विवाह से पहले होने वाले पति-पत्नी एक-दूसरे से ढेरों वादे करते हैं। लेकिन परिस्थितियां बदलने पर जब ये वादे पूरे नहीं होते तो दोषारोपण का दौर शुरू हो जाता है। इस कारण रिश्ता कमज़ोर होने के साथ ही आने वाला कल भी बिगड़ने लगता है। ऐसा न हो इसके लिए कुछ बातों को गांठ बांध लेना ही बेहतर है।
कमिटमेंट क्यों टूटते हैं
दरअसल शादी के पहले सबकुछ अच्छा लगता है। ज़िम्मेदारियां नहीं होती, रोक-टोक नहीं होती, लेकिन शादी के बाद परिवार में रहना, रिश्ते निभाना, समय की कमी होना आदि सामान्य बातें होती हैं। कई बार नौकरी में दबाव, परिवार का प्रेशर, ख़र्च बढ़ना आदि कई मुश्किलें सामने आती हैं। इसलिए धीरे-धीरे कमिटमेंट कमज़ोर पड़ने लगते हैं और वास्तविकता से दो-चार होना पड़ता है। इसलिए झगड़े या नाराज़गी से पहले इस बात को समझें कि अब ज़िम्मेदारी दोनों की है। एक के निभाने से रिश्ता नहीं निभेगा, दोनों की साझेदारी ज़रूरी है।
मामला बराबरी का है
मान लीजिए कि पति ने शादी के पहले वादा किया कि वो शादी के पहले ही साल विदेश यात्रा पर ले जाएगा, लेकिन विवाह के बाद आर्थिक स्थिति ठीक न होने पर ऐसा सम्भव नहीं हो पाया, तो ऐसे में वादा खिलाफ़ी का इल्ज़ाम देने या बार-बार शर्मिंदा करने के बजाय स्थिति को समझना ज़रूरी है। इस बात को समझना होगा कि जब सब सामान्य होगा तब आप बाहर जाएंगे। आख़िर आप दोनों ही गृहस्थी की गाड़ी को चलाते हैं तो दोनों को ही समझदारी से काम लेना होगा।
बंधन नहीं प्रेम समझें
कई बार देखा जाता है कि एक-दूसरे से किए वादों को लेकर दोनों साथी एक-दूसरे को इस क़दर ताने मारते हैं कि जैसे उन्होंने प्रेम में जो वादा किया था वो अब उनके लिए बंधन बन गया है। इसलिए ऐसा करना सरासर ग़लत है। यदि किसी कारणवश कोई साथी दूसरे की बात नहीं मान पा रहा है तो उसे समझें न कि उसे पहले किए वादों की याद दिलाएं। अन्यथा उसे यही लगेगा कि उसने वादा करके ग़लती कर दी।
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