एजुकेशन डेस्क. 2 अक्टूबर को गांधीजी की 150वीं जयंती मनाई जाएगी। ऐसे में भास्कर ने जाना कि गांधीजी के विचारों और इससे संबंधित विषयों को पढ़ने के ट्रेंड में पिछले कुछ सालों मेंं क्या बदलाव आया है। यूजीसी के दस्तावेजों के अनुसार पिछले चार साल में अंडर ग्रेजुएट कोर्स में तो गांधी विषयों में स्नातक करने वाले 32% बढ़े हैं, लेकिन एमफिल करने वाले 19% घटे हैं। पोस्ट ग्रेजुएशन करने वालों की संख्या में भी करीब 6.5% की गिरावट आई है। दूसरी तरफ अभी देश के किसी भी विश्वविद्यालय में गांधीजी के नाम की चेयर (प्रोफेसर के बराबर का पद) नहीं है। पत्रकार कृतिका शर्मा की आरटीआई के मुताबिक यूजीसी ने गांधीजी के नाम की चेयर बनाने के लिए विश्वविद्यालयों को कहा था लेकिन किसी भी विवि ने यह चेयर स्थापित नहीं की है। भास्कर सेइस बात की पुष्टि स्वयं यूजीसी सेक्रेट्ररी रजनीश जैन नेभी की है। जबकि राजीव गांधी, अबुल कलाम आजाद, स्वामी विवेकानंद जैसेछह हस्तियों केनाम सेचेयर स्थापित हुई हैं।
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गांधी रिसर्च का बड़ा रिफ्रेंस सेंटर माना जानेवाले दिल्ली के गांधी शांति प्रतिष्ठान केचेयरमैन कुमार प्रशांत ने बताया कि गांधी आधारित लिखने-पढ़ने के ट्रेंड में बदलाव आया है। इसे तीन तरीके से बांट सकते हैं। 21वीं सदी के पहले 60 साल की उम्र के लोग गांधी पर शोध, किताब लिखने के लिए आते थे जो बेहद गंभीर विषयाें पर ही लिखते थे। इसके बाद 21 वीं सदी से लेकर 2014 तक लोग संस्थागत रिसर्च पर ज्यादा जोर देने लगे। अब 30 साल की उम्र तक के लोग गांधी पर लिखते-पढ़ते हैं। जो प्रैक्टिकल विषयों का चुनाव करते हैं। हमारे यहां से गांधी मार्ग पत्रिका हर दो माह में निकलती है। इसके सबसे ज्यादा सब्सक्रिप्शन अब हुए हैं। 2000 से 2014 तक हमारे पास लोगों के पत्र आते थे कि ये पत्रिका बंद कर दीजिए क्योंकि इसे पढ़ने वाले उनके पिता या दादा अब नहीं रहे। 2014 के बाद से अचानक इसकी डिमांड बढ़नी शुरू हो गई।
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लोग हमें पत्र लिखकर बताते हैं कि मेरी नौकरी, पत्नी से खटपट, बेटे की पढ़ाई, मां-बाप से अनबन, दोस्तों से बैर जैसी व्यक्तिगत समस्याओं का समाधान गांधी को पढ़ने से मिला है। अब गांधी समाज और राजनीति की राह ही नहीं दिखाते लोगों का घर संवार रहे हैं। इसके अलावा प्रशांत ने रोचक किस्सा बताया कि गांधी ने पानी के जहाज पर बैठकर हिन्द स्वराज किताब लिखी। इस किताब को अलग-अलग आयामों से आज भी विवेचित किया जा रहा है। अभी तक इस पर 100 से ज्यादा किताबें लिखी जा चुकी हैं।
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