जब परिवार में कमाने वाला एक ही व्यक्ति हो और वो भी अपनों की ज़िम्मेदारियों से मुंह मोड़ ले, तो परिजन कहां जाएं? इन हालातों मेंबच्चों की पढ़ाई, घर और अन्य सदस्यों की ज़रूरत के ख़र्चों की ज़िम्मेदारी घर की महिला पर ही आ जाती है, तो उसे दोहरी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
इस दौरान परिवार को आर्थिक संबल की आवश्यकता होती है। इसी आर्थिक सुरक्षा की व्यवस्था क़ानून ने गुज़ारा भत्ते के रूप में की है। कहने को यह पारिवारिक मामला है, लेकिन ये आपका हक़ भी है। क्या होता है गुज़ारा भत्ता, आइए विस्तार से जानते हैं।
क्या कहता है क़ानून
गुज़ारा भत्ता अधिनियम धारा 125 का उपयोग अधिकांशत: भारतीय विवाहित स्त्रियों द्वारा ही किया जाता है। अगर पति ने पत्नी को छोड़ दिया है या तलाक़ दे दिया है, तो महिलाएं धारा 125 के तहत हक़ मांग सकती हैं।
अगर घर पर रहने के बावजूद कमाने वाला व्यक्ति परिवार की ज़िम्मेदारी लेने से मना करता है, तब भी इस अधिनियम के तहत पत्नी, बच्चे, बूढ़े माता-पिता का जीवनभर भरण-पोषण करना कमाने वाले व्यक्ति या पति की ज़िम्मेदारी है।
गुज़ारा भत्ता बढ़ाया जा सकता है
परिवार को भरण-पोषण के तौर पर कितना भुगतान किया जाना ज़रूरी है, यह पति की कुल आय के आधार पर तय होता है। इसके लिए दावेदार को भरण-पोषण की जितनी रक़म चाहिए होगी, उसे अदालत के सामने रखना होता है। कमाने वाले की आय के सबूत के तौर पर वेतन का ब्योरा या आयकर रिटर्न आदि अदालत के समक्ष रखना होता है जिसके आधार पर फैसला होता है।
भरण-पोषण कितना मिल सकता है उसकी गणना चाइल्ड मेंटनेंस सर्विस से करवाई जा सकती है। अगर पति की आमदनी बढ़ती है और पत्नी ख़र्च बढ़ने के चलते भत्ता बढ़ाने की मांग करती है, तो इस स्थिति में गुज़ारा भत्ता बढ़ाया जा सकता है।
कौन अर्ज़ी लगा सकता है
परिवार का कोई भी सदस्य जो निर्भर हो वे खाना, कपड़े, पढ़ाई, इलाज, दवाई, किराया आदि का ख़र्च मांग सकते हैं। इस एक्ट के तहत पत्नी, अवयस्क संतान,पुत्र या पुत्री जो भरण-पोषण कर पाने में असमर्थ हैं, मांग कर सकते हैं। जब तक पुत्र वयस्क न हो जाए, तब तक उसके सारे ख़र्चे और भरण-पोषण की ज़िम्मेदारी पिता की होगी।
पुत्री की शादी तक उसकी ज़िम्मेदारी पिता की रहेगी। शारीरिक या मानसिक रूप से असमर्थ पुत्र या पुत्री की ज़िम्मेदारी भी पिता की है। अगर महिला की आय पति से कम है, तो वो अर्ज़ी लगा सकती है। यदि उसकी आय पति से अधिक है, तो वो इसकी हक़दार नहीं है। इसके अलावा माता-पिता, जो अपना भरण-पोषण कर पाने में असमर्थ हैं, वे भी मांग कर सकते हैं।
विधवा पुत्री के भरण-पोषण की ज़िम्मेदारी उसके ससुर की होगी। इसके लिए वह पिता से मांग नहीं कर सकती।
पुरुष भी मांग सकते हैं गुज़ारा भत्ता
हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 24 और सीआरपीसी की धारा 125 के तहत पति या पत्नी, दोनों में से किसी को भी भत्ता मिल सकता है। हालांकि पति को तभी गुज़ारा भत्ता मिलेगा, अगर वह शारीरिक रूप से अक्षम हो जिसके चलते वह कमा नहीं सकता हो।
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