सिकल सेल डिसीज यह नाम सुनने में जितना अजीब लगता है, यह बीमारी भी उससे कम घातक नहीं है। हजारों में से किसी एक को यह बीमारी होती है। खून में पल रहा यह मर्ज मरीज की जान भी ले सकता है। हालांकि, जागरूक मरीज उपचार के जरिए सामान्य जीवन जी सकता है। इस रोग और इसके उपचार से लोगों को जागरूक कराने हर साल 19 जून को ‘विश्व सिकल सेल जागरूकता दिवस’ मनाया जाता है। आज हम आपको रूबरू करा रहे हैं सुचिता पाटिल से। जिसने अपनी जीवटता से इस जानलेवा बीमारी को परास्त किया है।
बचपन से ही कमजोर थी
ये दास्तां है भोपाल केबरखेड़ा निवासी बीएचईएल में एजीएम आरबी पाटिल की 16 साल की बेटी सुचिता की। पाटिल कहते हैं कि सुचिता बचपन से ही कमजोर थी। मौसम में जरा सा बदलाव होने पर उसे सर्दी-खांसी, बुखार हो जाता था। हम इसे साधारण समझकर डॉक्टर से इलाज कराते रहे। फिर भीपांच वर्ष की होने तकवह हमेशा बीमार ही रही।
ब्लड टेस्ट कराया
तब मेरे डॉक्टर भाई ने सुचिता का ब्लड टेस्ट कराया। रिपोर्ट में पता चला कि सुचिता सिकल सेल से पीड़ित है। यह जानते ही पूरा परिवार तनाव में आगया। हालांकि हम इस बीमारी के बारे में ज्यादा जानते नहीं थे, लेकिन इतना पता था कि इसका इलाज बड़ा मुश्किल है।
बेटी को लेकर उनके पास पहुंचे
समय बीतता गया। फिर हमें पता चला कि दिल्ली के एक अस्पताल में चाइल्ड स्पेशलिस्ट डॉक्टर गौरव खारया हैं। वे भोपाल के दो अस्पतालों में मरीज देखने आते हैं। हम बेटी को लेकर उनके पास पहुंचे। उन्हाेंने पूरी जांच रिपोर्ट देखने के बाद कहा कि इसका इलाज सिर्फ बोनमैरो ट्रांसप्लांट है, जिस पर लगभग 15 से 35 लाख रुपए तक का खर्च आएगा।
डॉक्टर बनना चाहती है मेरी बेटी सुचिता
डोनर के लिए बेटे सौरभ (26) की जांच की गई, लेकिन उसका बोनमैरो सुचिता से मैच नहीं हुआ। इस बात ने हम बहुतनिराश हुए। इसी बीच चेन्नई की एक संस्था की मदद से हमें डोनर मिल गया औरजनवरी 2020 में डॉ. गौरव ने सुचिता का बोनमैरो ट्रांसप्लांट किया। करीब आठ माह दिल्ली में चले इलाज के बाद 31 मई को हम सुचिता के साथ भोपाल लौटे हैं। अब वह ठीक है।
मेरी बेटी हमेशा मुस्कुराती है
विक्रम हायर सेकंडरी स्कूल में 10वीं की छात्रा सुचिता का अप्रैल-19 में पथरी के कारण गाॅल ब्लैडर निकालना पड़ा था। इससे हम उबर नहीं पाए थे कि पता चला कि उसकास्पलीन यानी तिल्लीसामान्य से काफी बढ़ी है। पिछले सालउसका भी ऑपरेशन हुआ। इतनी परेशानियों के बाद भी मेरी बेटी हमेशा मुस्कुराती है। वह चाहती है कि डॉक्टर बनकर लोगों की सेवा करे।
ट्रांसप्लांट के छह माह बाद बच्ची अब ठीक है
डॉ. गौरव खारया के अनुसार सिकल सेल डिसीज वंशानुगत ब्लड डिसऑर्डर के कारण बच्चों में होती है। इसे डिफेक्टिव हीमोग्लोबिन से पहचाना जाता है। यह बीमारी शरीर के कई अंगों को प्रभावित करती है। सुचिता का केस एडवांस स्टेज का था, इसलिए हमने उन्हें बोनमैरो ट्रांसप्लांट की सलाह दी। ट्रांसप्लांट के छह माह बाद बच्ची ठीक है। अब वह दर्दरहित और सामान्य जीवन जी रही है।
बीमारी से डरें नहीं, डटे रहें
सुचिता के पिताआरबी पाटिल कहते हैं बेटी के इलाज के दौरान कई परेशानियां आईं, लेकिन पॉजिटिव एटीट्यूड से हर मुश्किल पर विजय हासिल कर ली। सिकल सेल से जूझ रहे सभी लोगों को मेरा यही कहना है कि बीमारी से डरे नहीं डटे रहें। सही इलाज के जरिए हम उसे हरा सकते हैं।
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