कोरोनो वायरस महामारी के कारण गरीबी की मार झेल रहे हताश परिवारों द्वारा पूरे एशिया में हजारों लड़कियों को शादी के लिए मजबूर किया जा रहा है। अगर बाल विवाह की बात करें तो यह परंपरा न सिर्फ भारत बल्कि इंडोनेशिया, पाकिस्तान और वियतनाम आदि देशों में सदियों से जारी है।
लेकिन कम उम्र में शादी के आंकड़े बेहतर शिक्षा और महिलाओं के स्वास्थ्य की दिशा में फैली जागरूकता की वजह से कम हुए हैं।
एक एनजीओ 'गर्ल्स नॉट ब्राइड' की हेड शिप्रा झा के अनुसार, ''बाल विवाह को रोकने के लिए अब तक जो प्रयास किए गए हैं, वो कोरोना महामारी के चलते असफल होते नजर आ रहे हैं''।
वैसे भी हमारे समाज में फैली लैंगिक असमानता की वजह से बाल विवाह को रोक पाना मुश्किल था। ऐसे में महामारी ने इसे बढ़ावा दिया। गरीबी, शिक्षा की कमी, महंगाई और बेराेजगारी ने अभिभावकों में असुरक्षा की भावना को बढ़ाया है। इसके चलते अभिभावक बाल विवाह की ओर एक रूख कर रहे हैं।
यूनाइटेड नेशंस की रिपोर्ट के अनुसार ''पूरी दुनिया में हर साल लगभग 1 करोड़ 20 लाख लड़कियों की शादी 18 साल से कम उम्र में हो जाती है''।
'1 स्टेप 2 स्टॉप चाइल्ड मैरिज कैंपेन' की हेड रोली सिंह कहती हैं ''फिलहाल महामारी का दंश झेल रहे लोग मुश्किल हालातों को देखते हुए अपनी बेटियों का बाल विवाह कर रहे हैं''।
पिछले महीने में 275 पूर्व वैश्विक नेताओं, शिक्षा विशेषज्ञों, और अर्थशास्त्रियों ने विश्व बैंक जैसी सरकारों और संगठनों से आग्रह किया कि वे कोविड जनरेशन से होने वाले नुकसानों को सुनिश्चित करें क्योंकि इसका असर जिस तरह से शिक्षा और रहन-सहन के गिरते स्तर पर हो रहा है, वह चिंतनीय है।
जिन परिवारों में बाल विवाह हो रहा है, वहां शिक्षा ही एक मात्र ऐस उपाय है जो उन्हें बाल विवाह के नुकसानों को समझा सकता है। बेहतर शिक्षा पाकर ही ये लड़कियां बाल विवाह का विरोध करके जीवन में आगे बढ़ सकती हैं।
कोरोना के बढ़ते कुप्रभावों का असर उन मासूम बच्चियों पर भी हो रहा है जिनके माता-पिता को पैसों का लालच देकर बेटियों की शादी के लिए मजबूर किया जाता है।
हालांकि हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लड़कियों की शादी की उम्र 18 से बढ़ाकर 21 करने की बात कहीं है। वहीं वियतनाम में कानून के मुताबिक लड़कियों की शादी की उम्र 18 साल है। लेकिन यूनिसेफ की मानें तो यहां हर 10 में से 1 लड़की की शादी 18 की उम्र से पहले ही हो जाती है।
लोकल चैरिटी ब्लू ड्रैगन चिल्ड्रंस फाउंडेशन के अनुसार, ''ऐसे कई परिवार हैं जहां 14 साल की उम्र में लड़कियों को शादी के लायक मान लिया जाता है और जितनी जल्दी हो सके उनकी शादी कर दी जाती है। महामारी की वजह से स्कूल बंद होने के कारण बाल विवाह के आंकड़ों में तेजी आई है''।
यूनिसेफ का कहना है कि ''बाल विवाह को रोककर हम गरीबी की वजह से पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही इस परंपरा को खत्म कर सकते हैं। कम उम्र में लड़कियों की शादी करने के बजाय अगर उन्हें पढ़ा-लिखाकर काबिल बनाया जाए तो वे अपने परिवार की देखभाल सही तरीके से कर पाएंगी''।
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