पिछले कुछ महीनों के दौरान कोरोना से जंग जीतने में देश के डॉक्टर्स द्वारा दिए गए योगदान को हमेशा याद किया जाएगा। सालों से कई महिला डॉक्टर अपने काम से महिलाओं की दशा सुधार रही हैं। इनके खास योगदान के लिए भारत सरकार ने इन्हें कई पुरुस्कारों से सम्मानित भी किया है। डॉक्टर्स डे पर हम बात कर कर रहे हैं भारत की पांच डॉक्टर्स के बारे में जिन्होंने अपनी मेहनत से मेडिकल क्षेत्र में खास मुकाम हासिल किया।
डॉ. तरू जिंदल
पिता भाभा ऑटोमिक रिसर्च सेण्टर में वैज्ञानिक थे. 2013 में उन्होंने मुंबई में जाने माने लोकमान्य तिलक मेडिकल कॉलेज और सायन हॉस्पिटल से ऑब्सटेरिक्स और गाइनेयोकोलोजी में MD की डिग्री ली. MD के बाद इनके पास बड़े कॉर्पोरेट अस्पतालों में नौकरी के विकल्प थे लेकिन डॉ. तरु जिंदल ने “केयर इंडिया” और “डॉक्टर्स फॉर यू” के जरिये बिहार की स्वास्थ्य सेवाओं में सुधारे लाने के लिए मोतिहारी, चम्पारण आने का निर्णय लिया. 2017 में मोतिहारी जिला अस्पताल को भारत सरकार द्वारा ‘कायाकल्प अवार्ड‘ से सम्मानित किया गया। तरू ने बिहार के मसारी में भी हेल्थ केयर सेंटर की शुरूआत की लेकिन ब्रेन ट्यूमर होने की वजह से वे इस अस्पताल में अपना अधिक समय नहीं दे सकीं। उन्होंने एक किताब भी लिखी है। इसका नाम ए डॉक्टर्स एक्सपेरिमेंट इन बिहार है।
डॉ. लीला जोशी
डॉक्टर लीला जोशी ने अपने करियर के शुरूआती दिनों में असम में काम किया था। वहीं उनकी मुलाकात मदर टेरेसा से हुई। मदर टेरेसा से प्रभावित होकर रिटायरमेंट के बाद लीला ने मध्यप्रदेश की आदिवासी महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए काम किया। डॉक्टर लीला आदिवासी अंचलों में जाकर वहां की महिलाओं का निशुल्क इलाज करती हैं। डॉ. जोशी पिछले 22 सालों से इस कार्य में लगी हुईं है और 82 साल की उम्र में भी उनके जोश में कोई कमी नहीं आई है। स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ लीला जोशी ने आयरन की कमी से जूझती आदिवासी महिलाओं को सेहतमंद बनाने के लिए कैंप लगाए और मुफ्त इलाज किया। इसी उपलब्धियों के कारण भारत सरकार ने 82 वर्षीय लीला जोशी पद्मश्री देने की घोषणा की है।
डॉ.पद्मावती बंदोपाध्याय
डॉ.पद्मावती बंदोपाध्याय ने उस समय सेना की डगर पर पांव रखा, जब लड़कियों को घर से निकलने की भी आजादी नहीं थी। उन्होंने वायु सेना में तैनाती के दौरान भारत-पाक के बीच हुए 1971 के युद्ध और कारगिल युद्ध में भी हिस्सा लिया।उन्हें विशिष्ट सेवा पदक, अति विशिष्ट सेवा पदक और राष्ट्रपति से सम्मान पदक सहित देश दुनिया में करीब एक दर्जन से ज्यादा सम्मान मिल चुके हैं। हाल ही में लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड ने वर्ष 2014 के लिए वुमेन ऑफ द ईयर चुना है। पद्यमावती और उनके पति, दुनिया के पहले ऐसे दंपती हैं, जिन्हें विशिष्ट सेवा पदक एक ही दिन एक साथ मिला था।
डॉ. इंदिरा हिंदुजा
इससे पहले उन्होंने 6 अगस्त 1986 को केईएम अस्पताल में भारत के पहले टेस्ट ट्यूब बेबी का जन्म करा कर इतिहास रच दिया था। डॉ. इंदिरा हिंदुजा का परिवार मूल रूप से पाकिस्तान के शिकारपुर का रहने वाला था। उनका जन्म स्वतंत्रता प्राप्ति के पहले हुआ था और विभाजन के बाद वह परिवार के साथ भारत आ गयी थीं। उन्होंने अपनी शिक्षा-दीक्षा मुंबई में ही की। बॉम्बे यूनिवर्सिटी से स्त्री रोग विज्ञान में एमडी की डिग्री हासिल करने के बाद उन्होंने अपना पूरा जीवन लोगों की सेवा में लगा दिया। उन्होंने बॉम्बे युनिवर्सिटी से ह्युमन इन वर्टियो फर्टिलाइजेशन व एंब्रियो ट्रांसफर में पीएचडी की डिग्री हासिल की। 15 जुलाई, 1991 को उन्हें मुंबई के सार्वाधिक प्रतिष्ठित माने जाने वाले जसलोक अस्पताल में ऑनरेरी ऑब्सटेट्रीशियन एंड गायनेकोलॉजिस्ट बनाया गया और वे अब तक वहां से जुड़ी हैं। कुछ ही वर्षों में बेहद सम्मानित ब्रीच कैंडी अस्पताल और हिंदुजा अस्पताल में भी उन्हें मानद प्रसूति व स्त्रीरोग विशेषज्ञ का ओहदा मिल गया। वर्ष 2011 में उन्हें भारत सरकार द्वार दिये जाने वाले तीसरे सबसे बड़े पद्म अवॉर्ड पद्मश्री से सम्मानित किया गया है। इसके अलावा उन्हें वर्ष 2000 में धनवंतरी अवॉर्ड, इंटरनैशनल वूमेन्स डे अवॉर्ड , वर्ष 1999 में लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड, वर्ष 1987 में आउटस्टैंडिंग लेडी ऑफ महाराष्ट्र स्टेट जेसी अवॉर्ड और यंग इंडियन अवॉर्ड भी मिल चुके हैं।
डॉ. शांति रॉय
बिहार के सीवन गांव तक चिकित्सा सेवाएं पहुंचाने में डॉ. शांति रॉय का खास योगदान हैं। गायनेकोलॉजिस्ट और ऑब्सटट्रिशियन शांति को पद्मश्री सम्मान प्राप्त है। उन्होंने महिलाओं को दी जाने वाली मेडिकल सेवाओं को विकसित किया। रिटायर होने के बाद वे पटना मेडिकल कॉलेज में गायनेकोलॉजी विभाग की हेड ऑफ द डिपार्टमेंट हैं। काफी व्यस्त होने के बाद वे आज भी महिलाओं को अपनी सेहत के प्रति जागरूक करती हैं। डॉ. शांति रॉय कहती हैं कि भारत की महिलाएं पति और बच्चों की देखभाल में दिन रात लगी रहती हैं। वे अपने परिवार के लिए रोज अच्छे से अच्छा खाना बनाती हैं। लेकिन जब उनके स्वास्थ्य की बात आती है तो खुद की देखभाल करने में वे सबसे पीछे हैं।
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