अक्सर घर के बड़े या बच्चे जब चुप होकर बैठना चाहते हैं, तो उनके मौन के नख दूसरों को चुभते मालूम होते हैं। लेकिन लॉकडाउन के तनाव और अनिश्चितता भरे दौर में इस मौन को राहत का स्रोत मान स्वीकार करें।
फिलहाल हमारा रुटीन, लाइफ स्टाइल, सामाजिक मेलमिलाप, काम करने के हालात, तमाम चीजें बदल गई हैं। राहत की बात है कि परिजन साथ हैं। लॉकडाउन में उनके साथ क्वालिटी टाइम बिताने का एक अच्छा अवसर तो है, लेकिन हरदम साथ रहने से बहस होने के आसार भी बढ़ जाते हैं। ऐसे में पर्सनल स्पेस मेंटेन करने की जरूरत पहले से कहीं ज्यादा है। इसकी जरूरत बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक, हर व्यक्ति को होती है।
सुकून की जगह
पर्सनल स्पेस को एक ऐसी जगह के रूप में देखा जा सकता है, जो सुकून और स्वायत्तता यानी ऑटोनमी का अहसास देती है। ये वो जगह है जहां आप ‘आप’ ही होते हैं। आप पर किसी की अपेक्षाओं या मांग पूरा करने का दबाव नहीं होता।
संतुलन का ध्यान रहे
पर्सनल स्पेस में कुछ वक्त बिताना तनाव और कामकाज की थकान मिटाकर राहत से भर देता है। हालांकि क्वालिटी टाइम बिताने और पर्सनल स्पेस में रहने के बीच संतुलन बनाना महत्वपूर्ण है।
- पहले ही बता दें : खुद के लिए एक अलग समय रखें। चाहें तो परिजनों को बता दें कि मुझे आधे/एक घंटे के लिए डिस्टर्ब न करें। लेकिन जरूरत पड़ने पर बात करने या उठकर काम करने के लिए भी तैयार रहें।
- पसंदीदा एक्टिविटी करें : इस दौरान ऐसा कुछ करें, जो आपको सुकून दे। हॉबी को समय दे सकते हैं, कोई नई स्किल सीख सकते हैं। कुछ नया करने की कोशिश भी करें, जो संतुष्टि दे।
- समझाइश न दें : परिवार के हर सदस्य के पास अपना ‘मी’ टाइम बिताने का एक अनूठा तरीका हो सकता है। किसी को उसकी पसंद का काम करते या आराम से बैठे देखें, तो डिस्टर्ब न करें।
- जजमेंटल न हों : दूसरों के पर्सनल स्पेस और तनाव भगाने वाली गतिविधि को लेकर जजमेंटल न बनें। ‘टीवी देखना अच्छी बात नहीं है’, ‘फोन पर क्या लगी हो’, ‘इतनी पूजा करने से क्या होता है’, ऐसी टिप्पणियां न करें।
- साथ का अर्थ समझें : साथ रहने का यह मतलब नहीं कि एक-दूसरे के कामों पर टीका-टिप्पणी करें। खुद से और दूसरों से यथार्थवादी अपेक्षाएं ही रखें।
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