टोक्यो.जापान में अब माता-पिता बच्चों को किसी भी तरह की सजा नहीं दे सकेंगे, भले ही वह उन्हें अनुशासित करने के लिए क्यों न हो। जापान की कैबिनेट (इसमें प्रधानमंत्री समेत कई वरिष्ठ मंत्री शामिल हैं) के प्रस्ताव पर देश के स्वास्थ्य मंत्रालय ने दिशा-निर्देश का मसौदा जारी किया है। इस पर इसी हफ्ते चर्चा की जाएगी। चर्चा के बाद इसे अंतिम रूप दिया जाएगा।
माता-पिता को बच्चों पर हाथ उठाने से रोकना ही संशोधित बाल उत्पीड़न अधिनियम का उद्देश्य है। बच्चों के साथ उत्पीड़न की बढ़ती घटनाओं के बाद कैबिनेट ने इसमें बदलाव की पेशकश की थी।
सजा देने के बहाने नहीं चलेंगे
नए मसौदे के मुताबिक, किसी भी तरह की सजा जिससे शरीर को तकलीफ पहुंचती हो, पूरी तरह प्रतिबंधित रहेगी। चाहे वह सजा कितनी भी कमजोर हो, नहीं दी जा सकेगी। इसमें कहा गया है कि कई बार माता-पिता तर्क देते हैं कि बच्चों को कई बार चेतावनी दी, पर वे सुनते ही नहीं, इसलिए गाल पर थप्पी जड़ दी, उसने दोस्तों के साथ पिटाई की, इसलिए सजा देनी पड़ी, बच्चे किसी और का सामान उठा लाए थे, इसलिए भूखे रहने की सजा दी। पर ये तर्क अब सजा का आधार नहीं बन सकेंगे।
बच्चों को भावनात्मक पीड़ा से बचाने की कोशिश
नए मसौदे में बच्चों को भावनात्मक पीड़ा से बचाने की कोशिश भी की गई है। इसमें खासतौर पर उल्लेख किया गया है कि भले ही कितने परेशान हों, पर माता-पिता बच्चों से ऐसा नहीं कह सकते,'अच्छा होता कि तुम पैदा ही नहीं हुए होते'। इस तरह की बातें कहना मौखिक दुर्व्यवहार माना जाएगा। इसे बच्चों के अधिकारों का उल्लंघन माना जाएगा। इसके अलावा पढ़ाई या एक्टिविटीज को लेकर बच्चों की अन्य भाई-बहनों से या उनके दोस्तों से तुलना करके उन्हें नीचा दिखाना या उन्हें अनदेखा करना भी गैरकानूनी होगा। फिर भी माता-पिता ऐसा कुछ करते हैं तो उन्हें क्या सजा दी जाए, इस पर अभी विचार होना है। भारी-भरकम जुर्माना भी तय किया जा सकता है। नया कानून अगले साल मार्च से लागू होगा।
मंत्रालय की सफाई
हम माता-पिता के अधिकार खत्म नहीं कर रहे इस मसौदे पर आपत्तियां भी आनी शुरू हो गई हैं, इस पर स्वास्थ्य मंत्रालय ने तर्क दिया है कि हम माता-पिता के अधिकार खत्म नहीं कर रहे। हम सिर्फ इतना चाहते हैं कि बच्चों के मानस पर बुरा प्रभाव ना पड़े, कोशिश इतनी है कि बच्चों की भावनाएं समझें और समस्याओं को बातचीत के जरिए हल करें।
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