इस रविवार मदर्स डे है। बच्चे उन जरियों को तलाशेंगे, जिनमें मां की खुशी छुपी हो।वे जान पाएंगे कि मां का मां होना ही उसकी सबसे बड़ी ख़ुशी है। हर वो लम्हा, जो उसे ममता छलकाने का अवसर दे, उसी पल के लिए मां जीती है, खुश होती है, सुख पाती है। छोटे-छोटे लम्हों से मिलती हैं मां को भरपूर सांसें, उसके पूरे जीवन की प्राणवायु।
मां को बहुत ऊंचे सिंहासन पर बैठाकर, उसकी भूमिका का महिमामंडन किया जाना, मातृ दिवस का आम चलन है। बहुत सारी मांओं को तो पता भी नहीं चलता कि ऐसा कोई दिन आया और चला भी गया। और मां को ऊंचे सिंहासनों पर बैठने की फ़ुर्सत भी कहां है! उसे मां होने से अवकाश मिले, तो ना अपनी भूमिका पर नज़र डाले! इस दिन भी हंसकर अपने बच्चों के तोहफ़े स्वीकार कर पूछ जरूर लेती है, ‘मां के लिए क्यों लाए कुछ? अपने लिए ले आते, भाई-बहन के लिए लाते। मेरे पास तो तुम लोग हो ना, और मुझे क्या चाहिए!’
मां की सेवा में खुश होते बच्चे
बहुत सारे बच्चे मां की सेवा करके खुश होते हैं। उसके पैर दबाकर, उसके सिर की मालिश करके, तो कभी उसके लिए चाय- भोजन बनाकर वे मां के चेहरे पर सुकून और खुशी तलाशते हैं। मां मुस्कराती है, तो बच्चों को लगता है उसे सुकून मिल रहा है। जब बेटियां खुद मां बन जाती हैं, तब उन्हें पता चलता है कि वो सुकून कहां मिलता था। कुछ बेटों को भी इसका पता हासिल हो जाता है। वे भी उन छोटे-छोटे लम्हों में इत्मीनान पाती मां को समझ जाते हैं।
मां परवाह का ही एक और नाम है। प्यार, स्नेह, वात्सल्य इसके पर्यायवाची हैं। तो यह स्पष्ट है कि परवाह के क्षणों में मां सुख पाती है।
बच्चे की पुकार कि ‘मां, एक रोटी और देना’ पर...
मां स्नेह की सुगंध से भरी फूली-फूली गर्म रोटी उसकी थाली में रखकर जो आनंद पाती है, वह है मां की खुशी का लम्हा। बच्चा पेट-भर खाए, उसकी भूख शांत हो जाए, बस, यही तो वो चाहती है।
बच्चे को थपकी देकर सुलाते हुए...
बच्चा चैन से सोए, दुनिया के दु:ख उसे छू न पाएं, हर थपकी में मां यह दुआ पिरोती रहती है। बच्चा जितनी देर जागता रहे, मां को चाहे कितनी थपकियां देनी पड़े, उसकी दुआओं के मनके उंगलियों पर फेरियां लगाते रहते हैं। उस लम्हे में मां ख़ुशियां पाती है।
बच्चे के बालों पर कंघी फेरते हुए...
बच्चे को लगता है मां केवल बाल संवार रही है, लेकिन वो बलाएं हटा रही होती है। अनदेखा नज़र का टीका उसके माथे पर लगाती है। बच्चे के बनने-ठनने का यह लम्हा मां को बहुत प्रिय होता है। बहुत ख़ुशी देता है।
बच्चे का सामान व्यवस्थित करते हुए...
यह केवल मां के हिस्से की खुशी है। बच्चा नज़र के सामने न भी हो, तो भी वो बच्चे के इस्तेमाल वाली वस्तुओं में अपना वात्सल्य भरती रहती है। कितनी ही मांओं के पास अपने बच्चों के बचपन के कपड़े या खिलौने मिल जाएंगे। रहती दुनिया तक, मां जब भी अपने बच्चे के सामान को स्पर्श करती है, उसे हर बार उतनी ही ख़ुशियों वाला लम्हा मिलता है।
अपने बच्चे को कम्बल ओढ़ाते समय...
कितने ही बच्चे, शायद ज़्यादातर बच्चे एक उम्र के बाद मां को अपना बड़ा हो जाना जताने लगते हैं। अपना ध्यान ख़ुद रख लेने में सक्षम बताते हैं, लेकिन सोते हुए कम्बल ओढ़ना भूल जाते हैं या उसे नींद में संभाल नहीं पाते। तब मां आती है सर्द रात में अपने स्नेह की ओट देने। ठिठुरते बच्चे को ऊष्मा मिलने वाले लम्हे में मां सुखी होती है।
बच्चा शाम को घर आए, तो उसकी एक झलक पाकर...
इस सुख का तो क्या बखान किया जाए! लौटने में थोड़ी-सी भी देर हो जाए, तो बच्चे के शब्द होते हैं, ‘चिंता करने की क्या बात थी। आ ही तो रहे थे।’ मां बता नहीं सकती कि जब शाम के हाथ से धूप फिसलती जाती है, तो मां का चैन भी लेती जाती है। उसे उस समय अपने बच्चे घर में सुरक्षित चाहिए होते हैं। उनके क़दमों की आहट पा जाए, उनकी झलक दिख जाए, वो लम्हा मां के इत्मीनान का होता है।
ऐसे हज़ार-हज़ार लम्हों में सिमटी होती है मां, जो मां बनने पर ही मिलते हैं। चौखट पर सिर टिकाए, अपने में मगन बच्चे को निहारती मां की आंखें एक-साथ बलाएं ले रही होती हैं, दुआएं देती है, फ़िक़्र में आंसू भर लेती हैं, स्नेह से छलक जाती हैं... हर रोज़, ऐसे ही असंख्य पल वो आंचल में समेटती है। मां के हिस्से के इन लम्हों से बनते हैं मातृ दिवस, मातृ वर्ष, मातृ जीवन।
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