कुआलालंपुर के बाहरी क्षेत्र में बने एक कमरे में स्टूडेंट्स फर्श पर दरी बिछाकर बैठे हुए पढ़ रहे हैं। लेकिन ये स्टूडेंट्स बच्चे नहीं बल्कि अप्रवासी महिलाएं हैं जिनमें से कुछ की उम्र 50 साल है। वे पहली बार मलय और इंग्लिश में पढ़ना और लिखना सीख रही हैं। इन्हें पढ़ाने की शुरुआत इसी साल सितंबर में दो लॉ स्टूडेंट्स ने की जो इन्हें शिक्षित कर सशक्त बनाने का प्रयास कर रही हैं।
यहां पढ़ना सीख रही 54 साल की एक महिला जालेहा अब्दुल ने बताया - ''पहले मुझे इंग्लिश के अल्फाबेट्स भी पढ़ना नहीं आते थे। लेकिन अब मैं इसे सीख रही हूं। मैंने पिछले महीने इसे सीखने में काफी मेहनत की। मैं चाहती हूं कि जब हम कहीं भी खरीदारी करने जाएं तो मैं पढ़-लिखकर अपनी बात दुकानदारों से अच्छी तरह कह सकूं''।
जालेहा की तरह मलेशिया की कई महिलाएं वहां बोली जाने वाली भाषा मलय में बात तो करती हैं, लेकिन वे ये नहीं जानती कि इसे किस तरह लिखा जाता है। 23 साल की अरिसा जेमिमा इकराम इस्माइल यहां इन महिलाओं को पढ़ाने वाली एक वालंटियर हैं जो अप्रवासी महिलाओं को पढ़ा-लिखा कर इनका जीवन स्तर सुधारना चाहती हैं। अरिसा और उसकी सहेली 25 वर्षीय देविना देवराजन कुआलालंपुर में रहने वाली कुछ महिलाओं से मिलीं। उन्हें ये देखकर आश्चर्य हुआ कि ये महिलाएं पढ़ना चाहती हैं जबकि इन अप्रवासी महिलाओं की प्राथमिकता में पढ़ना-लिखना कहीं शामिल नहीं होता।
इन दोनों लड़कियों ने महिलाओं को पढ़ाने के लिए कुछ टीचर्स से बात की और उन्हें इंस्टाग्राम के जरिये अपने काम से जोड़ा। इस तरह यहां 20 वालंटियर्स लगभग 50 परिवारों की अप्रवासी महिलाओं को मुफ्त शिक्षा दे रही हैं। अरिसा कहती हैं अप्रवासी महिलाओं के लिए इस तरह की चैरिटी बहुत जरूरी है।
इस तरह वे खुद तो पढ़ना-लिखना सीखेंगी ही, साथ ही अपने समुदाय के अन्य लोगों को भी शिक्षित कर सकेंगी। इनमें से कई ऐसी महिलाएं भी हैं जो अपने साथ बच्चों को भी यहां लेकर आती हैं। इन बच्चों को पढ़ाने का इंतजाम वालंटियर्स ने अलग कमरे में किया है।
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