झारखंड के रांची की कृतिका पांडे को एशिया रीजन के लिए कॉमनवेल्थ शॉर्ट स्टोरी प्राइज 2020 से सम्मानित किया गया है। 29 वर्षीय कृतिका को यह सम्मान एक ऑनलाइन सेरेमनी के तहत दिया गया।
इसके लिए मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने उन्हें ट्वीट करके बधाई दी। हमने कृतिका से बात की और उसके जीवन से जुड़ी उन बातों को जाना जिनका सामना हमारे समाज में कई लड़कियां हर रोज करती हैं :
मैं बचपन से ही हर उस चीज को जानना चाहती थी जिसके बारे में अक्सर घरों में मना कर दिया जाता है। जब मेरी मां पापा के बड़े भाई के आते ही घूंघट ओढ़ती तो मेरे मन में यह सवाल बार-बार आता किवे ऐसा क्यों करती हैं। मुझे घर के लोगों की हर बात पर हां ही क्यों बोलना पड़ता है? मैं उन्हें मना क्यों नहीं कर सकती?
मैं उस सफाईकर्मी को टच क्यों नहीं कर सकती तो हर हफ्ते घर के टॉयलेट की सफाई करने आता है। ऐसा शायद ही कोई दिन गया होगा जब मम्मी-पापा ने मुझे ये मत करो और ऐसा मत करो, न कहा हो।
मैं एक ऐसे संयुक्त परिवार से संबंध रखती हूं जहां लड़कों से बात करने और स्वीवलेस कपड़े पहनने पर भी मनाही है। इन सबके बीच बचपन से मेरा कोई सबसे अच्छा साथी बना तो वो साहित्य की किताबें ही थीं। हमारे घर में ऐसा माहौल बिल्कुल नहीं था कि क्रिकेट खेलें या घुमने-फिरने जाएं। ऐसे में मैंने किताबों से दोस्ती कर ली।
मैं बचपन से एक संयुक्त परिवार में रही। यहां रहते हुए मैंने इंजीनियिरंग की पढ़ाई की। पढ़ाई के दौरान ही परिवार की ओर से शादी का दबाव आने लगा था। 22 साल की उम्र में पापा चाहते थे कि मैं शादी करके अपना घर बसा लूं। लेकिन मैंने विदेश जाकर पढ़ने की जिद जारी रखी और यही किया भी।
वैसे भी हमारे देश में छोटे शहरों की लड़कियों से ये उम्मीद की जाती है कि वे इंजीनियर या डॉक्टर बनें। उसके बाद पैसा कमाएं और शादी कर लें।
मैंने इंजीनियरिंग करने के बाद जब घर में साहित्य में अपना कॅरिअर बनाने की बात की तो पापा ने यही समझाया कि साहित्य एक हॉबी हो सकता है। लेकिन इस क्षेत्र में कभी कॅरिअर नहीं बन सकता। पर मैंने कॉमनवेल्थ शॉर्ट स्टोरी प्राइज जीतकर पापा कीइस सोच को गलत साबित किया।
मैंने यूनिवर्सिटी ऑफ मैसाचुएट्स से फाइन आर्ट्स फॉर पोएट एंड राइटर्स में इसी साल ग्रेजुएशन किया है। अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद फिलहाल मैं लॉकडाउन खुलने का इंतजार कर रही हूं ताकि अपने देश वापिस आ सकूं।
यहां आकर मैं टीचिंग करना चाहती हूं। इसके अलावा इन दिनों मैं अपने नए नॉवेल को लिखने में व्यस्त हूं।
राइटिंग की बारीकियां मैंने प्रोफेसर ओशियन वॉन्ग से सीखीं। उन्होंने मुझे लैंग्वेज को पॉलिश करना सीखाया। मेरा यही मानना है कि किसी भी लेखक को यह नहीं पता होता कि उसे कैसे लिखना है क्योंकि वह हमेशा उसी तरह लिखता है जैसा वो चाहता है।
मुझे लगता है कि लिखना दुनिया का सबसे मुशिकल काम है जिसे मैं हमेशा करते रहना चाहूंगी।
कोरोना काल में राइटिंग के जरिए आप अपने तनाव को कम कर सकती हैं। ये एक ऐसा जरिया है जो आपको रिलैक्स करने में मदद करेगा।
जो पेशेंट कोरोना पॉजिटिव हैं और इस वक्त अस्पताल में भर्ती हैं, वे भी राइटिंग करके खुद को व्यस्त रख सकते हैं। आप अपने अनुभवों को इस कला के माध्यम से सारी दुनिया के सामने ला सकते हैं।
जहां तक बात छोटे शहरों की लड़कियों की है तो इन लड़कियों से कहना चाहती हूं कि आपकी कहानी सारी दुनिया जानना चाहती है। आप अपनी राइटिंग स्किल डेवलप करें और लिखने की शुरुआत करें।
संभव है मेरी तरह अन्य भारतीय लड़कियां भी कॉमनवेल्थ शॉर्ट स्टोरी प्राइज की अगली दावेदार बन जाएं।
साहित्य एक जरिया है जो घर और समाज के लोगों की सोच बदल सकता है। वो लड़कियां जो रूढ़ीवादी परिवारों में रहती हैं, घर में पढ़ने-लिखने का माहौल बनाकर अपने और परिवार के अन्य बच्चों के लिए नई राह तलाश सकती हैं।
मेरी नजर में रीडिंग एक खोज है। इस राह पर चलते हुए आप जीवन में रिस्क लेना और अपने सपने पूरे करना सीख सकती हैं।
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