बदरून्निसा की उम्र 20 साल है। वे श्रीनगर में रहती हैं और अपनी बनाई सूफी पेंटिंग के माध्यम से लोगों को इंस्पायर करती हैं। बदरून्निसा ने सबसे पहले अपनी मां से पेंटिंग बनाना सीखा।
उसके बाद एक ऑस्ट्रेलियन लड़की के साथ वर्कशॉप की। उसने बदरून्निसा को आर्ट थैरेपी सिखाई जिससे दिमाग शांत रहता है। यह रिलैक्स रखने में भी मदद करती है।
जब बदरून्निसा से ये पूछा जाता है कि वे सूफी पेंटिंग ही क्यों बनाती हैं तो वे कहती हैं - ''सूफी संत हमें एकता और शांति का संदेश देते हैं। मेरी बनाई हर पेटिंग मेरा ही आईना है''। बदरून्निसा ने बहुत कम उम्र से पेंटिंग बनाने की शुरुआत की थी।
वे अपनी पेंटिंग के माध्यम से सूफी महिलाओं को लोगों के सामने लाना चाहती हैं क्योंकि इन महिलाओं के बारे में कला के माध्यम से बहुत कम जानकारी हासिल है।
बदरून्निसा ने 8 वी कक्षा से सूफी परंपराओं के बारे में जानने की शुरुआत की थी। इन्हीं सूफी ट्रेडिशन को वे अपनी कला के माध्यम से लोगों के सामने लाती हैं। वे एब्सट्रैक्ट पेंटिंग बनाना पसंद करती हैं। वे चाहती हैं उनकी पेंटिंग के माध्यम से लोग सूफी संतों के बारे में जानें।
तुर्की में बदरुन्निसा की जिन पेंटिंग्स की प्रदर्शनी लगी थी वो मिडिल-ईस्ट क्राइसिस पर आधारित थीं। उनकी पेंटिंग्स आज तक अंकारा यूनिवर्सिटी में हैं। कई बार बदरुन्निसा को अपने महिला होने का नुकसान तब उठाना पड़ता है जब उन्हें अकेले सफर करना हो।
ऐसे में यह सुनने को मिलता है कि लड़की हो, अकेले कहां जाओगी? लेकिन ये सारी बातें बदरून्निसा की राह में रूकावट नहीं बनती। वे इन बातों से दूर कामयाबी की राह खुद बना ही लेती हैं।
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