नवरात्र में माता रानी के प्रति आस्था रखने और उन्हें प्रसन्न करने के लिए लोग नौ दिन का व्रत रखते हैं। मान्यता है कि इन नौ दिनों में रखे जाने वाले व्रत हमारी आत्मा की शुद्धता के लिए होते हैं। व्रत से तन, मन और आत्मा को शुद्धि मिलती है। नौ दिन व्रत रखने के साथ-साथ सोच की शुद्धि और दिमाग शांत रखने के लिए कुछ बदलाव अपने अंदर भी करें। ख़ुद को बेहतर और रिश्तों को मज़बूत बनाने के लिए ये बहुत ज़रूरी है। हम क्या कहते हैं, कैसा व्यवहार करते हैं, इस पर हमारी छवि निर्भर करती है। जब छवि बिगड़ती है, तो आस-पास मौजूद लोगों `से रिश्ते ख़राब होने लगते हैं। मानसिक तनाव बढ़ता है। पर इनमें सुधार लाने के लिए पहले इनके बारे में जानना ज़रूरी है। और सुधार लाना कैसे है, सचेतन इसमें आपकी मदद कर सकता है।
क्रोध से काबू पाएं
संस्कृत का एक श्लोक है-
‘क्रोधाद्भवति संमोह: संमोहात्स्मृतिविभ्रम:।
स्मृतिभ्रंशाद्बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति॥
इसका अर्थ है कि क्रोध से मनुष्य की स्मृति भ्रमित हो जाती है। स्मृति-भ्रम हो जाने से मनुष्य की बुद्धि नष्ट हो जाती है और बुद्धि का नाश हो जाने पर मनुष्य ख़ुद अपना ही नाश कर बैठता है। जब मनुष्य क्रोध में होता है, तो वो अपने आस-पास मौजूद लोगों से भी बुरी तरह पेश आता है। इससे रिश्ते ख़राब हो सकते हैं। ऐसे में जब भी गुस्सा आए, तो गहरी सांस लें। गुस्सा जताने के बजाय खुली हवा में टहलिए और शांत जगह पर कुछ देर अकेले बैठिए।
भाषा पर नियंत्रण रखें
भाषा हमारे मन, व्यवहार और क्रोध से जुड़ी होती है। हम जैसा सोचते हैं, बातें दिमाग में रखते हैं और हर दम क्रोध में रहते हैं, तो यही भावनाएं हमारे मुख से अभद्र भाषा के रूप में निकल जाती हैं। इससे हमारी छवि ख़राब होती है, लेकिन साथ ही साथ रिश्तों में भी तनाव पैदा होने लगता है। खुशी का माहौल और त्योहार भी कठोर और अभद्र शब्दों से ख़राब हो सकते हैं। ऐसे में कुछ भी कहने से पहले शब्दों पर ग़ौर ज़रूर करें।
झगड़े से दूर रहें
बहस करने से मामले सुलझते नहीं, बल्कि ये और उलझा देते हैं। झगड़े से दूर रहना है, तो बहस से दूरी बनाइए। ग़लती चाहे आपकी हो या किसी और की, बहस करने के बजाय माफ़ी मांगकर बात ख़त्म करने की कोशिश करें। परिवार में किसी ग़लती या बहस के चलते लंबे समय तक मन-मुटाव न रखें। इससे न सिर्फ़ आपसी रिश्ते बिगड़ते हैं बल्कि घर के अन्य सदस्यों पर भी इसका असर पड़ता है और परिवार में तनाव और नकारात्मकता भी बनी रहती है।
आदतों में बदलाव
अगर ऐसा लगता है कि आपके अंदर कुछ ख़राब आदते हैं जैसे कि ज़िद करना, लापरवाही या काम को टालना आदि, तो इन्हें दूर करने की कोशिश करें। कई दफ़ा इन आदतों का असर रिश्तों पर भी पड़ता है और हमारे जीवन पर भी। जितनी अच्छी आदतें अपनाएंगे, उतना ही जीवन खुशी से बिता सकेंगे। आदतों की फ़ेहरिस्त तैयार कीजिए और देखिए कि किन आदतों में सुधार करने की जरूरत है।
सीखने की सोच अपनाएं
अगर आप किसी से कहीं ज़्यादा बेहतर और सफ़ल हैं, तो इस पर गर्व करें, अभिमान नहीं। अभिमान या अहंकार हमारे दिमाग, हमारी सोच से पैदा होते हैं। ये रिश्तों से दूर करते ही हैं इसीलिए ख़ुद के लिए भी नुक़सानदायक हैं। इससे दूरी बनाने के लिए सबसे पहले दूसरों से अपनी तुलना करना बंद कीजिए। किसी भी इंसान के अंदर अहंकार तभी आता है जब वह अपने आप को दूसरों से श्रेष्ठ समझने लगता है। ये सोचकर मत चलिए कि आपको सब आता है, बल्कि यह सोचिए कि अभी और सीखने की ज़रूरत है।
बातें मन में न रखें
कुछ लोग मन में बहुत-सी बातें दबाए रहते हैं। अगर कोई दिक़्क़त भी होती है तो किसी से कहते नहीं हैं। मन ही मन घुटने से दिमाग पर असर पड़ता है और तनाव बढ़ता है। ऐसे में अपनी बात सामने रखने की कोशिश करें। जो लोग साफ़ शब्दों में अपनी बात रखते हैं, असल मायनों में उनका मन साफ़ होता है। अगर किसी की बात या व्यवहार पसंद नहीं है, तो पीठ पीछे बोलने के बजाय मिठास से उन्हें इसके बारे में बताएं। कुछ समय के लिए आपकी बात उन्हें बुरी लगेगी, लेकिन इससे आपका मन भी हल्का रहेगा।
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