पहले चरण के लॉकडाउन के बाद ही दिल्ली के रहने वाले सौरवदास एक मास्क लेकर घर पहुंचे, ताकि वह जब भी बाहर निकलेतो सुरक्षित रह सके। हालांकि सौरव की मां लक्ष्मी इस मास्क के दाम से नाखुश थीं। दरअसल, यह मास्क ना ही धोने लायक था, ना इसे दोबारा यूज कियाजा सकता था और इसे पहनने पर ठीक से सांस भी नहीं ली जा सकती थी। लेकिन बावजूद इसके इसकी300 रुपए की कीमत उन्हें काफी महंगी लगी। महंगा मास्क खरीदने पर लक्ष्मी ने बेटे सौरभ को गुस्से में डांट लगाई, क्योंकि वह इससे बेहतर मास्क घर में बिना किसी पैसे के बना सकती थीं। बस फिर क्या था, अगले ही दिन 56 वर्षीय गृहणी लक्ष्मी ने करीब 25 मास्क बना डाले। इतना ही नहीं इन मास्क को उन्होंने अपने क्षेत्र के श्रमिकों और दुकानदारों को वितरितभी किया।
दो महीने में बना चुके 1000 से ज्यादा मास्क
सकारात्मक प्रतिक्रिया मिलने पर सौरव ने दिल्ली में चितरंजन पार्कइलाके के मार्केट नंबर 1,2,3, 4 और अपने इलाकेमें मास्क की पांच डिस्पेंसरी स्थापित कीं, ताकि जरूरत पड़ने पर कोई भी सब्जी विक्रेता, फेरीवाला या जरूरतमंद व्यक्ति इसका इस्तेमाल कर सके। बीते दो महीनेसे मां-बेटे की यह जोड़ी 1000 से अधिक मास्क बनाकर बांट चुकी है। लक्ष्मी बताती हैं कि वह सिलाई करने में कुशल हैं और अक्सर अपने और अपने परिवार के लिए कपड़े सिलती रही हैं। उन्हें इस काम में आनंद आता है। इतना ही नहीं उन्होंने अपनी बेटियों के लिए हाथ से सूट और ब्लाउज भी सिले हैं, जिसका अभ्यास उन्हें लॉकडाउन के दौरान मास्क बनाने में काम आया।
भाई की सिलाई की दुकान में बचे कपड़ों से सिल रहीं मास्क
दरअसल, सौरव के लाए मास्क को ध्यान से देखने के बाद लक्ष्मी को यह समझ आया कि वह यह मास्क आसानी से घर पर ही बना सकती हैं। बस फिर क्या था, अपने भाई की दुकान जहां वह महिलाओं को सिलाई का काम सिखाते हैं, वहां से कुछ बचे हुए कपड़े ले आईं और मास्क बनाने जुट गईं। उन्होंने बताया कि यह सभी मास्क कॉटन के बने हुए हैं, जो चेहरे को नाक से लेकर ठोड़ी तक कवर कर सकता है और इससे सांस लेने में भी कोई दिक्कत नहीं होगी। उनकी इच्छा थीकि वह ऐसे ही कुल 2000 मास्क बनाकर अपने पैतृक गांव में किसानों और मजदूरों को बांट सकें, लेकिन मौजूदा हालात को देखते हुए सौरव में इन मास्क को आसपास के इलाकों में बांटनेकरने का फैसला किया।
जरूरतमंदों तक पहुंचे मास्क इसलिए पब्लिक प्लेस पर लगाई डिस्पेंसरी
सौरव बताते हैकि स्थानीय बाजारों में दुकानदार, रिक्शा चालक और ऐसे अन्य कई मजदूर हैं, जो डिस्पोजेबल और रि-यूजेबल मास्क नहीं खरीद सकते। ऐसे में उन्हें इन मास्क की ज्यादा जरूरत है, क्योंकि वह रोजाना कई लोगों के संपर्क में आते हैं। इसके लिए उन्होंने एक बॉक्स डिजाइन कर एक सार्वजनिक स्थानोंपर लगा दिया। इस बॉस्क के बाहर लटका हुआ रिबन खींचने पर मास्क बाहर निकलता है, जिसका दूसरा सिरा दूसरे मास्क से जुड़ा होता है और इस तरह हर रिबन का एक हिस्सा दूसरे से जुड़ा हुआ है।
कार्डबोर्ड और चॉकलेट बॉक्स से बनाई डिस्पेंसरी किट
सौरव ने बताया कि उनके पास धातु या प्लास्टिक का कोई कंटेनर नहीं था, इसलिए उन्होंने कार्डबोर्ड बॉस्क और चॉकलेट बॉक्स कीमदद से इस बॉक्स को तैयार किया, जिसमें न्यूनतम 12 और अधिकतम 30 मास्क आ सकते हैं।उन्होंने अब तक स्थानीय बाजारों में ऐसे पांच किट लगाए हैं, जिसके ऊपर ‘पिक वन स्टे सेफ’ का एक मैसेज भी लिखा हुआ है। इस काम को करते हुए लक्ष्मी अभी तक 1200 से अधिक मास्क बना चुकी हैं, जिसमें से एक हजार से ज्यादा मास्क वह बांट चुके हैं। इनमें से 700 मास्क बॉक्स में और अन्य व्यक्तिगत रूप से श्रमिकों और सहायकों को बांटे गए हैं।
मौजूदा समय में पूरा देश तनावपूर्ण स्थिति से गुजर रहा है। ऐसे में सभी लोग अपने- अपने स्तर पर योगदान देने में लगे हुए हैं। वहीं इस बीच लक्ष्मी और सौरव भी अपना योगदान देते हुए यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि उनके आसपास कोई भी ऐसा व्यक्ति जो मास्क नहीं खरीद सकता, बिना मास्क के ना रहे।
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