लाइफस्टाइल डेस्क. हमारे शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता का मजबूत होना बहुत आवश्यक होता है। लेकिन इसके लिए संतुलित और पौष्टिक खान-पान के साथ योग भी मददगार हो सकता है।जिंदल नेचरक्योर इंस्टीट्यूट केमुख्य योग अधिकारीडॉ. राजीव राजेश से जानें योग से नीरोग रहने का तरीका:
मत्स्यासन
मत्स्यासन पीठ के बल लेट जाएं। हाथों को शरीर के बाजू में रखें, हथेलियां जमीन पर पूरी तरह जमाकर। अब धीरे-धीरे सीने को उठाएं, गर्दन का सहारा लेते हुए सिर के ऊपरी हिस्से को यूं टिकाएं कि बाज़ुओं से ऊपरी पीठ तक शरीर एक कर्व बन जाए। इस स्थिति में कोहनियां और हथेलियां जमीन पर टिकी होनी चाहिए। चार-पांच सांस तक रूकें फिर धीरे-धीरे सिर को पुन: फर्श पर सीधा कर टिका लें।
इस आसन को करने का दूसरा तरीका पद्मासन की मुद्रा का भी है, जिसमें लेटने के बाद पैरों को पद्मासन में बांधा जाता है। हाथों की मदद से तस्वीर अनुसार पीठ को ऊपर उठाएं और पैरों व सिर के बल शरीर को संतुलित करें। अब बाएं पैर के पंजों को बांएं हाथ से और दाएं पैर को दाएं हाथ से पकड़ें। इस दौरान, कोहनियां और घुटने जमीन से सटे होने चाहिए। इस अवस्था में रहते हुए धीरे-धीरे सांस लेते और छोड़ते रहें। करीब 30 सेकंड तक इसी अवस्था में रहें।
मत्स्यासन से लाभ
शरीर में ऊर्जा का स्तर बढ़ेगा, फेफड़े मजबूत बनेंगे। रक्तसंचार बेहतर होगा। यह दिल की सेहत के लिए भी बहुत अच्छा है। गर्दन की तकलीफ़ वाले या हृदय रोगी इसे न करें।
अर्ध मत्स्येन्द्रासन
पैरों को सामने की ओर फैलाते हुए (दंडासन में) बैठ जाएं। दोनों हाथों को ज़मीन पर रखें। सांस अंदर लेते हुए रीढ़ की हड्डी सीधी करें। अब तस्वीर अनुसार बायां पैर मोड़ें और पंजे को कूल्हे की ओर दाएं घुटने के पीछे ले जाएं। दाएं पैर को इस तरह मोड़कर रखें कि तलवे ऊपर की ओर खुले रहें (चित्र देखें)। अब बांयां हाथ ज़मीन पर रखते हुए शरीर को इस पर टिकाएं। वहीं दाएं हाथ की कोहनी बाएं पैर के घुटने पर रखें। अब शरीर को बांईं ओर खींचें। इस मुद्रा में 20-30 सेकंड के लिए रुकें। विपरीत दिशा में इस योगासन को दोहराएं।
अर्ध मत्स्येन्द्रासन से लाभ
इससे रीढ़ की हड्डी का दबाव कम होता है। ये प्रतिरक्षा प्रणाली सहित शरीर के आंतरिक कार्यों में सुधार करता है। ख़राब पाचन शरीर में विषाक्त पदार्थों (टॉक्सिंस) का कारण बनता है, जिससे संक्रमण होता है। ये आसन पाचन संबंधी समस्याएं दूर करता है। इससे पेट की चर्बी कम होती है, शरीर का लचीलापन बढ़ता है।
उत्कटासन
सीधे खड़े हो जाएं। अब शरीर और सिर दोनों को सीधा रखते हुए ताड़ासन की मुद्रा में खड़े हो जाएं। दोनों पैरों को पास-पास रखें। दोनों हाथों को सीधा रखें। अब सांस अंदर लेते हुए, दोनों हाथों को ऊपर की ओर उठाते हुए सिर के ऊपर ले जाएं और दोनों को आपस में जोड़ें। अब धीरे-धीरे घुटनों को सामने की ओर मोड़ें और कूल्हों को पीछे और नीचे की ओर लाएं। कूल्हों को फर्श के समानांतर लाने का प्रयास करें। गर्दन और रीढ़ की हड्डी को ताने रखें। इसे करते वक्त शरीर का आकार ऐसा लगेगा जैसे कि एक काल्पनिक कुर्सी पर बैठे हुए हैं। इस आसन को एक मिनट तक क्षमता अनुसार करें। इस प्रक्रिया को विपरीत दोहराकर सामान्य अवस्था में आएं और फिर कुछ देर के लिए सुखासन में बैठ जाएं।
उत्कटासन से लाभ
शरीर का संतुलन सुधारता है। रक्तसंचार को दुरुस्त करता है और चर्बी घटाता है। रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिए नियमित रूप से उत्कटासन का अभ्यास करना फ़ायदेमंद है।
सुखासन
फर्श पर योग मैट बिछाकर बैठ जाएं। पैरों को घुटने से मोड़कर पालथी बांधकर आराम से रहें। रीढ़ की हड्डी, सिर और गर्दन को बिना खिंचाव बनाए सीधा रखें। दोनों हाथों को ध्यान की मुद्रा में घुटनों पर रखें। अब आंखें बंद कर लें और पूरे शरीर को ढीला रखें। गहरी सांस लें और छोड़ें। इस आसन को 10-15 मिनट या क्षमता के अनुसार करें।
सुखासन से लाभ
इस आसन से तनाव के लिए ज़िम्मेदार हॉर्मोन का स्राव कम करने में मदद मिलती है। इससे हृदय गति संतुलित होती है और तंत्रिका तंत्र से जुड़ी समस्याएं कम करने में भी मदद मिल सकती है।
इसका रखें ध्यान
अगर रीढ़ की हड्डी से संबंधित कोई समस्या, घुटनों में दर्द, हर्निया या फिर अल्सर है, तो इन योगासन को बिल्कुल न करें।
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