यूनानी लोगों ने संस्कृति का विरोध करने वाली शक्तियों को आधे मानव व आधे जानवर वाले प्राणियों के रूप में चित्रित किया। स्फिंक्स ऐसा ही प्राणी था। उसका शरीर शेर का था और सिर मनुष्य का। स्फिंक्स थीबीज(मिस्र) में आने और उसे छोड़ने वाले यात्रियों से पहेलियां पूछता था। जो उसका जवाब नहीं दे पाता, वह उसे मार डालता। केवल ईडिपस नामक नायक ने सही जवाब दिए और इसलिए स्फिंक्स को शहर छोड़ना पड़ा।
दक्षिण भारत की मंदिर परंपराओं में भी स्फिंक्स जैसी आकृतियों का जिक्र मिलता है। उन परंपराओं में स्फिंक्स ने पुरुष-मृग का रूप ले लिया। ये छवियां तमिलनाडु और आंध्रप्रदेश में शिव व विष्णु के कई मंदिरों की दीवारों पर पाई जाती हैं।
महाभारत के स्थानीय तमिल संस्करण में है विवरण
पुरुष-मृग की एक कहानी हमें महाभारत के स्थानीय तमिल संस्करण से मिलती है। इसके अनुसार एक बार युधिष्ठिर यज्ञ कर रहे थे। उस यज्ञ की सफलता के लिए एक पुरुष-मृग का होना जरूरी था। भीम को पुरुष-मृग की खोज में भेजा गया। उन्हें घने जंगल के बीच में एक पुरुष-मृग मिला। उस पुरुष-मृग ने भीम से कहा, ‘मैं तुम्हारे साथ तब आऊंगा जब तुम मुझे दौड़ में परास्त करोगे। तुम पहले दौड़ना शुरू करो, लेकिन हस्तिनापुर पहुंचने से पहले अगर मैं तुम्हें पकड़ता हूं, तो तुम मेरे गुलाम बन जाओगे और अगर मैं तुम्हें नहीं पकड़ पाता तो मैं तुम्हारे लिए कुछ भी करने के लिए तैयार हूं।’
भीम चुनौती स्वीकार कर दौड़ने लगे और पुरुष-मृग ने उनका पीछा किया। भीम ने एक पैर हस्तिनापुर शहर के अंदर रखा ही था कि पुरुष-मृग ने दूसरा पैर पकड़कर खुद को विजेता ठहरा दिया- ‘अब तुम मेरे गुलाम हो’, उन्होंने भीम से कहा। भीम नहीं माने। राजा होने के नाते युधिष्ठिर को फैसला करना पड़ा। युधिष्ठिर ने कहा, ‘मैं भीम को दो हिस्सों में काटूंगा। तुम वो हिस्सा लेना जो तुमने जीता है और मैं दूसरा हिस्सा लूंगा।’
‘क्या आप आपके भाई को मेरा गुलाम बनने देने के बजाय उसे मारने के लिए तैयार हो?’ पुरुष-मृग ने युधिष्ठिर से पूछा। युधिष्ठिर बोले, ‘सिर्फ आधा हिस्सा ही गुलाम है, इसलिए तुम्हें आधा गुलाम दे रहा हूं।’ पुरुष-मृग बोला, ‘तुमने मुझे खुश किया है, इसलिए मैं तुम्हारे भाई को रिहा कर तुम्हारे यज्ञ में उपस्थित रहूंगा।’ इस प्रकार यज्ञ सफल हुआ और पुरुष-मृग कई उपहारों के साथ जंगल लौट आया।
पुरुष-मृग की एक और कहानी
एक और कहानी में पुरुष-मृग का नाम व्याघ्रपद है, जिसके बाघ जैसे पैर हैं। यह कहानी शिव से जुड़ी है। कुछ लोग यह तर्क दे सकते हैं कि व्याघ्रपद सच्चा पुरुष-मृग नहीं है, क्योंकि उसने जन्म मनुष्य के रूप में लिया और बाद में बाघ के पैर मांगे। उसने शिव को मधुमक्खियों से अछूते फूल अर्पण करने की ठानी। इसलिए जंगलों-पहाड़ों में ऐसे शुद्ध फूलों की खोज की। इस खाेजबीन में उसके पैरों में नुकीले पत्थर और कांटे चुभ गए। उसे बहुत दर्द बर्दाश्त करना पड़ा। जब शिव ने प्रसन्न होकर उससे वर मांगने को कहा तो उसने बाघ के पैर मांगे ताकि उसे जंगल में चलने और पहाड़ पर चढ़ने में आसानी होती। शिव ने उसे वरदान प्रदान किया और घोषित किया कि उसकी छवि उनके मंदिरों में दिखाई जाएगी। इस तरह दक्षिण भारत के मंदिर के दीवारों पर हमें भारतीय स्फिंक्स की छवि दिखाई देती है।
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