ऐसे हुई शुरुआत
सुरुची को एक दिन सिर में तेज दर्द हुआ। डॉक्टरों को दिखाने के बाद पता चला कि उन्हें आखिरी स्टेज का ब्रेन ट्यूमर है। इलाज़ के दौरान तबीयत सुधरने के बजाय और खराब होने लगी। खाली समय में सुरुची ने अपनी ना सही पर दूसरों की जिंदगी को बचाने के लिए पहल शुरु की। उनका कहना है कि भले ही कैंसर का इलाज संभव नहीं है लेकिन इस बीमारी के कारण पर तो रोक लगाने की कोशिश की जा सकती है। सुरुची ने वायू प्रदूषण के खिलाफ अपनी जंग शुरू कर दी। दो साल के अपने सफर में उन्होंने लगभग 30 हज़ार पौधे लगाए। उनका कहना है कि उन्हें नहीं पता कि वो कितने दिन तक जिंदा रहने वाली हैं, लेकिन वह चाहती हैं कि पौधे लगाकर लोगों की सांसों में हमेशा रहें।
डॉक्टरों ने दे दिया जवाब
बीमारी का पता लगते ही उन्होंने कई बार जांच करवाई थी, मगर हर डॉक्टर ने जवाब दे दिया। ट्रीटमेंट के दौरान अब तक 36 कीमोथेरेपी और उतनी ही रेडिएशन थेरेपी भी हो चुकी हैं। उन्हें रोजाना कई बार दवाइयां लेनी पड़ रही हैं। एक समय लंबे बाल रखने वाली सुरुची के सिर पर कीमोथैरेपी के कारण बाल भी नहीं है। उनके इस साहस को देख लोगों को ना केवल प्रेरणा मिल रही है बल्कि लोग उनकी इस मुहिम में शामिल भी हो रहे हैं।
स्कूली बच्चों को दे रहीं पर्यावरण की जानकारी
सुरुची ज्यादा से ज्यादा समय लोगों को वायु प्रदूषण के खतरों से आगाह कर रही हैं। वह अक्सर गांव और स्कूलों में जाकर लोगों को ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाने के लिए प्रोत्साहित करती हैं। उनका मानना है कि सिर्फ पौधे लगाकर वायू प्रदूषण पर नियंत्रण पाया जा सकता है।
क्लीन इंडिया, ग्रीन इंडिया की एंबेसेडर बनीं
सूरत शहर के एनजीओ हार्ट एट वर्क ने कुछ समय पहले क्लीन इंडिया, ग्रीन इंडिया मूमेंट की शुरुआत की है। इस संस्था ने एक बार में 2,500 पौधे लगाने का लक्ष्य बनाया था। जब एनजीओ को पता चला कि सुरुचि की आखिरी इच्छा ज्यादा से ज्यादा पौधे लगाने की है तो उन्होंने उन्हें अपना ब्रांड एंबेसेडर बनाया। सुरुची की सेहत को देखते हुए डॉक्टरों ने उन्हें ज्यादा चलने और ट्रेवल करने में सावधानी बरतने को कहा था लेकिन उन्होंने संस्था के लोगों के साथ पौधे लगाने का अभियान रुकने नहीं दिया।
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