उत्तरी कर्नाटक के शिगांव में 19 अगस्त 1950 में जन्मीं सुधा का संघर्ष खुद को पढ़ाई में साबित करने तक ही सीमित नहीं रहा, बल्कि शादी के बाद भी लंबे समय तक जारी रहा। इंफोसिस की चैयरपर्सन होने के साथ ही वे एक लेखिका और प्रसिद्ध समाज सेविका भी हैं।
उनकी किताबों को मिली शोहरत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इन किताबों का 15 भाषाओं में अनुवाद हुआ है। सुधा का सपना है कि हर स्कूल में बच्चों के लिए लाइब्रेरी हो। अपने इस सपने को साकार करने के लिए अपने पब्लिक चैरिटेबल ट्रस्ट के माध्यम से उन्होंने देश के अलग-अलग स्कूलों में 70,000 लाइब्रेरी बनवाई हैं।
वे 16,000 पब्लिक टॉयलेट और बाढ़ पीड़ितों के लिए 2,300 मकान बनवा चुकी हैं। महिला समानता की पक्षधर सुधा मूर्ति पूरे आत्मविश्वास के साथ महिलाओं को आगे बढ़ने के रास्ते दिखाती हैं।
महिला समानता दिवस पर भास्कर से खास बातचीत को उन्होंने अपने शब्दों में कुछ इस तरह बयां किया है। इस बातचीत के मुख्य अंश जानिए उन्हीं की जुबानी :
महिलाओं के प्रति किए जाने वाले भेदभाव का सामना सबसे पहले मैंने अपने कॉलेज के दिनों में किया। ये उन दिनों की बात है जब मैं बेंगलुरु के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस (टाटा इंस्टीट्यूट) से कंप्यूटर साइंस में मास्टर्स डिग्री ले रही थी।
अप्रैल 1974 की बात है जब मैं पोस्ट ग्रेजुएट डिपार्टमेंट में इकलौती लड़की थी और वहां के लेडीज होस्टल में रहती थी। कंप्यूटर साइंस में ग्रेजुएट करने के बाद मुझे अमेरिका की एक यूनिवर्सिटी से स्कॉलरशिप मिली। उन दिनों मैंने भारत में जॉब करने के बारे में कभी सोचा भी नहीं था।
एक दिन कॉलेज के नोटिस बोर्ड पर मेरी नजर गई। वह जॉब के सिलसिले में आया हुआ नोटिस था, जो प्रसिद्ध ऑटोमोबाइल कंपनी टेलको (टाटा मोटर्स) से आया था। इसमें साफ तौर पर यह लिखा गया था कि कंपनी में युवा और मेहनती इंजीनियर्स की जरूरत है।
इस नोटिस के सबसे नीचे की लाइन में लिखा था - 'महिला उम्मीदवार इस कंपनी में अप्लाई न करें'। इस नोटिस को पढ़कर मुझे बहुत दुख हुआ। मेरे जीवन का यह पहला अनुभव था, जब मैंने महिलाओं के साथ होने वाली असमानता को देखा और उसके खिलाफ आवाज उठाने का फैसला किया।
इस नोटिस को पढ़ने के बाद मैंने एक पोस्ट कार्ड पर टाटा के चैयरपर्सन को लेटर लिखा और उन्हें ये बताया कि टेलको जैसी प्रतिष्ठित कंपनी में भी लैंगिक असमानता है। मैं इस लेटर को पोस्ट करके भूल चुकी थी। लेकिन, 10 दिन से भी कम समय में मुझे एक टेलीग्राम मिला जिस पर लिखा हुआ था कि टेलको की पुणे कंपनी में मुझे इंटरव्यू के लिए बुलाया गया है।
उसमें ये भी लिखा था कि मेरे आने-जाने का खर्च भी यही कंपनी उठाएगी। लंबे इंटरव्यू के बाद टेलको शॉप फ्लोर में काम करने वाली मैं पहली महिला बनीं। ये तो मुझ जैसी महिला द्वारा खुद को साबित करने का सिर्फ एक उदाहरण है। लेकिन, हम आज भी हमारे समाज में महिला समानता की बात करें तो ऐसे कई काम हैं, जो सिर्फ महिलाएं कर सकती है जैसे एक बच्चे को जन्म देना।
वे घर के कामों को पुरुषों के बजाय सही तरीके से मैनेज कर सकती हैं। इसी तरह कुछ काम सिर्फ पुरुष कर सकते हैं, इन्हें महिलाओं के लिए करना मुश्किल होता है। लेकिन, बौद्धिक रूप से दोनों की क्षमताएं समान हैं। इस मामले में हम दोनों को एक-दूसरे से कम नहीं बता सकते हैं।
अगर बात महिला समानता की करें तो इसे बढ़ावा देने के लिए 26 अगस्त ही क्यों, बल्कि हर दिन प्रयास किए जाने की जरूरत है। साल में एक दिन महिला समानता दिवस मना लेने से महिलाएं पुरुषों की बराबरी का दर्जा नहीं पा लेंगी।
महिलाओं के लिए पुरुषों के बराबर समानता पाने से ज्यादा जरूरी, उनकी नजरों में सम्मान पाना है। इसके लिए उन्हें कड़ी मेहनत करके आगे बढ़ना होगा। वे पढ़ाई करके समाज में और पुरुषों के साथ भी बराबरी का दर्जा पा सकती हैं।
जब तक महिलाएं पूरे आत्मविश्वास के साथ अपने अच्छे कामों के जरिये खुद को साबित नहीं करेंगी, तब तक समाज में उन्हें उचित सम्मान नहीं मिलेगा। इसका सबसे अच्छा उदाहरण किरण बेदी, कई वुमन मिलिट्री ऑफिसर्स और महिला पायलट हैं।
महिलाओं के लिए आगे बढ़ने का हर रास्ता अच्छी शिक्षा से होकर गुजरता है। आपके साथ हालात चाहे कितने ही मुश्किल क्यों न हों, लेकिन हर हाल में अपनी पढ़ाई पूरी करें। अच्छी शिक्षा ही आपका करिअर और जीवन दोनों को नई दिशा देने में मदद करेगी।
आज के दौर की बात की जाए तो कोविड-19 को मैं तीसरा विश्व युद्ध मानती हूं। इस दौर में महिलाओं को पुरुषों से प्रतिस्पर्धा करने और खुद को सबसे अच्छा साबित करने के बजाय महिला-पुरुष दोनों को एक-दूसरे की मदद करने की जरूरत है। इस भावना के साथ ही इस समय को सही तरीके से गुजारा जा सकता है।
आखिर में, मैं अगर उनकी बात करूं जिनसे मैंने जीवन का सबक सीखा तो वे जेआरडी टाटा हैं। उन्हें मैं अपना रोल मॉडल मानती हूं। मैंने उनसे उदारता, अपने स्टाफ के प्रति दया का भाव और सादगी के साथ काम करने जैसे कई गुण सीखे। उनकी आंखें इस दुनिया से चले जाने के बाद भी मुझे आसमान से हर रोज देखती होंगी।
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