रिलेशनशिप. संवाद सिर्फ बातचीत नहीं, बल्कि दो लोगों के बीच का संतुलन है। इसमें एक वक्ता तो दूसरा श्रोता होता है, लेकिन अगर दोनों में एक भी नदारद रहे तो संवाद अधूरा रहता है। अगर आप सिर्फ बात कहने के आदि हैं, तो सुनने की कला भी सीखनी होगी।
कुछ लोग बहुत ज़्यादा बात करते हैं और उन्हें इस बात से बिल्कुल फर्क नहीं पड़ता है कि सामने वाला उनकी बातों में दिलचस्पी ले रहा है या नहीं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि ज़्यादा बोलने के बजाय ज़्यादा सुनना फायदेमंद होता है। कई बार हमें अपनी कही बातों पर पछताना पड़ता है, जो कि बिना सोचे-समझे बात करने का नतीजा होता है।
कम बात करना और अधिक सुनना, दूसरों के विचारों से सहमत होने जितना मुश्किल होता है। हो सकता है कि आपको किसी के विचार या बातें सही न लगें, लेकिन सुनते वक्त आपको अपने विचारों को किनारे कर सामने वाले की बात पर से ध्यान देना चाहिए। जब आप इस प्रकार से किसी की बात को सुनते हैं, तो आप बातों के दूसरे पहलुओं को देख पाते हैं, जिससे आप दूसरों की भावनाओं को आसानी से समझ सकते हैं। यदि आप इस आदत को अपनाना चाहते हैं, तो पहले आपको कम बोलना सीखना होगा।
फायदा क्या होगा?
- ज्ञान बढ़ता है- जो ज़्यादा बात करते हैं, वे अपनी जानकारी से अधिक कह जाते हैं, जबकि जो लोग सुनने में दिलचस्पी लेते हैं, वे सभी की बातों को ध्यान से सुनते हैं। इस कारण उन्हें सभी से कुछ न कुछ सीखने का मौक़ा मिलता है। सुनने वाले को यहां दो बातों का फ़ायदा होता है। पहला, उसे नई जानकारी मिलती है और दूसरा, वह मिली जानकारी का अच्छी तरह से उपयोग कर सकता है।
- पछतावा नहीं रहता- जो लोग ज़्यादा बात करते हैं, उन्हें पता ही नहीं होता है कि वे क्या कहने जा रहे हैं और अक्सर बातों-बातों में वे अपनी निजी ज़िंदगी के बारे में बता जाते हैं। इसीलिए कहा जाता है कि कम बोलें, लेकिन सोच-विचार कर बोलें।
- गंभीरता से लिया जाता है- अधिकतर चुप रहने की वजह से हो सकता है कि लोग आपको घमंडी समझें पर जो आपके क़रीबी होंगे या वाकई आपको जान लेंगे उनकी ये ग़लतफहमी जल्द दूर हो जाएगी। इसके साथ ही जो लोग ज़रूरत के समय ही बोलते हैं, वे हर बात को गंभीरता से समझते हैं। हमें तभी बोलना चाहिए जब हमें किसी चीज़ की ठोस जानकारी हो। कम बोलने से आपकी बात में गंभीरता होती है, जिससे सभी आपकी बात को सुनने में दिलचस्पी लेते हैं।
- रिश्ते मज़बूत होते हैं- जब आप किसी को ध्यान से सुनते हैं तो बात करने वाले व्यक्ति को अच्छा महसूस होता है। सुनने से दूसरों की बातों को अच्छी तरह से समझा जा सकता है। इसके साथ ही उनकी भावनाओं को महसूस किया जा सकता है, जिसके अनुसार आप एक उचित प्रतिक्रिया देने योग्य बनते हैं। यदि आप सोच-विचार कर बात करते हैं, तो लोग आपकी बातों को दिलचस्पी से सुनते हैं। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि उन्हें पता होता है कि आप ज़रूरत पड़ने पर ही बात करते हैं, इसलिए यदि आप कुछ कह रहे हैं तो अवश्य ही कुछ ज़रूरी होगा।
- कम शब्दों में बहुत कुछ कहना- कम बात करने वालों की यह ख़ासियत होती है कि वे कम शब्दों में बहुत कुछ कह जाते हैं, जिसके कारण उनकी बात हर किसी को याद रह जाती है और किसी को उनकी बात सुनने में झिझक भी नहीं होती है। इसलिए बातों को घुमा-फिराकर करने के बजाए, कम शब्दों में स्पष्ट कहें।
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