कोरोना संक्रमण के विपदा वाले इन दिनों में सबसे ज्यादा जरूरी है- सुरक्षित बचे रहना। इसके लिए घरों में ही रहने, सफाई का ध्यान रखने के साथ भोजन भी महत्वपूर्ण है। देश का हर शहर बंद की स्थिति का सामना कर रहा है। घर में रहने को विवश कुछ लोगों को राशन व भोजन उपलब्ध नहीं है। प्रशासन, सरकार मदद कर रही है, लेकिन जब जीवन, सेहत और भूख दांव पर लगी हो तो हम सभी सक्षम लोगों की जिम्मेदारी बहुत बढ़ जाती है। यह लोगों की मदद का समय है। और इस पहल में हम अपने बच्चों को शामिल करते है तो वे एक अच्छे इंसान बनने की ओर अग्रसर होंगे।
अद्भुत होता है देने का सुख
पिछले दिनों मुझे एक स्कूल की प्रिंसिपल ने फोन कर बुलाया कि बच्चों ने एक डोनेशन ड्राइव कर कुछ वस्तुएं एकत्रित की हैं। मैने सारे कार्य छोड़ कर शहर से 25 कि.मी. दूर उस स्कूल में जाना इसलिए सुनिश्चित किया क्योंकि अभाव में भी उन बच्चों में देने का जो भाव पैदा हुआ था यह बहुत मायने रखता है। वह एक साधारण सा स्कूल है जिसमें सामान्य घर के बच्चे पढ़ते है। पिछली बार की डोनेशन ड्राइव में उन बच्चों ने एक बॉक्स में चिल्लर के रूप में कुछ रुपए एवं अपनी पुरानी काॅपियों के बचे हुए कोरे पन्ने मुझे बड़े उत्साह से भेंट किए थे। ये वस्तुएं देते वक़्त उनकी आंखों में तसल्ली की चमक थी।
उस वक्त मैने उन्हें देने के महत्व पर एक कहानी सुनाई, जिसमें बंधे हाथ वाले सामने रखे भोजन को नहीं खा पा रहे थे, सो दुख में थे, वहीं दूसरी जगह लोग एक-दूसरे को खिला रहे थे, सो सुखी थे।
बच्चे केवल अपेक्षाएं रखते हैं?
किसी भी बच्चे का सबसे महत्वपूर्ण दिन होता है उसका बर्थडे। वह बड़ा उत्साहित होता है कि पार्टी होगी, उसे बहुत सारे गिफ्ट मिलेंगे, केक मिलेगा। इससे हम उसे पाना सिखाते हैं और वह बच्चा रिसिविंग मोड यानी स्वीकार करने के रुख में आ जाता है। लेने वाले भाव में बच्चा अपेक्षा करना प्रारंभ कर देता है। जैसे एक साल की उम्र में हमने उसे खिलौने दिए, पांच साल की उम्र में वीडियो गेम तो 15-18 साल की उम्र में वह चाहत रखेगा कि मुझे महंगा स्मार्टफोन मिले। जब अपेक्षा पूरी नहीं होगी तो वह जिद करना शुरू कर देगा।
जब मनचाही वस्तु नहीं मिलती है तो अमूमन बच्चे गुस्सा करना शुरू कर देते हैं और अपसेट रहते हैं। इसी तरह चलता रहता है तो कुछ दिनों बाद बच्चा डिमान्डिंग मोड में आ जाता है और पसंदीदा ब्रांड वस्तुओं की चाहत जताने लगता है। ऐसे विचारों का मनोवैज्ञानिक प्रभाव यह होता है कि बच्चा अपनी ख़ुशी के लिए दूसरों पर निर्भर रहने लगता है और धीरे-धीरे उस पर स्वार्थ हावी होने लगता है। उसका पूरा ध्यान इस बात पर लगा रहता है कि मुझे क्या मिलेगा। इससे सबसे खतरनाक स्थिति यह बनती है कि बच्चे में तेरा-मेरा का विचार घर कर जाता है। वह केवल लेना चाहेगा और उसके लिए लड़ाई भी कर लेगा।
बच्चों में बदलाव ला सकता है
आप चाहते है आपका बच्चा ऐसा बिल्कुल ना करे और उसमें अच्छे संस्कार विकसित हों तो उसमें देने का भाव पैदा करें। उससे मदद के काम करवाएं अर्थात परोपकारी कार्यों में उसकी भागीदारी सुनिश्चित करें। लॉकडाउन दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है, पर इसकी वजह से सामाजिक मुश्किलें उभर आई हैं। इस वक़्त बहुत सारे लोग दैनिक ज़रूरत की वस्तुओं के लिए संघर्ष कर रहे हैं। उनके पास खाना नहीं है, राशन नहीं है, बेघर हो गए है। हजारों लोग भूखे-प्यासे मीलों पैदल रास्ते तय कर रहे है। इन सभी बातों से बच्चों को अवगत करवाइए।
सोशल डिस्टेंसिंग को निभाते हुए इन ज़रूरतमंद लोगों को आप स्वयं मदद करिए। अपने बच्चों के मार्फ़त करवाइए।
चंद कदम देने के सुख की तरफ
- इससे बच्चे समझेंगे कि उनके पास बहुत सारी ऐसी वस्तुएं हैं जो दूसरों के पास नहीं हैं। इससे बच्चें बांटना सीखेंगे और उनके अंदर आभार का भाव जाग्रत होगा।
- जब बच्चा किसी भूखे बच्चे को खाना देगा तो न सिर्फ़ उसे साझा करने की सीख मिलेगी, बल्कि दूसरे को अभाव में देखकर वह शिक़ायतें करना बंद कर देगा। उसमें ख़ुद को मिले सुकून-भरे जीवन के लिए आभार विकसित होगा।
- यदि आप किसी रिलीफ फंड में पैसे दे रहे हैं तो अपने बच्चों को इसमें शामिल करें। उन्हें जानकारी दें कि यह किस तरह और किस कार्य के लिए यह मदद की जा रही है।
- इस वक्त आप घर में ही हैं तो रोज़ कुछ खाना अतिरिक्त बनाइए और उन्हें बच्चों के हाथों वितरित करवाइए। हर शहर में बहुत से समूह, संस्थाएं, पुलिस व प्रशासन ऐसे प्रयास कर रहे हैं कि आपके घर बना ताजा भोजन आपसे लेकर ज़रूरतमंदों तक पहुंचा दें।
- अभी मास्क की बहुत जरूरत है। आप घर में बच्चों की मदद से सूती मास्क बनाकर वितरित कर सकते हैं। शहर में चलने वाले सामुदायिक रसोई घरों में भोजन के पैकिंग के लिए सामान की बहुत कमी है। बच्चों को सिखाने व मदद करने के इरादे से पुराने पेपर से लिफाफे बनाकर उन्हें इन रसोई घरों में भिजवा सकते हैं।
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