Thursday, 20 August 2020

औरतों के लिए संकट बना कोरोनाकाल, दुनियाभर में 19 लाख महिलाओं को नहीं मिली गर्भनिरोधक दवाएं; सिर्फ भारत में अनचाही प्रेग्नेंसी के 13 लाख मामले मिले

लॉकडाउन का एक बड़ा असर दुनियाभर की महिलाओं पर भी पड़ा है। महामारी के दौरान 19 लाख महिलाओं को गर्भनिरोधक दवाएं नहीं मिलीं। ऐसी महिलाओं की तादाद भी अधिक रही जिनके लिए सुरक्षित अबॉर्शन कराना भी मुश्किल रहा।

दुनियाभर को अबॉर्शन और काॅन्ट्रासेप्टिव सर्विस उपलब्ध कराने वाली मैरी स्टॉप्स इंटरनेशनल की 114 देशों में हुई रिसर्च कहती है, इस साल के शुरुआती कुछ महीनों में अनवांटेड प्रेग्नेंसी के 9 लाख मामले सामने आए। इनमें से 15 लाख मामले असुरक्षित गर्भपात के थे। वहीं, 3,100 मामले प्रेग्नेंसी से जुड़ी मौत के थे।

महामारी का महिलाओं की प्रेग्नेंसी पर कितना असर पड़ा, 5 बड़ी बातों से समझें

#1) 13 लाख महिलाएं अनचाही प्रेग्नेंसी से जूझीं

वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन की रिपोर्ट के अनुसार, हर साल 5 से 12 % महिलाएं असुरक्षित गर्भपात की वजह से अपनी जान गवां देती हैं। मैरी स्टॉप्स इंटरनेशनल ने अपनी रिसर्च में बताया कि भारत में लॉकडाउन के दौरान 13 लाख महिलाएं न चाहते हुए भी मां बनने को मजबूर हुईं। इनमें से 9 लाख 20 हजार महिलाओं को सुरक्षित गर्भपात की सुविधा मिली।

#2) महज 37 देशों में ही सुरक्षित अबॉर्शन की सुविधा

कोरोनाकाल में महिलाओं को गर्भनिरोधक दवाओं का लंबे समय तक इस्तेमाल न करने की चेतावनी दी। वहीं, अबॉर्शन को महिलाओं की सेहत के लिए नुकसानदायक बताया। इस एनजीओ के अनुसार, स्वास्थ्यकर्मियों ने लॉकडाउन के दौरान महिलाओं तक गर्भनिरोधक दवाएं पहुंचाई गईं। महज 37 देशों में ही महिलाओं को सुरक्षित तरीके से अबॉर्शन की सुविधा मिली।

#3) महामारी से पहले 81% महिलाओं को अबॉर्शन की सुविधा, अब आंकड़ा घटकर 21 % हुआ

मैरी स्टॉप्स ने ब्रिटेन, साउथ अफ्रीका और भारत सहित हर देश में रहने वाली 16 से 50 साल की 1000 महिलाओं पर सर्वे किया। ब्रिटेन की महिलाओं के अनुसार, कोरोनाकाल से पहले जिन महिलाओं को 81% अबॉर्शन की सुविधा मिलती थी, वहीं, इस महामारी में 21% ही मिली। मैरी स्टॉप्स इंटरनेशनल के मुताबिक, ''महामारी के दौरान भी यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि अबॉर्शन और कंट्रासेप्शन जैसी जरूरी सुविधा हर हाल में महिलाओं को मिले''।

भारत में रहने वाली वे महिलाएं जिन्हें अबॉर्शन की जरूरत थी, उनका कहना है महामारी के दौरान हमारे क्षेत्र में यह सुविधा बंद थी। इन 10 में से एक महिला के अनुसार उन्हें अबॉर्शन कराने के लिए पांच हफ्ते तक इंतजार करना पड़ा।

#4) इस साल सबसे ज्यादा बच्चे भारत में पैदा होंगे

यूनिसेफ का कहना है कि इस साल 11 मार्च से 16 दिसम्बर के बीच दुनियाभर में 11 करोड़ 60 लाख बच्चे पैदा होंगे। दूसरे देशों के मुकाबले इस साल सबसे ज्यादा 2.1 करोड़ बच्चे भारत में पैदा होंगे। चीन दूसरे पायदान पर होगा। यूनिसेफ ने कहा कि कोरोना संक्रमण की वजह से मां और बच्चे को जिंदगी की कठोर सच्चाई का सामना करना पड़ सकता है।

यूनीसेफ के मुताबिक, नाइजीरिया में 60.4 लाख, पाकिस्तान में 50 लाख और इंडोनेशिया में 40 लाख बच्चे पैदा होंगे। अमेरिका बच्चों के जन्म की अनुमानित संख्या के मामले में छठे स्थान पर हो सकता है। यहां इस दौरान 30 लाख से ज्यादा बच्चों के पैदा होने का अनुमान है।

#5) दुनियाभर में 4.7 करोड़ से ज्यादा अनवॉन्टेड प्रेग्नेंसी

कोरोनावायरस और लॉकडाउन के चलते कई महिलाएं अनवॉन्टेड प्रेग्नेंसी की शिकार हो गईं। यूनाइटेड नेशन्स पॉपुलेशन फंड (यूएनएफपीए) की रिपोर्ट के मुताबिक दुनियाभर में 4.7 करोड़ से अधिक महिलाएं लॉकडाउन के कारण अनवॉन्टेड प्रेग्नेंसी की शिकार हुई हैं।

फाउंडेशन ऑफ रिप्रोडक्टिव हेल्थ सर्विसेज (एफआरएचएस) की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में करीब 23 लाख महिलाओं को अनचाहा गर्भधारण करना पड़ा है। इसके पीछे मुख्य वजह लॉकडाउन के दौरान महिलाओं को बर्थ कंट्रोल और कॉन्ट्रासेप्टिव पिल्स की दिक्कतों का सामना करना पड़ा है। एक अनुमान के मुताबिक, करीब 2 करोड़ कपल को इन मुश्किलों का सामना करना पड़ा है।

कोरोनाकाल में मां और नवजात के लिए 4 चुनौती

मां के लिए : दवा, उपकरण और हेल्थ वर्करों की कमी से जूझना होगा

यूनिसेफ की एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर हेनरिटा फोर ने कहा कि नई मांओं और नवजातों को जिंदगी की कठोर सच्चाई का सामना करना पड़ेगा। क्योंकि, कोविड-19 की रोकथाम के लिए दुनियाभर में कर्फ्यू और लॉकडाउन जैसे हालात हैं। ऐसे में जरूरी दवाओं और उपकरणों का अभाव, एएनएम और हेल्थ वर्कर्स की कमी से गर्भवती महिलाओं को जूझना पड़ेगा। संक्रमण के डर की वजह से गर्भवती महिलाएं खुद भी हेल्थ सेंटर्स पर जाने से कतराएं

नवजात के लिए : शिशु मृत्यु दर में इजाफ हो सकता है

यूनिसेफ की ग्लोबल रिपोर्ट में कहा गया है कि कोविड-19 को रोकने के लिए किए गए लॉकडाउन जैसे उपायों की वजह से जीवनरक्षक स्वास्थ्य सेवाओं पर असर पड़ सकता है। इससे नवजात और मां दोनों की जिंदगी खतरे में पड़ सकती है। विकासशील देशों में यह खतरा ज्यादा है क्योंकि, इन देशों में कोरोना महामारी आने से पहले ही शिशु मृत्यु दर ज्यादा है। ऐसे में कोविड-19 की वजह से इसमें इजाफा हो सकता है।

औसत गर्भावस्था की अवधि के आधार पर आकलन

यूनिसेफ की समीक्षा का आधार संयुक्त राष्ट्र की वर्ल्ड पॉपुलेशन डिवीजन 2019 की रिपोर्ट है। एक औसत गर्भावस्था आमतौर पर पूरे 9 महीने या 40 सप्ताह तक रहती है। ऐसे में बच्चों के पैदा होने का आकलन करने के लिए संस्था ने इसे ही पैमाना बनाया।

हर साल 28 लाख गर्भवती महिलाओं और नवजातों की मौत होती है

यूनिसेफ ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि कोविड-19 महामारी से पहले भी हर साल दुनियाभर में करीब 28 लाख गर्भवती महिलाओं और नवजातों की मौत होती आई है। हर सेकंड 11 मौतें। ऐसे में संस्था ने हेल्थ वर्कर्स की ट्रेनिंग और दवाइयों के उचित इंतजाम पर जोर देने के लिए कहा है ताकि गर्भावस्था के दौरान महिलाओं और उसके बाद नवजातों की जान बचाई जा सके।



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Corona period became a crisis for women, millions of women could not take contraceptive drugs, it was difficult to get abortion


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