Monday 25 November 2019

केरल के स्कूली शिक्षक बीनू आयुर्वेद से करते हैं पेड़ों का इलाज, 100 साल से भी पुराने ठूंठ में तब्दील वृक्षों को जिंदा कर दिया

कोट्‌टायम.पेड़-पौधों से इंसान की बीमारी दूर करने के बारे में आपने सुना होगा, लेकिन केरल के 51 वर्षीय के. बीनू ऐसे शख्स हैं, जो आयुर्वेद के जरिए पेड़-पौधों का इलाज करते हैं। पेशे से स्कूल शिक्षक बीनू ने 100 साल से भी पुराने कई ऐसे पेड़ों को फिर से जिंदा कर दिया, जो ठूंठ हो गए थे। पेड़ों के संरक्षण के लिए वे बीते 10 सालों से जुटे हुए हैं। आसपास ही नहीं, देशभर के लोग अपने पेड़ों की बीमारी के बारे में उन्हें बताते हैं और बीनू उनका इलाज करते हैं- वह भी मुफ्त। उन्होंने वृक्षों को बचाने के लिए वृक्ष आयुर्वेद से संबंधित कई पुस्तकें लिखीं जो अब केरल के स्कूली कोर्स में भी शामिल की जा रही हैं।

वृक्षों को जीवित इंसान की तरह मानने वाले बीनू अपनी दिनचर्या के मुताबिक सुबह लोगों से उनके वृक्षों की बीमारी सुनते हैं और स्कूल से लौटते समय वृक्षों का इलाज करते हैं। शनिवार-रविवार या फिर छुट्‌टी के दिन वे सुबह से ही वृक्षों के इलाज के लिए मौके पर पहुंच जाते हैं। उन्होंने हाल ही में यूपी के प्रयागराज और कौशांबी में कई एकड़ में अमरूदों के बाग में फैली बीमारी ठीक करने में भी मदद की। बीनू ने 15 साल पहले एक अधजले पेड़ का इलाज कर उसे हराभरा बना दिया तो लाेगाें काे आश्चर्य हुआ। फिर मालायिंचीप्पारा के सेंट जोसेफ स्कूल के कुछ बच्चे उनके पास आए। उनसे कहा कि उनके स्कूल में एक आम का पेड़ है जिसमें कई सालों से आम नहीं फल रहा है। उन्होंने इसका इलाज किया और उसमें आम आने लगे तो बच्चों ने बीनू को ‘पेड़ वाले डॉक्टर’ की ख्याति दिला दी। आसपास के लोग बीनू को पेड़ वाले डॉक्टर के नाम से ही जानते हैं।

बीनू का कहना है कि उनका ज्यादातर समय दीमक के टीले की मिट्‌टी ढूंढने में निकल जाता है। वे दीमक के टीले की मिट्‌टी से ही बीमार पेड़ों का इलाज करते हैं। 60 साल पहले तक वृक्ष आयुर्वेद काफी प्रचलित था। महर्षि चरक और सुश्रुत ने भी ग्रंथों में पेड़ों की बीमारी का उल्लेख किया है। मैंने अपनी कोशिशों के जरिए सैकड़ों वृक्ष बचाए, यही मेरा उद्देश्य है।

इलाज में दीमक के टीले की मिट्‌टी, गोबर, दूध और घी का प्रयोग करते हैं

बीनू का कहना है कि वृक्ष आयुर्वेद में पेड़ों की हर बीमारी का इलाज बताया गया है। इनमें दीमक के टीले की मिट्‌टी, धान के खेतों की मिट्‌टी प्रमुख है। गोबर, दूध, घी और शहद का इस्तेमाल भी किया जाता है। केले के तने का रस और भैंस के दूध का भी इस्तेमाल करते हैं। कई बार तो पेड़ों के घाव में महीनों तक भैंस के दूध की पट्‌टी भी लगानी पड़ती है।



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Kerala school teacher Beenu treats trees with Ayurveda, makes trees transformed into stub more than 100 years old alive


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