भारत में कोरोना काल ने महिलाओं द्वारा संचालित किए जा रहे लघु उद्योगों को बुरी तरह प्रभावित किया है। इससे सामाजिक और आर्थिक अंतर में तेजी से बढ़ोतरी हुई है। इस सर्वे के अनुसार, महिलाओं के लिए सरकार, बैंक और अन्य फायनेंशियल इंस्टीट्यूशंस को जेंडर सेंसिटिव पॉलिसी लागू करना चाहिए ताकि वे इस स्थित से उबर सकें।
यह सर्वे ग्लोबल अलायंस फॉर मास इंटरप्रेन्योरशिप और क्रेया यूनिवर्सिटी की लीड संस्था (नॉन प्रॉफिट रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन) के सहयोग से हुआ। इस सर्वे की शुरुआत मई 2020 में हुई जो जनवरी 2021 तक जारी रहेगा। इस संस्था ने जुलाई से अगस्त के बीच में 1,800 उद्योगों के डाटा का अध्ययन किया। सर्वे में दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, गुजरात, महाराष्ट्र और राजस्थान को शामिल किया गया।
इस सर्वे के अनुसार कोरोना काल महिलाओं द्वारा संचालित किये जाने वाले लघु उद्योगों और छोटी कंपनियों को अधिक नुकसान हुआ है क्योंकि पुरुषों द्वारा बनाए गए प्रोडक्ट के बजाय महिलाओं द्वारा बनाए गए उत्पाद बहुत कम मार्जिन के साथ बाजार में बिकते हैं। महिलाओं द्वारा चलाए जा रहे 43% इंटरप्राइजेस को हर महीने 10,000 से भी कम का फायदा हुआ। जबकि पुरुषों द्वारा संचालित किए जा रहे 16% इंटरप्राइजेस ही इस श्रेणी में शामिल हैं।
इनमें से 40% उद्योग महिलाएं बिना किसी के सहयोग से खुद संचालित करती हैं, वहीं 18% पुरुष इस तरह के उद्योग चलाते हैं। लॉकडाउन के दौरान 80% महिलाओं को लघु उद्योगों के लिए बैंक से लोन नहीं मिला। वहीं दो तिहाई महिलाओं ने इन उद्योगों को जारी रखने के लिए अपनी बचत की हुई राशि का उपयोग किया।
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