फातिमा असला देश और दुनिया की उन हजारों लड़कियों का प्रतिनिधित्व करती हैं जो शारीरिक विषमताओं के बाद भी जिंदगी की परेशानियों से जूझते हुए हर हाल में आगे बढ़ रही हैं। इस लड़की के चेहरे की मुस्कान देखकर इसकी तकलीफों का अंदाजा लगाना भी मुश्किल है। असला की किताब, 'नीलवु पोल चिरिकुन्ना पेनकुट्टी' (एक धुंधली मुस्कान वाली लड़की) जल्दी ही रिलीज होने वाली है।
फातिमा के माता-पिता को इस बच्ची की हड्डियों से जुड़ी बीमारी 'ऑस्टियोजेनेसिस इम्परफेक्टा' के बारे में डॉक्टरों से तब बताया जब वह महज तीन दिन की थीं। जैसे-जैसे वह बड़ी हुई, उन्हें व्हील चेयर की जरूरत पड़ने लगी। वह पढ़-लिखकर डॉक्टर बनना चाहती थीं ताकि अपनी ही तरह अन्य दिव्यांगों की मदद कर सकें लेकिन मेडिकल बोर्ड ने उन्हें मेडिकल की पढ़ाई के लिए अनफिट करार दिया। फिलहाल वे बीएचएमएस में फाइनल ईयर की स्टूडेंट हैं और अपने सारे सपनों को पूरा करने की जद्दोजहद में लगी हुई हैं।
फातिमा को आगे बढ़ाने में उनके माता-पिता और भाई ने बहुत मदद की। उनकी मां अमीना रोज अपनी बेटी को कोजिकोड, पुनुर के सरकारी स्कुल में लेकर जाती थीं। फातिमा ने 10 वी कक्षा में 90% अंक प्राप्त किए। 11 वी कक्षा में जब वह साइंस विषय लेने लगीं तो कई लोगों ने उन्हें इस विषय को न लेने की सलाह दी। लोगों ने यह भी कहा कि साइंस में प्रैक्टिकल के दौरान उन्हें व्हील चेयर पर होने की वजह से दिक्कत होगी। लेकिन फातिमा ने तय कर लिया था कि उसे हर हाल में साइंस ही लेना और आगे पढ़ाई कर डॉक्टर बनना है।
फातिमा के लिए अपनी बीमारी के चलते पढ़ाई करना आसान नहीं था। 12 वी कक्षा के दौरान भी वे कई बार बीमार हुई। फिर भी उन्हें 85% अंक मिले। फातिमा के इलाज और पढ़ाई में कांथापुरम के ए पी अबूबकर मूजलियार और मरकज ने मदद की। असला ने दो बार मेडिकल इंट्रेंस एग्जाम दी और शारीरिक विषमताओं के चलते दो बार उन्हें मेडिकल बोर्ड का सामना करना पड़ा।
उसके बाद फातिमा का एक ऑपरेशन और हुआ जिसकी वजह से व्हील चेयर पर रहते हुए उनकी मुश्किलें कुछ कम हुई हैं। फिलहाल वे कोट्टायम के एनएसएस होम्यो मेडिकल कॉलेज से बीएचएमएस कर रही हैं।
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