Wednesday, 29 January 2020

मायके में कभी बहू बनकर भी रहें, परिवार वालों से फरमाइशें नहीं उन्हें अपनेपन का अहसास दिलाएं

लाइफस्टाइल डेस्क. वॉट्सऐप पर दो लाइनें पढ़ीं-घर की बेटियों, बहनों, ननदों को गर्मियों की छुट्टियों में ससम्मान उनके घर बुलाएं।

लाइनें पढ़कर मन में सवालों की झड़ी लग गई। ऐसा क्यूं लिखना पड़ा कि बेटियों को आदर से आमंत्रित करें? ऐसी क्या परिस्थितियां आ गईं कि घर की बेटियों को उनके ही मायके में बुलाना पड़ रहा है? इस ओर विचार करने पर कुछ ख़ास और ध्यान देने योग्य बातें सामने आईं, जिन पर विचार करना ज़रूरी है।

सुविधा की मांग

कुछ महिलाएं अपने बच्चों की कोचिंग या गर्मियों में लगने वाली समर क्लासेस के कारण नहीं जा पातीं और दूसरा कि आजकल के बच्चे बहुत ही सुविधाभोगी हो गए हैं। हर जगह उन्हें घर जैसा ही माहौल (पंखा, कूलर, एसी, वीडियो गेम, मोबाइल) चाहिए। फ़रमाइश करते ही फास्ट फूड या मनपसंद की चीजेंचाहिए। और अगर फ़रमाइश पूरी न हो, तो ये घर वापसी की ज़िद पकड़ लेते हैं। ऐसे में घरवाले भी परेशान होने लगते हैं।

साझा करना भूल गए हैं

एकल या छोटा परिवार होने की वजह से साझा करने की प्रवृत्ति नहीं होती। इस कारण परेशानी होती है। इसके साथ ही आजकल के बच्चे सबके साथ सामंजस्य बिठा पाने में असमर्थ होते हैं। उन्हें प्राइवेसी, स्पेस चाहिए होता है। मांएं भी इसमें उनका साथ देती हैं। उन्हें लगता है कि मायके में उन्हें अलग कमरा दिया जाए, जिसमें वे बच्चों के साथ ठहर सकें। इस कारण मायके वाले भी उनके इस तरह के व्यवहार से परेशान हो जाते हैं।

फ़रमाइशों की झड़ी

ये बात थोड़ी अटपटी लगेगी परंतु सच्चाई है। पता नहीं ससुराल की आदर्श बहुएं मायके जाकर नकचढ़ी बेटियां क्यों बन जाती हैं। जिस घर में (ससुराल) जीवनभर रहना है वहां के लिए, वहां के लोगों के लिए परायापन महसूस करती हैं या करवा देती हैं। जो बहू ससुराल में ख़ुशी से काम करती है वही बहू मायके जाकर कोई भी काम नहीं करना चाहती। दिनभर आराम करने के साथ ही बैठे-बैठे फ़रमाइशें करना उन्हें उनका हक़ लगता है। ये बड़ी विडंबना है।

महत्व का विचार

मायके में अगर भाभी या उस घर की बहू है तो उसका महत्व बेटी के आते ही कम हो जाता है। ननद के आते ही भाभी के ऊपर काम का बोझ भी बढ़ जाता है। हम किसी परिवार की बहू हैं तो क्या मायके जाकर थोड़ा-सा बहू जैसा बनकर नहीं रह सकते।

ख़र्चों का बोझ

अब वो समय नहीं रह गया कि छुटि्टयां होते ही मायके जाया जाए। ऐसा वातावरण हम ख़ुद ही तैयार करते हैं। हमारी आराम की आदत, अनाप-शनाप फ़रमाइशें, मायके का बजट बिगाड़ देती हैं। अपनी भाभी से हम पूरी अपेक्षा रखते हैं परंतु अपनी ननद की वही सारी बातें हमें अच्छी नहीं लगतीं। दोनों पहलुओं पर ग़ौर करने से पता चलता है कि हम सामने वाले को तो बदलना चाहते हैं लेकिन ख़ुद नहीं बदलना चाहते। बहुत-सी महिलाएं छोटी-छोटी बातों पर मुंह फुला लेती हैं, नाराज़ हो जाती हैं फिर मान-मनुहार, माहौल को सामान्य करने में ही समय बीत जाता है।

जो देंगे वही पाएंगे

  • मायके जाकर घरवालों को एहसास दिलाएं कि आप हमेशा से उस घर का हिस्सा थीं, हैं और हमेशा रहेंगी। आपका वहां जाना बोझ न होकर उनको आनंद प्रदान करे।
  • सभी माता-पिता अपने बच्चों की इच्छाएं पूरी करते हैं। आप जि करके उनके ऊपर दवाब डालकर अपनी बात न मनवाएं।
  • मायके जाकर वहां बोझ बनने की बजाए आपका कर्तव्य है कि वहां माहौल को हल्का, शांत और सौहार्दपूर्ण बनाएं।
  • मायके में ही अपनी भाभी को कुछ उनकी भी पसंद का बनाकर खिलाएं।
  • बच्चों को पहले ही समझाइश देकर ले जाएं, ताकि परिवार के बाकी सदस्य उनके कारण परेशान न हों।
  • माता-पिता को मान-सम्मान और भाई-भाभी को प्यार दें। याद रखें आप दूसरों को जो देंगे, वही आपको वापस मिलेगा। चाहे व्यवहार हो या मान-सम्मान।
  • मायके ज़रूर जाएं परंतु समझदारी के साथ। कोई भी ऐसी स्थिति न लाएं कि आपके अपने मायके में ही बुलाने पर जाना पड़े।


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Never be a daughter-in-law in the maiden, do not ask family members to make them feel familiar


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