर सेंव, चटनी और कटे हुए प्याज की गार्निशिंग की जाती है।
लॉकडाउन में वे अपने फेवरेट स्ट्रीट वेंडर रघु द्वारा बनाई गई इस डिश को याद करते हैं। संचित जब कटक जाते हैं तो रोज इस ठेले की ये खास डिश खाना पसंद करते हैं। वे कहते हैं कि कटक के ये डिश इतनी मशहूर है जिसका स्वाद लेने के लिए लोग यहां दूर-दूर से आते हैं।
पवन बिष्ट नहीं भूल पाए हलवा पराठे का स्वाद
शेफ पवन बिष्ट कहते हैं लॉकडाउन से पहले मैं अपने दोस्तों के साथ रोज पुरानी दिल्ली या निजामुद्दीन जाकर हलवा पराठा खाता था। डीप फ्राय किए हुए पराठे को सूजी के हलवे के साथ खाना पवन को खूब पसंद है।
इस पराठे को टूटी फ्रूटी से सजाकर आकर्षक बनाया जाता है। इससे इसका स्वाद भी बढ़ता है। पुरानी दिल्ली में मिलने वाले कबाब, बटर चिकन टिक्का को रूमाली रोटी, प्याज और हरी चटनी के साथ खाना उन्हें अच्छा लगता है।
संजना पटेल
ला फॉलिज चॉकलेट फैक्ट्री की एग्जीक्युटिव शेफ संजना पटेल फ्रेंच पेस्ट्रीज और ब्रेड बनाने के लिए जानी जाती हैं। वक्त मिलते ही उन्हें स्ट्रीट फूड पानी पूरी को एंजॉय करना अच्छा लगता है।
वे कहती हैं जब मैंने मुंबई के बांद्रा में अपने काम की शुरुआत की थी तो मैं हर हफ्ते एलको आर्केड में पानी पूरी खाने जाती थी। मेरी तरह मेरी दादी को भी चाट का बहुत शौक है। वे जब भी बांद्रा जाती हैं तो एलको की पानी पूरी जरूर खाती हैं।
लॉकडाउन के दौरान भी संजना ने रगड़ा पेटिस के साथ एक्स्ट्रा मीठा और पानी पूरी को मिस किया। वे कहती है- शाम के वक्त रगड़ा पेटिस पर अलग से भुना हुआ जीरा डालकर खाना उन्हें पसंद है।