लाइफस्टाइल डेस्क. आज नेशनल गर्ल चाइल्ड डे है। इस मौके पर जानिए देश की उन बेटियों के बारे में जिन्होंनेतमाम मुश्किलों के बावजूद ना सिर्फ खुद के हक की लड़ाई लड़ीं, बल्कि औरों को भी प्रेरित कर आगे बढ़ाया। शिक्षा का हक पाने के लिए संघर्ष और जीत का परचम भी लहराया।
1. खुशबू, लखनऊ, उत्तर प्रदेश
उत्तर प्रदेश के लखनऊ की रहने वाली खुशबू शुरूआत में प्राइवेट स्कूल में पढ़ने जाती थी। पिता की बीमारी के चलते उसे स्कूल छोड़ना पड़ा। खुशबू ने बताया कि वो साल तक आंगनवाड़ी में पढ़ीं, जिसके बाद उनकी मां ने सरकारी स्कूल में पढ़ने के लिए भेजा। यहां 5वीं तक पढ़ने के बाद उसने आर्थिक तंगी के चलते पढ़ाई छोड़ दी।
एक लोकल संस्था की मदद से खुशबू ने अपनी पढ़ाई दोबारा शुरू की। इतना ही नहीं खुशबू खुद एक संस्था के साथ जुड़ीं और लड़कियों शिक्षित करने का जिम्मा उठाया। उन्हें उनके हक के बारे में जागरूक किया। अपनी इस पहल के तहत समाज की पढ़ाई छोड़ चुकी 15 लड़कियों को वापस स्कूल पढ़ने भेजा।
खुशबू लखनऊ के विद्यांत कॉलेज में बी.ए. कॉमर्स के तीसरे साल की छात्रा है। वह कहती हैं कि स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद वह सामाजिक कार्य में अपना मास्टर्स करना चाहती हैं।
2.सिंपी, बाराबंकी, उत्तर प्रदेश
उत्तर प्रदेश के बाराबंकी, में कक्षा 9वीं में पढ़ने वाली सिंपी ने अपनी हिम्मत से ना सिर्फ खुद के लिए आवाज उठाई, बल्कि 2 लड़कियों को भी बाल विवाह जैसी कुप्रथा से बचाया। अपनी मां की लगाई पाबंदियों में हमेशा सिंपी के पिता ने उसका साथ दिया। एक ट्रेनिंग प्रोग्राम के तहत उसे अपने गांव से बाहर जाना था। जिसका सिंपी की मां ने काफी विरोध किया। लेकिन पिता के सपोर्ट के कारण सिंपी उस प्रोग्राम का हिस्सा बनी। यहां उसकी मुलाकात 2 बेटियों की एक ऐसी मां से हुई, जिसपर उसका दूसरा पति अपनी दोनों सौतेली बेटियों का 32 साल के आदमी से बाल विवाह करवाने के लिए दबाव बना रहा था। इस पर सिंपी ने उन दोनों लड़कियों की मदद करने की ठान ली और उनके पिता को समझाने की कोशिश की। लेकिन जब जब बात नहीं बनी तो उसने पुलिस की मदद से 14 और 16 साल की उन दोनों बच्चियों की जिंदगी खराब होने से बचा ली। इसके बाद से ही दोनों लड़कियां पिता से अलग अपनी मां के साथ रह रही हैं। इनमें से एक आज लड़कियों के अधिकार और बाल विवाह पीड़ितों की बेहतरी के लिए काम कर रही है।
3.सुक्कुबाई, हुबली, कर्नाटक
कर्नाटक के हुबली के एक छोटे से गांव में आर्थिक रूप से कमजोर परिवार की सुक्कुबाई के माता-पिता प्रवासी मजदूर हैं। उसकी दो छोटी बहनें भी है, जो उसके साथ स्कूल जाती है। पिछले साल सुक्कुबाई का परिवार आर्थिक तंगी के चलते दूसरे गांव चला गया। यहां आने के बाद कुछ समय के लिए उले और उसकी बहनों को स्कूल छोड़ना पड़ा, लेकिन बाद में उन्होंने फिर से अपनी पढ़ाई शुरू कर दी। सुक्कुबाई बताती हैं कि वो अपने लक्ष्य को लेकर काफी गंभीर है और खुद को काफी खुशनसीब मानती है कि उनके माता- पिता ने उन्हें पढ़ने की इजाजत दी। उन्होंने बताया कि वह और उनकी बहनें अपने कपड़े बार-बार सिल कर पहनती है, क्योंकि वह साल में एक जोड़ी कपड़े भी नहीं खरीद सकते। फिर भी वह खुश है कि उन्हें पढ़ने का मौका मिला है।
सुक्कुबाई ने खद पढ़ाई की अहमियत को समझकर औरों को भी प्रेरित किया। अपनी स्कूल टीचर के साथ मिलकर उन्होंने पढ़ाई छोड़ चुकी 5 लड़कियों की पढ़ाई फिर से शुरू करवाई। इसके अलावा 7 और लड़कियां भी जल्द ही फिर स्कूल जाना शुरू करने वाली है।
क्यों मनाते हैं नेशनल गर्ल चाइल्ड डे
देश में हर साल 24 जनवरी को नेशनल गर्ल चाइल्ड डे मनाया जाता है। इसकी शुरुआत साल 2008 में भारत सरकार के महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने की। इसका मकसद देश में लड़कियों के साथ हो रहे भेदभाव से लोगों को रूबरू कराना था। इसके तहत सेव गर्ल चाइल्ड, लिंग अनुपात और लड़कियों को एक सुरक्षित और स्वस्थ वातावरण देने के लिए कई जागरूक अभियान चलाए गए। साल 2019 का नेशनल गर्ल चाइल्ड डे "एक उज्जवल कल के लिए लड़कियों को सशक्त करना" की थीम कर आधारित था। लेकिन आज भी सरकार की कई कोशिशों के बाद भी कोई ना कोई सामाजिक और आर्थिक वजह से अपने हक से वंजित रह जाती है। ऐसे में इस गंभीर विषय पर आगे भी काम करते रहने की जरूरत है।
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