चेन्नई के यंग वालंटियर्स लॉकडाउन में बिना थके सैकड़ों न्यूबोर्न बेबीज को ब्रेस्ट मिल्क उपलब्ध करा रहे हैं। ये वालंटियर चेन्नई के गवर्नमेंट इंस्टीट्यूट ऑफ चाइल्ड हेल्थ एंड चिल्ड्रंस हॉस्पिटल के लिए काम कर रहे हैं। उन्होंने पिछले चार महीने के दौरान लगभग 100 लीटर ब्रेस्ट मिल्क इस अस्पताल में भर्ती शिशुओं तक पहुंचाया है।
थंगादिवरन एक ब्रेस्टमिल्क डोनेशन ग्रुप है। इसके लिए तीन लेक्टिंग मदर्स काम करती हैं। इनके नाम बेबी श्री करण, कौशल्या जगदीश और राम्या संकर नारायणन हैं। इनके जरिये अस्पताल तक मां का दूध पहुंचाया जाता है। इस ब्रेस्ट मिल्क बैंक का उद्घाटन तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता ने किया था।
लॉकडाउन के दौरान जब लोगों के आने-जाने पर प्रतिबंध था और ट्रासंपोर्ट के साधन मिलना भी मुश्किल था। ऐसे में भी इस अस्पताल के ब्रेस्ट मिल्क बैंक में दूध की कमी नहीं हुई। इस काम के लिए अस्पताल का स्टाफ इन यूथ विंग्स की तारीफ करते नहीं थकता।
इन वालंटियर्स ने लोगों को हर तरह से मदद की। इंस्टीट्यूट ऑफ चाइल्ड हेल्थ के नियोनेटोलॉजी डिपोर्टमेंट की नर्सिंग को ऑर्डिनेटर डी. अकीला देवी के अनुसार इन वालंटियर्स की वजह से अस्पताल के बच्चों को समय पर मां का दूध मिल सका।
अकीला के अनुसार इस हॉस्पिटल की नियोनेटल इंटेंसिव केयर यूनिट में लगभग 52-60 बच्चे रहते हैं। इन बच्चों की मां दूसरे अस्पताल में भर्ती या डिलिवरी के बाद घर में हैं।
इनके लिए लॉकडाउन के दौरान अपने बच्चे के लिए मां के दूध का इंतजाम करना भी मुश्किल है। लगभग 10 बच्चे ऐसे हैं जिनके लिए मां का दूध उपलब्ध नहीं है। इन बच्चों को दिन में कम से कम 10 या 12 बार इस दूध की जरूरत होती है। एक बच्चे को दिन भर में 10 मिली दूध पिलाया जाता है।
यूथ वालंटियर्स लेक्टिंग मदर के घर से ब्रेस्ट मिल्क लाकर इन शिशुओं तक पहुंचाते हैं। श्री करन के अनुसार मेरी टीम के सदस्यों ने लॉकडाउन के दौरान 98 लीटर ब्रेस्ट मिल्क का प्रबंध किया है। इनमें से कई शिशु ऐसे भी हैं जिनकी मां ज्यादा बीमार है।
वे नहीं चाहती कि अपने नौनिहाल के पास आएं क्योंकि उन्हें ये डर है कि कहीं उनका इंफेक्शन बच्चे को न हो जाए। ऐसे समय मासूम बच्चों के लिए ये वालंटियर्स किसी फरिश्ते से कम नहीं हैं। वे चाहते हैं कि इस बारे में लोग जागरूक हों और मदद के लिए आगे आएं।
एक वालंटियर अशोक कुमार के अनुसार ''लॉकडाउन में चेन्नई की सड़कों पर जगह-जगह बैरिकेड्स लगे थे। ऐसे में ब्रेस्ट मिल्क लेकर अस्पताल तक पहुंचना बहुत मुश्किल था। हम लंबे रास्ते से होते हुए अस्पताल पहुंचते थे। ऐसे समय जगह-जगह तैनात पुलिस पूछताछ करती। तब मैंने हॉस्पिटल से परमिशन लेटर लेकर अपना काम जारी रखा''।
एक वालंटियर के अरुण राज कहते हैं ''मैं जब भी दूध देने अस्पताल तक जाता तो मैं हमेशा मेरी से झूठ बोलता कि मैं कहीं ओर जा रहा हूं। अगर मां को यह पता चलता कि मैं अस्पताल से आ रहा हूं तो वह मुझे इंफेक्शन के डर से घर में नहीं घुसने देती। उन्हें अभी भी ये नहीं पता है कि मैं रोज अस्पताल जाता हूं। उन्हें इस बार का डर लगता है कि कहीं अस्पताल जाते हुए मुझे इस महामारी का असर न हो जाए''।
एक अन्य वालंटियर आदियन गणेशन के अनुसार ''मेरी मां भी इस बात को लेकर चिंतित रहती है कि रोज अस्पताल जाने से मुझे इंफेक्शन न घेर ले। लेकिन मैं मां को समझाता हूं कि अगर सभी ऐसा सोचने लगेंगे तो मासूम बच्चों को मिलने वाला दूध उन तक कैसे पहुंच पाएगा''।
हाल ही में संपन्न वर्ल्ड ब्रेस्टफीडिंग वीक के दौरान इन वालंटियर्स को अस्पताल के स्टाफ ने अवार्ड देकर सम्मानित किया है।
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