Tuesday, 25 August 2020

68 साल तक जरूरतमंदों की सेवा कर दुनिया को दिया इंसानियत का संदेश, नन के पारंपरिक परिधानों से अलग नीली बॉर्डर वाली सफेद साड़ी पहनकर खुद को लोगों से जोड़ा

गरीबों की मसीहा बनकर लोगों की सेवा करने वाली मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त 1910 को एक अल्बेनियाई परिवार में उस्कुब, उस्मान साम्राज्य में हुआ था। मदर टेरेसा का नाम ‘अगनेस गोंझा बोयाजिजू’ था। इसका अर्थ होता है 'फूल की कली'। वे रोमन कैथोलिक नन थीं। जनवरी 1929 में वे भारत आईं, और हमेशा के लिए यहीं की होकर रह गयीं।

1948 में उन्होंने भारतीय नागरिकता ली। उन्होंने 1950 में कोलकाता में मिशनरीज ऑफ चैरिटी की स्थापना की। मदर टेरेसा ने 68 साल तक गरीबों और लाचार वर्ग की सेवा कर दुनिया को मानवता की शिक्षा दी। उनकी स्थापित की हुई संस्था, मिशनरीज ऑफ चैरिटी दुनिया के 123 देशों में 4500 सिस्टर्स के जरिए लोगों की सेवा कर रही है। उनके जन्मदिन पर देखिए उनके सेवा भाव को दिखाती चंद तस्वीरें :

1950 में मदर टेरेसा ने कोलकाता का रुख किया। यहां आने से पहले वह ऑटोमन, सर्बिया, बुल्गेरिया और युगोस्लाविया की नागरिक रह चुकी थीं। उनका कहना था, ''जख्म भरने वाले हाथ प्रार्थना करने वाले होंठों से कहीं ज्यादा पवित्र होते है''।

भारत उनका पांचवां और सबसे पसंदीदा घर बना। उन्होंने नन के पारंपरिक परिधानों से इतर नीले बॉर्डर वाली सफेद साड़ी पहनकर खुद को लोगों से जोड़ा। साल 1962 में भारत सरकार ने उनकी समाजसेवा और जनकल्याण की भावना से प्रभावित होकर उन्हें 'पद्मश्री' से नवाजा।

उन्होंने गरीबों के इलाज और गरीब बच्चों की पढ़ाई के लिए ‘निर्मल हृदय’और ‘निर्मला शिशु भवन’के नाम से आश्रम की स्थापना की। ‘निर्मल हृदय’ का काम बीमारी से पीड़ित मरीजों की सेवा करना था, वहीं 'निर्मला शिशु भवन’ का काम अनाथ और बेघर बच्चों की मदद करना था। वे यहां रहकर खुद ही गरीबों की सेवा करती थीं।

मदर टेरेसा को 1979 में नोबेल शांति पुरस्कार दिया गया, हालांकि मदर टेरेसा ने प्राइज मनी लेने से इंकार कर दिया और कहा कि इसे भारत के गरीब लोगों में दान कर दिया जाए।

मानवता की प्रतिमूर्ति मदर टेरेसा ने लोगों की भलाई का कभी कोई मोका नहीं जाने दिया। उनका कहना था कि ''अगर आपमें सौ लोगों को खिलाने का सामर्थ्य नहीं है तो किसी एक को खिलाएं''।

1931 में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भारत के गरीबों को भूखे मरने की नौबत आ पड़ी थी। बच्चों और महिलाओं की स्थिति सबसे दयनीय थी। ऐसे में मदर टेरेसा ने गरीब बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। गरीबों के सम्मान के साथ जीने की शिक्षा दी।

1947 में जब देश आजाद हुआ उस वक्त भयानक दंगे हुए. मदर टेरेसा उस वक्त भी दंगा पीड़ितों की सेवा में जुटी रहीं। मदर टेरेसा को वेटिकन सिटी में पोप फ्रांसिस ने संत की उपाधि से सम्मानित किया था। दुनियाभर से आए लाखों लोग इस ऐतिहासिक क्षण के गवाह बने थे।

मदर टेरेसा ने अनाथ बच्चों के लिए कई आश्रम, गरीबों के लिए किचन, स्कूल, कुष्ठ रोगियों की बस्तियां और बेसहाराओं के लिए घर बनवाए। उन्हें दुनिया का सर्वोच्च सम्मान नोबेल शांति पुरस्कार और भारत के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से नवाजा गया। 5 सितंबर 1997 में उन्होंने कोलकाता में आखिरी सांस ली।



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Served the needy for 68 years, conveying the message of humanity to the world, wearing a blue border white saree, different from the traditional costumes of the nuns, and attached themselves to the people.


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