18 नवंबर 2019, बॉन (जर्मनी): ईशा फाउण्डेशन के संस्थापक, सद्गुरु का उनकी बॉन यात्रा के दौरान यूनाइटेड नेशंस कनवेन्शन टू कॉम्बैट डेज़र्टिफिकेशन (यूएनसीसीडी) के मुख्यालय में भव्य स्वागत हुआ। हाल ही में ईशा फाउण्डेशन को यूएनसीसीडी से मान्यता मिलने के बाद यह सद्गुरु की पहली विजिट थी।
यूएनसीसीडी के कार्यकारी सचिव इब्राहीम थियाव ने सद्गुरु के साथ एक ट्विटर ईवेंट में भाग लिया जहां उन्होंने धरती के प्राकृतिक संसाधनों, मुख्यतया जमीन और पानी को बचाने के लिए मानवता की जिम्मेदारी पर विचारविमर्श किया। सद्गुरु ने इसी जुलाई में भारतीय प्रायद्वीप की मुख्य जीवनधाराओं में से एक कावेरी नदी को पुनर्जीवित करने के लिए ‘कावेरी कालिंग’ अभियान की शुरुआत की है। इस पर एक प्रश्न का उत्तर देते हुए सद्गुरु ने कहा कि कावेरी कालिंग मुख्यतया कावेरी घाटी में कर्ज से दबे किसानों के लिए एक आर्थिक समाधान है, और साथ ही यह पर्यावरण पर एक महत्वपूर्ण असर भी छोड़ेगा।
श्री थियाव ने इस बारे में बात की कि किस तरह लोगों के चुनाव जमीन की गुणवत्ता पर असर डालते हैं। श्री थियाव ने कहा, ‘हर कोई धरती पर एक सकारात्मक असर डाल सकता है।’ उन्होंने कहा कि भोजन और कपड़ों के हमारे चुनावों का धरती पर सीधा असर होता है। उन्होंने धरती की गुणवत्ता के गिरने के मुद्दे पर धार्मिक नेताओं को, जिनका उनके समुदायों में महत्वपूर्ण प्रभाव है, साथ आने को कहा क्योंकि सारे धर्म धरती को पवित्र मानते हैं।
कावेरी घाटी में 240 करोड़ पेड़ लगाने के महत्वाकांक्षी लक्ष्य के बारे में पूछे जाने पर सद्गुरु ने कहा, ‘भारत की जनसंख्या 130 करोड़ है। अगर हम सब अगले बारह सालों में बस दो पेड़ लगाने के लिए प्रतिबद्ध हो जाएं, तो ये पूरा हो जाएगा... हमारी समस्याएं और समाधान अलग नहीं हैं। अगर हम एक खास आयाम को उपयोग में ले आएं, तो वह समाधान बन जाता है। अगर हम उसे यूं ही छोड़ दें, तो वह समस्या बन जाता है। तो अभी, सबसे बड़ी समस्या आबादी की है। हम इसका उपयोग एक समाधान के लिए करते हैं या नहीं, बस यही सवाल है।’
यह कार्यक्रम ट्विटर पर लाइव प्रसारित किया गया। बातचीत के बाद, सद्गुरु ने यूएन के 100 से ज्यादा अधिकारियों को भी संबोधित किया।
हाल ही में, यूएनसीसीडी ने अपने ट्विटर हैंडल पर ईशा फाउण्डेशन के लिए एक स्वागत संदेश पोस्ट किया थाः हम ईशा फाउण्डेशन का एक नई संस्था के रूप में स्वागत करना चाहेंगे, जिसे यूएनसीसीडी सीओपी14 में यूएनसीसीडी ऑब्ज़रवर के रूप में मान्यता मिली है। ईशा फाउण्डेशन लोगों के विकास, मानवता की भावना को पुनर्जीवित करने, और पर्यावरण संरक्षण को सहारा देने की परियोजनाओं को लागू करता है।’
यूएनसीसीडी को विश्व स्तर पर मरुस्थलीकरण को रोकने के लिए 1994 में स्थापित किया गया था। इसका 197 सदस्यों का संगठन सूखे इलाकों में लोगों के रहने के हालातों को सुधारने, धरती और मिट्टी के उपजाऊपन को पुनःस्थापित करने, और सूखे के असर को कम करने के लिए साथ मिलकर काम करता है।
सद्गुरु - संस्थापक, ईशा फाउंडेशन
भारत में पचास सर्वाधिक प्रभावशाली गिने जाने वाले लोगों में, सद्गुरु एक योगी, दिव्यदर्शी, और युगदृष्टा हैं और न्यूयार्क टाइम्स ने उन्हें सबसे प्रचलित लेखक बताया है। 2017 में भारत सरकार ने सद्गुरु को उनके अनूठे और विशिष्ट कार्यों के लिए पद्मविभूषण पुरस्कार से सम्मानित किया है।
तीन दशक पहले सद्गुरु ने ईशा फाउण्डेशन, एक गैर-लाभकारी मानव-सेवा संस्था की स्थापना की थी, जिसकी मुख्य प्रतिबद्धता मानव कल्याण है। सद्गुरु ने मानव रूपांतरण के शक्तिशाली योग कार्यक्रमों और ग्रामीण भारत में कमजोर समुदायों के उत्थान के लिए विभिन्न परियोजनाओं की शुरुआत की है।
ईशा फाउण्डेशन
सद्गुरु द्वारा स्थापित ईशा फाउण्डेशन, स्वयंसेवियों द्वारा चलाई जा रही, अंतर्राष्ट्रीय गैर-लाभकारी, मानव सेवा संस्था है जो मानवीय क्षमता को विकसित करने के लिए समर्पित है। ईशा फाउण्डेशन 90 लाख स्वयंसेवियों द्वारा दुनियाभर में फैले 300 केंद्रों से संचालित हो रही है। फाउण्डेशन का मुख्यालय, दक्षिण भारत में वेल्लनगिरि पर्वतों की तलहटी में स्थित ईशा योग केंद्र, और यूएसए में मध्य टैनेसी में भव्य कम्बरलैंड पठार पर स्थित ईशा इंस्टिट्यूट ऑफ इनर साइंसेज़ है।
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