कोरोना और लॉकडाउन के कारण बच्चों में तनाव बढ़ रहा है। ऐसे में नकारात्मक विचार आना स्वाभाविक है। धीरे-धीरे यह अवसाद का रूप ले सकता है। बच्चे अलग-अलग तरह की एक्टिविटीज करने लगते हैं। इसे पैरेंट्स समझ नहीं पाते। कैलिफोर्निया के बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. नादिन बर्क हैरिस कहते हैं कि तनाव से हार्मोन में बदलाव होता है। कुछ मामलों में तनावपूर्ण घटनाओं को देखने-सुनने से भी बच्चों में तनाव बढ़ रहा है। कोई तय दिनचर्या नहीं है। ऐसे में उन्हें डराने के बजाय नए अवसरों को बताने पर जोर दिया जाना चाहिए।
बच्चों से करें बातचीत
डॉ. हैरिस बताते हैं- ‘बच्चे के मन की बात जानने के लिए उनसे बात करें। जानने की कोशिश करें कि उन्हें कौन सी बातें परेशान कर रही हैं। शायद, उन्हें मदद मिल सके। उसमें आत्मसम्मान की भावना बनाएं, प्रोत्साहन और स्नेह दें। ऐसी स्थिति में उसे उन चीजों में शामिल करें जहां वह सफल हो सकता है। सजा के बदले उसे पुरस्कार दें। जो बच्चे बचपन से ही पॉजिटिव माहौल में रहे हैं, उनके सामने आज के समय कोरोना संकट एक भयानक नकारात्मक घटना है। ऐसे में बच्चों पर पड़ रहे प्रभाव को समझना जरूरी है।
पैरेंट्स बिना किसी दखल के अपने बच्चे की बात सुनें
स्कूल बंद हैं, बच्चे घरों में कैद हैं। ऐसे में उनके दिमाग में कई तरह की धारणाएं बनती हैं। पैरेंट्स को इस पर नजर रखनी चाहिए। बच्चे को अधिक विश्वास दिलाने का सबसे अच्छा तरीका है अच्छा श्रोता बन जाना। पैरेंट्स को बच्चों की बातों और आशंकाओं काे सुनना चाहिए, पर उनकी आलोचना नहीं करनी चाहिए। उन्हें बिना किसी दखल के ज्यादा से ज्यादा सुनें। इससे यह भावना आएगी कि उन्हें सुना जा रहा है। फिर वे मन की हर बात जता पाएंगे। व्यायाम और हेल्दी फूड भी उन्हें तनाव मुक्त रखने में मदद कर सकते हैं। बच्चों से महामारी के बारे में बात करने से बचना चाहिए।
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