मरीन इंजीनियर का कार्य जहाज की मरम्मत करना और उसकी देख-रेख करना होता है। आजकल के आधुनिक जहाज नवीनतम तकनीक और उपकरणों का प्रयोग करते हैं। समुद्री इंजीनियर को इन नवीनतम उपकरणों को समझना होता है। उसे इन उपकरणों को चलाना और मरम्मत करना आना चाहिये।
सोनाली का जन्म इलाहबाद में हुआ। वे बचपन से ही समंदर और जहाजों से आकर्षित होती थीं। तभी से वे सारी दुनिया की सैर करना चाहती थीं। लेकिन मरीन इंजीनियर बनने की प्रेरणा उसे अपने अंकल से मिली।
सोनाली के चाचा नौसेना में थे, जिनसे बात करके वह भी जहाजों पर रहकर काम करने के बारे में सोचा करती थीं। उनका यही ख्वाब उस वक्त सच हुआ जब उसने 1995 में IIT का एंट्रेंस एक्जाम पास किया और मरीन इंजीनियरिंग में एडमिशन लिया।
सोनाली के इस क्षेत्र को अपना करिअर चुनने से उनके पिता भी नाराज थे। लेकिन सोनाली ने जो सोचा, वो करके दिखाया। हालांकि सोनाली के लिए पुरुषों के क्षेत्र में काम करना इतना आसान नहीं रहा। यहां तक कि उनके साथ पढ़ने वाले कई लड़के भी उनका हौसला कम करने की कोशिश करते थे। लेकिन उनके टीचर्स ने उन्हें हमेशा आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया।
जब वे मरीन इंजीनियर बनीं, उस वक्त उनकी उम्र सिर्फ 22 साल थी। सोनाली के कोलकाता के पास तरातला में स्थित मरीन इंजीरियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट एडमिशन लेने के बाद एक मुश्किल ये भी आई कि 1500 कैडेट्स के बीच वे अकेली महिला थीं। इसलिए उन्हें कहां ठहराया जाए। लंबे समय तक सोच-विचार के बाद उन्हें ऑफिसर्स क्वार्टर में ठहराया गया।
मरीन इंजीनियर का कोर्स पूरा करने के बाद सोनाली शिपिंग कंपनी के 6 महीने के प्री सी कोर्स के लिए सिलेक्ट हुईं। इस दौरान उन्होंने सिंगापुर, श्रीलंका, थाइलैंड, फिजी और ऑस्ट्रेलिया में अपनी ट्रेनिंग पूरी की। वे 27 अगस्त 1999 को चार साल की कड़ी मेहनत के बाद मरीन इंजीनियर बनीं और जहाज के मशीन रूम का चार्ज संभाला। इस तरह उन्होंने अपने बचपन का सपना साकार किया।
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