लाइफस्टाइल डेस्क जितेन्द्र बूरा(सोनीपत). ये कहानी एक मां की है, जिन्हें बचपन से लिखने का शौक था। पर गृहस्थ जीवन में यह पीछे छूट गया था। फुर्सत के पल मिले तो डायरी में कुछ साहित्यिक लिख लिया। इस दौर को गुजरे 40 साल बीत चुके थे। एक रोज बड़ी बेटी ने मां की डायरी को पलटकर पढ़ा तो मां में लेखक व कवयित्री जैसी प्रतिभा नजर आई। इसके बाद बेटी फोन पर अक्सर मां को दोबारा लिखने के लिए प्रेरित करने लगी। एक दिन बेटे-बहू ने मां को लैपटॉप गिफ्ट किया। छोटी बेटी ने चलाना सिखाया।
गजल संग्रह की पहली किताब 'धनक' लोगों तक पहुंची
60 साल की उम्र में जब लोग रिटायर होते हैं, तब राजश्री गौड़ ने नई उमंग से लिखना शुरू किया। हाल में उनकी गजल संग्रह की पहली किताब 'धनक' लोगों के बीच आई है। एक और पुस्तक जल्द आने वाली है। सोनीपत के सेक्टर-15 निवासी राजश्री बताती हैं कि वे पलवल के हथीन में पैदा हुईं। बचपन में परिवार सोनीपत में आकर बस गया। हिंदू गर्ल्स कॉलेज से बीए-बीएड की। एमए (हिंदी) में दाखिला लिया, पर पढ़ाई पूरी न कर पाईं। पूरा परिवार शिक्षित था। बचपन में दादी को गीता-रामायण पढ़ते, मां को भजन गुनगुनाते देखा। पिता का साहित्य से लगाव रहा। घर में बाल पत्रिका चंदा मामा आती थी। इन सबका मन पर गहरा असर पड़ा। नन्हें हाथों में कलम आ गई और रच डाली कविता। ऐसा मेरा देश महान, यहां बहती गंगा और यमुना और बहे वीरों की शान।
बहू के आने के बाद काम से फुर्सत मिली
कवयित्री राजश्री कहती हैं, '1978 में शादी के बाद पति (रिटायर्ड पशु-चिकित्सक) ने हमेशा साथ दिया। बेटियां निधि, रति व बेटा विराट विवाह बंधन में बंध गए। बहू रूचि आई तो काम से फुर्सत मिल गई। पर कभी साहित्य का मोह नहीं त्याग पाई। अब बच्चों ने सपना पूरा कराया है। काव्य संग्रह की पहली किताब 'धनक' आने पर साहित्यिक जगत में पहचान मिली। सामाजिक संगठन 'जय भारत यूथ क्लब' की सलाहकार बनी। अंतरराष्ट्रीय ब्राह्मण संगठन की जिला अध्यक्ष बनने पर समाजसेवा का अवसर मिला। विधवाओं व अनाथ बच्चों के लिए काम किए।' राजश्री को नारी गौरव सम्मान, श्रेष्ठ हिंदी रचनाकार सम्मान, काव्य सागर सम्मान मिल चुका है।
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