मेरा जन्म 11 जून 1989 को अहमदाबाद में हुआ। बैडमिंटन मुझे बहुत पसंद थी। छह वर्ष की उम्र से ही मैंने बैडमिंटन खेलने की शुरुआत कर दी। पापा गिरीशचंद्र जोशी टेनिस प्लेयर और एक अच्छे लेखक हैं। वे मुंबई में भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र में वैज्ञानिक थे, इसलिए मेरी स्कूली शिक्षा मुंबई में उनके साथ रहते हुए पूरी हुई। हमारे पास केवल एक रैकेट था, पापा शटल फेंकते थे और मैं कोशिश करती थी कि सही हिट कर पाऊं। इसके कुछ वर्षों बाद बैडमिंटन कोचिंग क्लास ज्वाइन की और फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। स्कूली जीवन में मैंने खूब बैडमिंटन खेली और स्कूल, राज्यस्तर पर हुए टूर्नामेंट में कई इनाम जीते। स्कूल के बाद के.जे. सोमैया कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग से मैंने इलेक्ट्रिक इंजीनियरिंग में स्नातक की पढ़ाई पूरी की। चूंकि मेरी रुचि साइंस और कम्प्यूटर में है, इसलिए कम्प्यूटर की पढ़ाई भी की। पुणे की एक कंपनी में सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट का काम करने लगी। मैं बहुत खुशमिजाज हूं। निगेटिविटी तो जैसे जीवन में है ही नहीं। 2 दिसंबर, 2011 को हुए एक हादसे ने जैसे मेरा जीवन बदल दिया।
मैं टू व्हीलर पर सुबह 9:30 बजे ऑफिस के लिए निकली ही थी कि एक ट्रक ने मुझे अपनी चपेट में ले लिया। इसमें ट्रक चालक की गलती नहीं थी। दुर्घटना स्थल पर एक बड़ा सा पिलर था, जिस कारण ड्राइवर आगे देख नहीं पाया और मैं जल्दबाजी में ट्रक के सामने आ गई। मेरा बायां पैर ट्रक के पहिये के नीचे था। वहां मौजूद लोगों ने मुझे अस्पताल पहुंचाया, इसके बावजूद शाम 5:30 बजे मेरा ऑपरेशन शुरू हुआ। प्रॉपर इलाज मिलने में कई घंटे लगने के कारण पैर पूरी तरह खराब हो चुका था। मैंने डॉक्टर से पूछा कि इलाज करने में इतनी देरी क्यों हुई? उनके पास कोई जवाब नहीं था। इलाज के कुछ दिनों बाद पैर में इन्फेक्शन फैल गया। डॉक्टर बोले कि पैर काटना पड़ेगा, यह सुनकर आंखों के आगे अंधेरा छा गया। दो महीने अस्पताल में रहने के दौरान मुझे देखने परिचित अस्पताल आते थे तो मेरी हालत देखकर रो देते थे। मैं भी बहुत रोती थी। मैं अस्पताल के बेड पर पड़ी-पड़ी सोचने लगी कि क्या ऐसे ही जीवन बीतेगा या इस हादसे को चुनौती मानकर आगे बढ़ने का हौसला दिखाऊं? मैंने दूसरा विकल्प चुना। इसके बाद जब भी कोई मेरी हालत पर तरस खाता तो मैं विषय बदलकर उन लोगों को चुटकुले सुनाकर हंसाया करती थी। सोचती थी कि अब खेल पाऊंगी या नहीं?
अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद मैंने फिजियोथेरेपी ली और नकली टांग के सहारे जीवन यात्रा शुरू की। इसके बाद हैदराबाद में पुलेला गोपीचंद की अकादमी में रजिस्ट्रेशन कराया। बैडमिंटन की प्रैक्टिस शुरू कर रोजाना जिम जाना, डाइट फॉलो करना, मैच प्रैक्टिस करना मैंने रुटीन बनाया। ‘कॉर्पोरेट बैडमिंटन टूर्नामेंट’ जीतते हुए नेशनल लेवल तक पहुंची। कई पदक जीते। मैं जिस खेल में हूं, उसमें कुछ शॉट्स तथा सर्विस की तैयारी के लिए घंटों मेहनत करनी पड़ती है। 2012 में कंपनी लेवल पर बैडमिंटन चैंपियनशिप खेली तो लगा कि मेरे पास अभी काफी हुनर है और एक पैर के दम पर भी खेल सकती हूं। ऑफिस में सीईओ और अन्य सहयोगी मेरी प्रशंसा कर आत्मविश्वास बढ़ाते थे। जब आपके सहयोगी आत्मविश्वास बढ़ाएं तो समझो लक्ष्य आसानी से पूरा हो जाएगा। बैडमिंटन शौक था, लेकिन इसे कॅरियर के रूप में कभी नहीं देखा। मेरी प्राथमिकताएं भी अच्छी नौकरी और बड़ा पैकेज, बड़ा सा घर, महंगी कार और सभी भौतिक सुविधाएं थीं। दुर्घटना के बाद प्राथमिकताएं बदल गईं। मैंने पैर खो दिया था। कोई और होता तो व्हीलचेअर पर जिंदगी गुजारता, लेकिन मैंने अपने सपने, इरादे, खुद पर भरोसा कभी टूटने नहीं दिया और जीवन से हारने के बजाय आगे बढ़ी।
2015 में इंग्लैंड में आयोजित पैरा बैडमिंटन विश्व चैम्पियनशिप में हिस्सा लिया और मिश्रित युगल में विश्व स्तर पर पहला रजत पदक जीता। इसके बाद मेरे सपनों को उड़ान मिलने लगी। रास्ते खुद-ब-खुद खुल रहे थे। 2016 में सिंगल्स व डबल्स में दो ब्रांज मेडल जीते। 2017 में स्पेन में सिंगल्स का गोल्ड तथा डबल्स के ब्रांज मेडल के साथ हर वर्ष मेडल जीतती चली गई। अभी तक मैं 26 मेडल जीत चुकी हूं। इसमें 7 गोल्ड, 7 सिल्वर तथा 12 ब्रांज मेडल हैं। मुझे 3 दिसंबर को वर्ल्ड डिसेबिलिटी-डे पर नेशनल अवॉर्ड दिया गया है। यह अवॉर्ड ‘बेस्ट स्पोर्ट पर्सन विथ डिसेबिलिटी’ का है। अगस्त 2019 में महिलाओं की सिंगल एकल स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीतने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर बधाई दी। उन्होंने लिखा ‘गोल्ड सहित 12 मेडल जीतने पर 130 करोड़ भारतवासी बीडब्ल्यूएफ विश्व चैंपियनशिप जीतने वाली पैरा बैडमिंटन टीम के प्रदर्शन पर गर्व कर रहे हैं। जब आपकी तारीफ आपका राष्ट्र प्रमुख करे तो लगता है जैसे आपने कई गोल्ड जीत लिए हों। इसी के साथ मीडिया से जानकारी मिली कि मेरी गिनती दुनियाभर के शीर्ष 10 एसएल-3 श्रेणी के पैरा बैडमिंटन खिलाड़ियों में हो रही है। सच कहूं तो जब मन खुश होता है, तभी हमें सही मायने में खुशी मिलती है। अभी मेरा लक्ष्य 2020 में होने वाले टोक्यो पैरा ओलंपिक में सिलेक्ट होना है। अपने इस गोल और एम्बिशन को पूरा करने के लिए नौकरी के साथ कड़ी प्रैक्टिस कर रही हूं। मुझे विश्वास है, यह गोल भी मैं अचीव कर लूंगी।
(जैसा उन्होंने मुंबई दैनिक भास्कर के विनोद यादव को बताया।)
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