16 साल की उम्र में यूनाइटेड नेशंस को संबोधित करने का अवसर ऑस्ट्रेलिया की एक स्टूडेंट और सोशल एक्टिविस्ट मायेला डेह को मिला है। मायेला ने 23 सितंबर की रात को यूनाइटेड नेशंस को दिए अपने संबोधन में कोरोना काल के दौरान महिलाओं की बदतर हालत को बयां किया। मायेला कहती हैं जब मैंने अपने दोस्तों को इस संबोधन के बारे में बताया तो उनमें से ऐसे कई दोस्त थे जिन्हें मेरी इस उपलब्धि पर यकीन नहीं हुआ।
संयुक्त राष्ट्र महासभा के संबोधन में दुनिया भर के कई देशों की युवा लड़कियों और महिलाओं के साथ मायेला को भी यह अवसर प्राप्त हुआ। इस युवा लड़की ने एक सर्वे से प्राप्त नतीजों को अपने संबोधन के दौरान बताया।
प्लेन इंटरनेशनल के सर्वे में ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, इक्वाडोर, यूथोपिया, घाना, इंडिया, मोजांबिक, निकारागुआ, स्पेन, फ्रांस और जांबिया की 7105 महिलाओं को शामिल किया गया। इन महिलाओं में कोरोना लॉकडाउन के दौरान मध्यम से लेकर उच्च स्तर की चिंता और तनाव देखा गया।
मायेला कहती हैं ''मुझे मालूम है कि महामारी के दौरान हालातों को देखते हुए सरकार जरूरी कदम उठा रही है। लोगों की आर्थिक रूप से मदद भी की जा रही है। लेकिन यही वो वक्त है जब सदियों से खामोश रही महिलाओं को अपने हक के लिए आवाज उठाना चाहिए''।
मायेला ने अपने संबोधन में आस्ट्रेलिया की उन लड़कियों के बारे में भी बात की जो महामारी से पहले अपनी आर्थिक स्थित सुधारने के लिए छोटे-मोटे काम करती थीं। लेकिन कोरोना के बाद इनके पास ये काम भी करने के लिए नहीं हैं। इस युवा लड़की ने एक सोशल एक्टिविस्ट के तौर पर स्कूल के दिनों से ही काम करना शुरू कर दिया था। वे अपने प्रयास से हर हाल में महिलाओं की तरक्की चाहती हैं।
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