लाइफस्टाइल डेस्क. स्वस्थ रखने में जितना खानपानअहम है उतना ही जरूरी है बर्तन। जिसे अक्सर नजरअंदाज किया जाता है। अलग-अलग धातुओं के बर्तनों के फायदे भी अलग हैं। जब इनमें खाना पकाया या रखकर खाया जाता है तो धातु का असर पूरे शरीर पर होता है। जैसे मिट्टी के बर्तन में रखा पानी पीने पर शरीर लंबे समय ठंडा रहता है और तांबे के बर्तन में रखा पानी पेट को फायदा पहुंचाता है। इस दिवाली खरीदारी करते समय ध्यान रखें कि किस धातु का बर्तन खरीद रहे हैं। राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान, जयपुर के आयुर्वेद विषेशज्ञ डॉ. अजय साहू और डॉ. हरीश भाकुनी बता रहे हैं अलग-अलग धातुओं के बर्तन के फायदे....
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क्यों जरूरी : तांबे के बर्तनों का हिंदू धर्म में भी काफी महत्व है। आयुर्वेद के मुताबिक, तांबा शरीर के वात, कफ और पित्त दोष को संतुलित करता है। यह धातु पानी को शुद्ध करती है और बैक्टीरिया को खत्म करती है। यह शरीर से फैट और विषैले तत्वों को दूर करने के साथ शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने का काम करता है। तांबे के बर्तन में रखा पानी पेट, किडनी और लिवर के लिए खास फायदेमंद है। साथ ही यह वजन नियंत्रित करने में मदद करता है। इसका पूरा उठाने के लिए कम से कम तांबे के बर्तन में 8 घंटे तक पानी रखने के बाद ही पीएं।
ध्यान रखें :तांबे के बर्तन में दूध कभी ना पिएं और न ही रखें। इसकी प्रकृति दूध को विषैला बना देती है।
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क्यों जरूरी : इस धातु का सम्बंध दिमाग से है और शरीर के पित्त को नियंत्रित करती है। खासकर छोटे बच्चों का दिमाग तेज करने के लिए चांदी के बर्तन में भोजन या पानी दिया जाता है। इसकी प्रकृति शरीर को ठंडा रखती है। चांदी के बर्तन रखकर भोजन खाने से तन और मन स्थित और शांत होता है। ऐसे लोग जो संवाद करते हैं या किसी अध्ययन से जुड़े हैँ वे चांदी के बर्तन का इस्तेमाल कर सकते हैं। यह धातु 100 फीसदी बैक्टीरिया फ्री होती है इसलिए इंफेक्शन भी बचाती है। चांदी के बर्तन इम्युनिटी बढ़ाकर मौसमी बीमारियों से भी बचाते हैं।
ध्यान रखें - चांदी के बर्तन में खाने के कोई नुकसान नहीं हैं।
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सोने के बर्तनों में हमेशा ही राजा-महाराजा या बेहद अमीर लोग खाना खाते आएं हैं। सोने से बने बर्तन वाजी करण का काम करते हैं यानी ये स्पर्म काउंट बढ़ाते हैं। इसलिए इस धातु का इस्तेमाल पुराने जमाने में भी बेहद कम लोग किया करते थे। चांदी के उलट ये एक गर्म धातु हैं। इससे बने बर्तनों में खाना खाने से शरीर मजबूत बनता है। ये शरीर को आंत्रिक और बाहरी हिस्सों को बलवान बनाता है। इसके अलावा ये आंखों की रोशनी भी बढ़ाता है।
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क्यों जरूरी : काफी समय से खाना बनाने में लोहे की कढ़ाही का प्रयोग किया जा जाता रहा है क्योंकि यह आसानी से उपलब्ध होता है और आयरन की कमी पूरी करता है। लोहे की कढ़ाही में बना खाना खासतौर पर महिलाओं को खाना चाहिए क्योंकि आयरन की कमी के मामले इनमें अधिक देखे जाते हैं। हरी सब्जियां लोहे के बर्तनों में ही पकानी चाहिए। इसमें तैयार खाना शरीर का पीलापन और सूजन दूर करता है। लोहे के बर्तनों में रखकर दूध पीना फायदेमंद है।
ध्यान रखें : इसमें खाना बनाएं लेकिन खाने के लिए लोहे के बर्तनों का प्रयोग न करें।
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स्टील के बर्तन हर घर में दिख जाएंगे। ग्लास, चम्मच, थाली, कटोरी से लेकर खाना पकाने के लिए भी अब स्टील के बर्तन बाजार में मौजूद हैं। आज कल स्टेनेलेस स्टील भी आसानी से नजर आ जाते हैं। कई लोगों को लगता है कि स्टील के बर्तन का उपयोग ठीक नहीं होता है लेकिन यहां हम आपको बता दें कि स्टील के बर्तन में खाना खाना या पकाना ना फायदेमंद होता है और ना ही नुकसानदायक होता है। लेकिन कई लोग इनका इस्तेमाल कम कर रहे हैं।
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एल्यूमिनियम धातु से बने बर्तन खाना खाने और पकाने दोनों के लिए ठीक नहीं होते हैं। दरअसल ये बोक्साईट का बना होता है। इसमें बने खाने से शरीर को सिर्फ नुकसान होता है। इसमें पका खाना अपने पोषण तत्व खो देता है। खाने में मौजूद आयरन, कैल्शियम जैसे तत्व खत्म हो जाते हैं। जिससे हड्डियां कमजोर होने लगती हैं। इसके अलावा मानसिक बीमारियां भी होती हैं। इसके अलावा अस्थामा, शुगर जैसी बीमारियां भी होने का खतरा बना रहता है। एल्यूमिनियम शरीर को कई तरह से नुकसान पहुंचाता है। इसलिए अंग्रेज अपने कैदियों को इसी बने बर्तनों में खाना परोसा करते थे।
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- अनेक घरों में पीतल के बर्तन का भी उपयोग होता है। यह सामान्य कीमत की धातु है। इसमें भोजन पकाने और करने से कृमि रोग, कफ और गैस संबंधी बीमारी नहीं होती।
- पीतल के बर्तन में खाना खाया और पकाया जाता है। इस धातु में खाना बेहद स्वादिष्ट लगता है। इसमें खाना जल्दी गर्म होता है। गैस संबंधी बिमारियों से पीड़ित लोगों को पीतल में खाना खाना चाहिए। इससे शरीर को तेज भी मिलता है। पीतल के बर्तन में पानी पीने से शरीर को उर्जा प्राप्त होती है। पीतल का रंग पीला होता है इलिए इसे आंखों के लिए अच्छा माना गया है। इसमें खाना पकाने से भोजन के केवल 4 प्रतिशत पोषक तत्व खत्म होते हैं इसलिए इसमें खाना पकाना और खाना काफी सुरक्षित होता है।
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मिट्टी में एंटी एलर्जी तत्व होते हैं। ये सीक्रीशन का काम भी बेहत अच्छे से करती है। अम्लपित्त यानी पेट के रोगियों के लिए मिट्टी के बर्तन में खाना पकाना बेहद फायदेमंद होता है। मिट्टी के बर्तन में खाना पकाने से इसके पोषक तत्व खत्म नहीं होते हैं। ये खाद्य पदार्थों को पौष्टिक बनाए रखने में मदद करता है। लेकिन आज कल अच्छी मिट्टी के बर्तन मुश्किल से मिलते हैं। कई बार मिट्टी के बर्तनों को खूबसूरत बनाने के लिए इसमें पेंट कर दिया जता है। कई बार इसमें चिकनी मिट्टी की मिलावट कर दी जाती है। जिससे ये दूषित हो जाती है। इसलिए आप मिट्टी के बर्तन खरीदते वक्त ध्यान रखें कि मिट्टी का बर्तन अच्छी मिट्टी से बना हुआ हो।
बढ़ती बीमारियों के चलते लोग एक बार फिर मिट्टी के बर्तनों की तरफ लौट रहे हैं। मिट्टी के बर्तन में स्त्राव रोधक तत्व होते हैं, इसलिए ये अम्लपित्त होता है। इससे बने बर्तनों में खाना पकाने से रक्त प्रदर (महावारी) या नाक से खून आना जैसी समस्याओं से राहत मिलती है।
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