‘अगर आपके पास कहीं जाने की जगह है, तो वो घर है। स्नेह का कोई ठिकाना है, तो वो परिवार है। आपके पास यह दोनों हैं, तो समझिए आपसे खुशकिस्मत कोई नहीं।’ लॉकडाउन में इस कथन के मायने हर परिवार को समझ में आ रहे हैं। इस समय प्यार गहरा हुआ है, लेकिन क्या आप उसे पहचान पा रहे हैं?
परिवार के बीच गहरायाप्यार
लॉकडाउन और कोरोना वायरस के जोखिम ने परिवारों को मजबूत किया है। इस दौरान पति-पत्नी या परिवार के सदस्यों के बीच प्यार और गहरा हो गया है। पहली बार में शायद आपको इस बात पर यकीन न आए। लेकिन यह सच है। इस प्यार और लगाव को अलग तरह से समझना होगा। खासतौर पर दाम्पत्य जीवन की बात करें।
यह सही है कि लंबे समय तक साथ रहने के कारण छोटी-मोटी झड़प और बहसबाजी थोड़ी बढ़ गई है। बाहर घूमने-फिरने, होटल-रेस्त्रां जाने और फिल्म वगैरह देखने के दौरान जो अपनापन होता है, उसकी गुंजाइश भी अभी नहीं बन रही है। इसके बावजूद परिवार के भीतर प्यार कई तरीकों से जताया जा रहा है।
कहा तो नहीं
पत्नी ने घर के ढेर सारे काम निबटाए। वह थककर बैठी ही थी कि पति ने एक गिलास पानी दे दिया या पंखा चला दिया। यह प्यार ही तो है, जो ‘केयर’ के रूप में जताया जा रहा है! गैरी चैपमेन ने अपनी बेस्टसेलर बुक ‘फाइव लव लैंग्वेजेस’ में बताया है कि प्यार सिर्फ बोलकर ही नहीं, कई तरीकों से अभिव्यक्त होता है। तो लॉकडाउन में, घर के भीतर इस अनबोले प्यार को पहचानिए।
साथ है, तो शिकायत नहीं
इन दिनों रसोई में चीजों की संख्या और मात्रा दोनों सीमित है। इसके बाद भी स्वाद में कोई कमी नहीं है। महिलाएं सीमित संसाधनों में ही कई प्रयोग करके स्वाद और सेहत, दोनों का खयाल रख रही हैं। घरेलू कर्मचारियों की अनुपस्थिति में वे बिना शिकायत किए कई अन्य काम भी कर रही हैं। यह प्यार ही तो है, जो आगे बढ़कर जिम्मेदारी लेने के रूप में सामने आ रहा है। इत्मीनान भी है कि जीवनसाथी, परिवार घर के भीतर सुरक्षित है।
परिजन भी बदले हैं
पुरुषों ने कई घरेलू काम संभाल लिए हैं। वे रसोई में सहयोग कर रहे हैं और घर की साफ-सफाई में भी। वर्क फ्रॉम होम के साथ वे बच्चों को भी समय दे रहे हैं। हो सकता है खाने-पीने को लेकर नखरे दिखाना भी बंद या कम कर दिया हो। बुजुर्ग भी कामों में सहयोग कर रहे हैं। इन दिनों वे पूजा-पाठ और धार्मिक कार्यों में ज्यादा समय दे रहे होंगे। इसके पीछे उनकी भावना को समझिए। वे परिवार की सलामती के लिए प्रयास कर रहे हैं।
परिवार तो ईश्वर बनाते हैं
आज इस बात का विश्वास हो गया होगा। ‘कितना कुछ कर लो, लेकिन कोई तारीफ नहीं करता’- यह शिकायत भी दूर हो गई होगी या कम जरूर हुई होगी। परिजन एक-दूसरे के योगदान को पहचान रहे हैं, उसकी कद्र कर रहे हैं। गैरी चैपमेन कहते हैं कि कृतज्ञता और सराहना भी प्यार को जताने का तरीका होती है।
सब परवाह कर रहे हैं
फल-सब्जी और किराने का सामान खरीद लेना अमूमन महिलाओं के जिम्मे हुआ करता है, लेकिन इन दिनों घर के पुरुष यह जिम्मेदारी निभा रहे हैं। सोशल मीडिया पर जोक्स चल रहे हैं कि सब्जी खरीदने के लिए बाहर निकलना युद्ध पर जाने जैसा हो गया है। पति, भाई या बेटे ने बाहरी कामों का जिम्मा उठाया है, तो इसे परिवार के प्रति प्यार ही मानिए। खुद जोखिम लेना, ताकि किसी पर कोई आंच न आए- यह प्यार की निशानी है।
प्यार जताने में बच्चे भी पीछे नहीं हैं। वे अपनी उम्र के अनुसार स्वाभाविक रूप से जिद कर रहे होंगे, लेकिन पहले से कम। मम्मी-पापा को व्यस्त देखकर बच्चे भी समझदार हो रहे हैं। मम्मी-पापा की मदद करने की उनकी कोशिश प्यार ही तो है, जिस पर भला किसका दिल न खिल उठेगा! लॉकडाउन की इस नेमत को पहचानिए। आप खुशकिस्मत हैं कि आपको प्यार करने और आपकी परवाह करने वाले लोग आपके साथ हैं।
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