लॉकडाउन के चलते कई मजदूर बेकाम हो गए हैं। ऐसी स्थिति में उनके सामने खाने का संकट पैदा हो गया है। इन मजदूरों को कई लोग मुफ्त में राशन-पानी पहुंचा रहे हैं। लेकिन इनमें कुछ मेहनतकश महिलाएं ऐसी हैं कि जिन्हें मुफ्त का राशन लेना गवारा नहीं हुआ। उन्होंने इसके बदले कुछ काम मांगा तो कुछ संस्थाओं और लोगों ने उन्हें सिलाई का काम सौंप दिया। अब वे राशन-भोजन के बदले मास्क बनाकर दे रही हैं, जिसे लोग जरूरतमंदों को बांट रहे हैं।
1600 से ज्यादा बना चुकी मास्क
महामारी की रोकथाम के लिए देशभर में 3 मई तक लॉकडाउन है। नेहरू नगर स्थित मांडवी बस्ती के मेहनत-मजदूरी करने वाले रहवासी बेकाम हो गए हैं। लेकिन इनमें इतनी खुद्दारी है कि वे राशन- भोजन के बदले कुछ न कुछ श्रम करना चाहते थे। उनके इस जज्बे को देख कुछ संस्थाएं और जागरूक नागरिक आगे आए। उन्होंने महिलाओं को मास्क बनाकर देने का काम सौंप दिया। अब तक ये महिलाएं 80 मीटर कपड़े से 1600 से अधिक मास्क तैयार कर दे चुकी हैं। एक महिला दिन भर में लगभग 50 मास्क बना लेती हैं। अनीता जाटव ने भी कुछ महिलाओं के साथ मिलकर मास्क बनाना शुरू किया। जिस संस्था ने उन्हें कपड़ा उपलब्ध कराया, वह एक मास्क के दो रुपए मेहनताना भी दे रही है। हालांकि इसे लेने से वह इंकार कर रही हैं।
प्रीति राठौड़
प्रीति राठौड़ कक्षा आठवीं की छात्रा है। उसने भी घर बैठे अपने हुनर के मुताबिक कपड़े के मास्क बनाने का निर्णय लिया। इस काम में उन्होंने कुछ और महिलाओं को भी शामिल कर लिया है। संस्था इन महिलाओं को प्रति मास्क दाे रुपए के हिसाब से पैसा दे रही है।
वंदना राठौड़
वंदना राठौड़ बच्चों को पढ़ाने के साथ ही एक निजी संस्था में नौकरी करती थी लेकिन लॉकडाउन के चलते वह भी बेरोजगार हो गईं। उन्होंने भी मास्क बनाना शुरू किया और कहा कि देश में ऐसे कई लोग हैं जिनके पास हुनर है उसके मुताबिक उनसे काम कराया जा सकता है।
अनुराधा
अनुराधा भी घरों में काम करने जाती हैं। उनकी आय से परिवार का खर्च चलता है। लेकिन लॉकडाउन के कारण वह भी घर में कैद होकर रह गई। अनुराधा ने भी राशन के बदले कुछ काम करने की इच्छा जाहिर की थी। इसके बाद संस्था ने उन्हें मास्क बनाने के लिए कपड़ा उपलब्ध करवा दिया।
रोशनी मंधारी
मांडवी बस्ती निवासी रोशनी मंधारी घरों में काम करती हैं। इसके अलावा वे सिलाई-कढ़ाई भी करती हैं। लेकिन महामारी के चलते घर पर ही रहना पड़ रहा है। रोशनी को राशन तो मिल रहा है, मगर वे इसके बदले में कुछ करना चाहती थीं। संस्था ने उन्हें कपड़ा उपलब्ध करवा दिया। अब वे मास्क बनाकर दे रही हैं।
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