डिजिटल प्लेटफॉर्म की मदद से बिछड़े हुए लोगो को किस तरह मिलाया जा सकता है, अगर इस बात को समझना है तो पंछू बाई के बारे में जानिएजहां सोशल मीडिया की वजह से लंबे समय से बिछड़ा हुआ परिवार एक बार फिर मिल गया।
मराठी में ही बात करती थीं
लगभग 53 साल पहले पंछू बाई पर मध्यप्रदेश के दमोह गांव में मखुमक्खियों ने हमला कर दिया था। जब नूर खान नाम के एक शख्स ने न सिर्फ उनकी जान बचाई बल्कि उन्हें अपने घर में जगह भी दी।नूर खान के घर में रहते हुए भी पंछू बाई सिर्फ मराठी में ही बात करती थी।
नूर के परिवार का हिस्सा बन गईं
हालांकि कुछ ही समय में वे नूर के परिवार का हिस्सा बन गईं। परिवार के सब लोग उन्हें मौसी कर कर बुलाने लगे।2007 में नूर खान इस दुनिया में नहीं रहे। फिर उनके बेटे इसरार और पूरे परिवार ने पंछू बाई की अच्छी देखभाल की। वे उन्हें अपनी दादी मानते थे और उनकी अच्छी केयर भी करते थे।
कुछ शब्दों को गूगल किया
एक दिन मोबाइल पर इंटरनेट देखते हुए इसरार ने पंछू बाई से उनके गांव के बारे में पूछा। मराठी में जितना उन्होंने बताया उसे समझते हुए इसरार ने कुछ शब्दों को गूगलकिया। कुछ ही देर में इसरार ने पंछू बाई के पैतृक गांव पैथरोट को ढूंढ निकाला।
नागपुर अपना इलाज कराने गईं थी
वाट्सएप की मदद से उसने गांव वालों को पंछू बाई की फोटो भेजी। जल्दी ही गांव वालों ने उनके परिवार का पता लगायाऔर उन तक इसरार कासंदेश पहुंचाया। पंछू बाई नूर खान तक किस तरह पहुंची, इस बारे में बताते हुए वह कहती हैं कि उन्हें बस इतना याद है कि वे नागपुर अपना इलाज कराने गईं थी।
पंछू बाई को अपनापरिवार मिला
आखिर 40 साल बाद इसरार की कोशिश से पंछू बाई को अपनापरिवार मिल गया। पंछू बाई के गांव से जाने के पहले पूरे गांव नेरोते हुए उन्हें अलविदा कहा। गांव के सभी लोग उनके लिए दुआ कर रहे थे। ये देखकर पंछू बाई को अपनेसाथ लेने आए उनके पाेते को आश्चर्य हुआ कि अंजान लोगों नेउनकी दादी को इतना प्यार दिया।
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