मुश्किल हालातों से निकलकर जिंदगी में किस तरह कामयाबी हासिल की जा सकती है, ये अगर आपको जानना हो तो हैदराबाद के इस कपल की सफलता से प्रेरणा ली जा सकती है। इन्होंने बांस से बने काम को बढ़ावा देने में खुद तो कड़ी मेहनत की ही, साथ ही आंध्र प्रदेश के उन आदिवासी और ग्रामीणों को रोजगार के अवसर भी दिए जिन्हें दो वक्त का खाना भी मुश्किल से मिलता था।
31 साल की अरुणा कप्पागंटुला और 33 वर्षीय प्रशांत लिंघम की शादी 2006 में हुई। वे चाहते थे कि शादी के बाद अपने घर को पूरी तरह से नया सेट करें। शादी के बाद घर के लिए फर्नीचर का सामान लेने वेमार्केट गए। अरुणा अपने घर के लिए बांस का फर्नीचर चाहतीं थी। वैसे भी बांस से बनीचीजें उन्हें हमेशा अपनी ओर आकर्षित करती थीं।
मार्केट में फर्नीचर खरीदते समय उन्हें ये ख्याल आया कि इसी क्षेत्र में वे भी प्रशांत के साथ मिलकर बिजनेस शुरू कर सकती हैं। उनके इस सपने को साकार करने में प्रशांत ने किस तरह मदद की और कैसे वे बांस से घर बनाने में कामयाब रहे, जानिए खुद उन्हीं की जुबानी।
मेरी शादी को तब कुछ ही दिन हुए थे। फर्नीचर लेने के बाद जब हम घर आए और सास-ससुर को बताया तो वे बहुत नाराज हुए। उन्हें इस बिजनेस का आइडिया बिल्कुल पसंद नहीं आया। मेरे मम्मी-पापा को भी यह आइडिया अच्छा नहीं लगा।लेकिन मैंने और प्रशांत नेबैंबू बिजनेस में अपना कॅरिअर बनाने काफैसला कर लिया थाजो अटल रहा।
उन्हीं दिनों मैं प्रशांत के साथ बैंबू को लेकर नौ महीने के फॉरेस्ट स्टडी टूर पर देश के अलग-अलग हिस्सों में गई। इस टूर के माध्यम से हमने ये जाना कि भारत में बांस से बने प्रोडक्ट का मार्केट लगभग 26,000 करोड़ है। अगर इस काम की शुरुआत की जाए तो आंध्रप्रदेश के तकरीबन 50 लाखलोगों को रोजगार मिल सकता है।
मैंने देखा कि अगर आप बांस के प्रोडक्ट को अपना बिजनेस बनाना चाहते हैं तो प्रशासन की नीतियां भी काफी सपोर्ट करती हैं। उन्हीं दिनों पता चला कि आईआईटी दिल्ली बांस पर आधारित हाउसिंग टेक्नोलॉजी पर काम कर रहीहै। यहीं से प्रेरणा लेकर मैंने 2008 में प्रशांत के साथ बैम्बू हाउस की शुरुआत की।
बांस से बनी चीजों कीमार्केटिंगकरना और लोगों को इससे बने प्रोडक्ट की खासियत समझाना भी चुनौतीपूर्ण था। हमने आंध्रप्रदेश के ग्रामीणों और आदिवासी समुदाय को बांस से चीजें तैयार करने की ट्रेनिंग दी। इस तरह हमने हैदराबाद में ''ग्रीन लाइफ'' की शुरुआत की। इस सफर की सबसे बड़ी मुश्किल बांस के बारे में जानकारी हासिल करना रहा।
बांस और इसके गुणों को लेकर हम दोनों ने दिन-रात स्टडी की। हालांकि इस बारे में किताबों या नेट पर इतनी जानकारी उपलब्ध नहीं है जिसे जानकर बिजनेस किया जा सके। फिर हमनें बांस पर अलग-अलग प्रयोग करके अपना डाटा बैंक बनाया। नार्थ इस्ट के शिल्पकारों से हमें बांस के बारे में वो सारी बातें पता चलीं जिसकी उस वक्त हमें सबसे ज्यादा जरूरत थी।
अपने बिजनेस को आगे बढ़ाने के लिए हम दोनों ने 60 लाख का कर्ज लिया। इस बीच फॉरेस्ट एक्ट से लड़कर आगे बढ़ना भी चुनौतीपूर्ण था। फिर बांस लेने के लिए जहां जाते थे वहां के लोकल लोगों को इस बात की दिक्कत होने लगी कि ये लोग बार-बार यहां क्यों आते हैं। छोटी जगह पर लोगों को अपने बिजनेस के बारे में समझानाभी आसान नहीं था।
कई परेशानियों के बावजूद हमने ये ठान लिया था कि इस प्रोजेक्ट को पूरा करना है। उन्हीं दिनो हमने बांस के अलावा अन्य चीजों जैसे दूध की थैली, टायर और प्लास्टिक की बोटल्स से इको फ्रेंडली प्रोडक्ट बनाना शुरू किया। हमारे इस काम कोकाफी पसंद किया गया। बैंबू हाउस को कंफेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्रीज का सहयोग मिला और इस तरह हमने अपने प्रोजेक्ट की स्थापना की।
हमने गुगल कंपनी के लिए एक बैंबू हट बनाई जिसे काफी पसंद किया गया। बैम्बू हाउस की सफलता को देखते हुए मैं और प्रशांत आने वाले सालों में बांस से फ्लोर और कपड़े बनाने का सपना देखते हैं। मैं चाहती हूं कि पर्यावरण को बचाने के लिए लोग बांस के महत्व को समझें और इससे बने प्रोडक्ट्स को अपने जीवन का हिस्सा बनाएं।
जो लोग बैंबू प्रोजेक्ट में अपना बिजनेस शुरू करना चाहते हैं कि उनके लिए सबसे पहले इसके डोमेन को जानना जरूरी है। बांस से घर बनाने के लिए इसकी कौन की क्वालिटी अच्छी है और किस क्वालिटी के बांस का प्रयोग नहीं करना चाहिए, इस बारे में पर्याप्त जानकारी होना जरूरी है।बांस से संबंधित हर राज्य में अलग-अलग नियम हैं, आप पहले इन नियमों कीपूरी जानकारी लें और फिर इस दिशा में आगे बढ़ें।
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