बात करने में समस्या
बच्चों में यह समस्या आम होती है। उन्हें पता ही नहीं होता कि सामने वाले से क्या और कैसे बात करनी है। घर पर मेहमान आने पर वे उनका अभिवादन करने से गुरेज़ करते हैं या असहज हो जाते हैं। वहीं कई घरों में माता-पिता मेहमानों के आने पर ख़ुद बातचीत में व्यस्त होकर बच्चों को अपने कमरे में जाकर खेलने के लिए कह देते हैं। इस कारण वे लोगों से मिलना-जुलना, बातें करना नहीं सीख पाते।
आत्मविश्वास की कमी
ये समस्या भी बेहद सामान्य है। इसमें बच्चे बाहरी लोगों से बात करने में इसलिए भी डरते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि उन्हें कुछ नहीं आता और सामने वाला व्यक्ति सब जानता है। ऐसे में उनकी कोशिश रहती है कि किसी तरह की बातचीत न हो।
टीवी-फोन की आदत
सामाजिक कौशल न विकसित होने के पीछे फोन और टी.वी की लत भी बड़ा कारण है। बच्चे दिन-दिनभर फोन पर गेम्स खेलते रहते हैं या टी.वी देखते रहते हैं। ऐसे में लोगों से मिलने पर कैसा व्यवहार करना है उन्हें पता ही नहीं होता।
भावनाएं ज़ाहिर न करना
लोगों से मेल-जोल न होने के कारण व अक्सर अकेले रहने पर इन्हें अपनी भावनाएं व्यक्त करना नहीं आता। ख़ुशी में कैसे व्यवहार करना है या ग़ुस्से में किस तरह संयम बरतना है ये जानना इनके लिए मुश्किलभरा होता है। इसलिए प्यार जताना या अपनी बात को रखना इनके लिए आसान नहीं होता।
आदर करना
अमूमन आज के बच्चों को छोटे और बड़ों से बात करने में अंतर करना नहीं आता है। बाहर लोगों से बात न करने के कारण इन्हें पता ही नहीं रहता कि बड़ों का आदर करना चाहिए व उनसे किस लहज़े में बात करनी चाहिए। इस वजह से वे सभी से एक ही तरह से व्यवहार करते हैं और नजीजतन बेअदब लगते हैं।
माता-पिता की शह
अक्सर देखा जाता है कि बच्चों से सवाल पूछने पर माता-पिता जवाब देते हैं। ऐसे में बच्चे ख़ुद जवाब देने में सक्षम नहीं हो पाते, उन्हें इसकी आदत पड़ जाती है। ऐसे में यदि कोई भी उनसे संबंधित सवाल करता है तो वे माता-पिता का मुंह ताकने लगते हैं।
सुधार कैसे कर सकते हैं...
- अधिकतर बच्चों की दुनिया टी.वी और फोन तक ही सीमित हो गई है। ऐसे बच्चे घर घुस्सू बन जाते हैं जिन्हें बाहर जाकर खेलना, लोगों से मिलना-जुलना या दोस्त बनाना कम ही पसंद होता है।
- न बच्चों में सोशल स्किल यानी सामाजिक कौशल विकसित नहीं हो पाता। उन्हें बाहरी दुनिया में किस तरह से बर्ताव करना है या कैसे बातचीत करनी है इसकी जानकारी नहीं होती। ऐसे बच्चों को किस तरह की समस्या आती है और उनमें सोशल स्किल कैसे विकसित कर सकते हैं, आइए जानते हैं।
- बच्चों को सोशल स्किल 5 साल की उम्र से सिखाना शुरू कर देना चाहिए। इस उम्र तक बच्चों का मस्तिष्क काफ़ी हद तक विकसित हो जाता है।
- परिवारिक समारोह में या मेहमानों के आने पर उसे भी साथ शामिल करें। बच्चों से ये कहना कि आप अपने कमरे में खेलो, बच्चे को अकेला कर देता है।
- माता-पिता बच्चों को जब हर चीज़ में शामिल करेंगे तो उन्हें बच्चों को अलग से सिखाना नहीं पड़ेगा कि, बड़ों के नमस्ते करिए, पैर छूइए या इस तरह से बैठिए। बच्चे ये सब ख़ुद ही सीख जाएंगे।
- बच्चों से जब भी बात करें तो उनसे आंख मिलाकर बात करें। उन्हें भी यही समझाएं कि बात करते समय यहां-वहां देखने की बजाय आंखों में देखकर बात करें।
- किसी बाहरी व्यक्ति द्वारा सवाल पूछने पर बच्चे को ख़ुद उसका जवाब देने दें। इससे उसे अपनी बात रखनी आएगी और उसका आत्मविश्वास भी बढ़ेगा।
- बच्चा यदि टी.वी या फोन अधिक इस्तेमाल करता है तो उसे किताब पढ़ाना शुरू करें। इसके लिए पहले ख़ुद किताब लेकर बैठें। ऐसा न हो कि आप फोन चलाएं और बच्चे को पढ़ने के लिए कहें।
- घर में साथ बैठकर फिल्म या कार्टून देखने की बजाय बच्चे को पार्क लेकर जाएं। इससे उसे नए दोस्त मिलेंगे।
- बच्चे के सामने अपनी भावनाएं व्यक्त करें। उससे प्यार जताएं, ग़ुस्सा आने पर उसे समझाएं। इससे वह भी अपनी भावनाएं व्यक्त करना सीखेगा/सीखेगी।
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