इंडिपेंडेंट मॉनिटरिंग बोर्ड द्वारा इंग्लैंड की महिला कैदियों पर हुई रिसर्च के अनुसार, 60% महिला कैदियों के पास जेल से छूटने के बाद आवास की सुविधा नहीं है।
शोधकर्ताओं ने माना कि जेल से बाहर आने पर ये महिलाएं सोफा सर्फ करने या होस्टल में रहने को मजबूर हो जाती हैं। ये सुविधा न मिलने पर उनके पास फुटपाथ पर गुजर-बसर करने के अलावा कोई और चारा नहीं होता है। कई बार इस तरह की मुश्किलों का सामना करने से ज्यादा अच्छा वे दोबारा जेल लौटना पसंद करती हैं।
जेल में रहने वाली 40% महिलाएं ये मानती हैं कि वे जब यहां से रिहा होंगी तो उनके पास जाने के लिए कोई जगह नहीं है। इस साल फरवरी माह में दस जेलों की 80 महिलाओं ने ये पाया कि हम में से एक चौथाई महिलाएं अपना घर खो चुकी हैं। छह में से एक महिला जेल में आने से पहले ही बेघर थीं।
रिसर्च साभार : independent.co.uk
41% महिला कैदियों का कहना है कि जेल से रिहा होने के बाद उनके पास रहने के लिए घर है। जबकि 45% महिलाएं बेघर हैं और 14% के घर का स्थानीय पता भी नहीं है।
फ्रंट लाइन सर्विस प्रोवाइडर यह मानते हैं कि जेल में महिलाएं अक्सर उन लोगों की तुलना में अधिक गंभीर अपराधों की शिकार होती हैं, जिनके लिए उन्हें दोषी ठहराया गया है। प्रिजन रिफार्म ट्रस्ट द्वारा जारी हालिया रिपोर्ट के अनुसार, जेल में 80 % महिलाएं अहिंसक अपराधों की वजह से थीं।
इससे ये भी पता चलता है कि कैदियों के लिए बने सिस्टम में सही तरीके से बातचीत की कमी होती है। इंडिपेंडेंट मॉनटरिंग बोर्ड ये जब ये पूछा जाता है कि महिला कैदी रिहा होने के बाद कहां जाएंगी या उन्हें किस तरह की मदद चाहिए तो वे इस सवाल का सही जवाब नहीं देते हैं।
शोधकर्ताओं ने कहा कि आधे से अधिक महिलाओं को छह महीने से कम समय तक जेल में रहने के कारण जेल की टीमों को उनके रहने का प्रबंध करने में मुश्किल होती है।
कम सजा पाने वाली महिला कैदियों के लिए यहां से छूटने के बाद पुनर्वास का कोई इंतजाम नहीं होता। द इंडिपेंडेंट में प्रकाशित इस रिसर्च का एक दावा यह भी है कि जेल से रिहा होने वाली महिलाओं को पुरुषों की अपेक्षा अपने लिए जॉब ढूंढना मुश्किल होता है।
प्रिजन रिफॉर्म ट्रस्ट और वर्किंग चांस द्वारा किए गए अध्ययन के अनुसार, रिहा होने के छह हफ्ते के अंदर 10 में से एक पुरुष की तुलना में 20 महिलाओं में से एक महिला को जेल छोड़ने के छह सप्ताह बाद रोजगार मिला।
शोधकर्ताओं ने अपनी रिसर्च से ये बात साबित की है कि महिला कैदियों की आर्थिक स्थित ठीक होने का असर उनके बच्चों की परवरिश को प्रभावित करता है। अगर इन महिला कैदियों को नौकरी मिल भी जाती है तो वेतन कम मिलता है। कई जगह वे घरेलू हिंसा का शिकार भी होती हैं।
Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today
from Dainik Bhaskar https://ift.tt/2EfPN0M
No comments:
Post a Comment